यह है पैडमैन की असली कहानी
२५ मई २०१८अरुणाचलम मुरुगनाथम ने यह सब अपनी पत्नी के लिए सस्ते सैनिटरी नैपकिन बनाने की अपनी तलाश के लिए किया, जिसने आखिरकार विश्व भर में ग्रामीण महिलाओं के माहवारी स्वास्थ्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला खड़ा किया. तमिलनाडु के कोयंबटूर के रहने वाले मुरुगनाथम का कहना है कि अपने मिशन को पूरा करने के लिए अभी और लंबा सफर तय करना बाकी है ताकि माहवारी स्वच्छता सभी को किफायती और सुलभ रूप में हासिल हो सके. मुरुगनाथम ने ई-मेल के माध्यम से दिए साक्षात्कार में आईएएनएस को बताया, "यह सब मेरी पत्नी शांति के साथ शुरू हुआ और दुनिया भर में फैल गया, जिसने एक क्रांति को जन्म दिया. मुझे खुशी है कि मेरा मिशन लोगों तक पहुंचा."
उन्होंने आगे कहा, "लोग वास्तव में बदल गए हैं. सैनेटरी स्वच्छता के बारे में अब अधिक लोग खुलकर बात करते हैं. 20 साल पहले लोग इसके बारे में बात करने से भी डरते थे. आज वह भ्रम टूट गया है. लेकिन भारत केवल मेट्रो शहरों से नहीं बना. हमारे देश में छह लाख गांव हैं और जागरूकता का स्तर बहुत कम है. सभी के लिए माहवारी स्वच्छता किफायती और सुलभ बनाने के हमारे मिशन को अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है."
मुरुगनाथम का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति पैडमैन बन सकता है. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि ज्यादा से ज्यादा पैडमैन बनाना मेरी जिम्मेदारी है." मुरुगनाथम ने प्रसिद्धि और प्रशंसा पाने के लिए अपने इस सफर की शुरुआत नहीं की थी, बल्कि वे चाहते थे कि उनकी पत्नी को महीने के उन दिनों के दौरान रूई, राख और कपड़े के टुकड़े जैसे गंदे तरीकों का न अपनाना पड़े.
स्कूल छोड़ने वाले मुरुगनाथम ने करीब करीब अपना परिवार, अपना पैसा और समाज में इज्जत खो दी थी. लोगों ने उन्हें नजरअंदाज करना शुरू कर दिया, वह अपने पड़ोस के लोगों के तानों का विषय बन गए और कुछ ने सोचा कि वह यौन रोग से ग्रस्त हैं. और तो और उनकी पत्नी ने भी किफायती सैनेटरी नैपकिन बनाने की उनकी सनक के कारण उन्हें छोड़ दिया था.
अपने कांटों भरे सफर को याद करते हुए उन्होंने कहा, "अपनी पत्नी को स्वच्छ उत्पाद मुहैया कराने की मेरी लालसा ने मुझे अपना काम जारी रखने की हिम्मत दी. मैं एक इंजीनियरिंग फर्म के लिए भी काम करता था और मैं इस बात को जानता था कि मैं 9999 बार विफल हो सकता हूं. मैं जानता था कि अगर मैं ब्लेड का कोण बदल दूं तो कल मैं सफल हो सकता हूं."
अपने इस प्रयास की सबसे बड़ी मुश्किल के बारे में उन्होंने कहा, "सबसे मुश्किल काम लोगों के विचारों में बदलाव लाना था. कोई व्यक्ति गरीबी से नहीं मरता, बल्कि यह अज्ञानता के कारण होता है. दशकों पुराने भ्रम को तोड़ना और महिलाओं व लड़कियों को पैड का प्रयोग करते देखना एक मुश्किल काम था."
मुरुगनाथम अह कोयंबटूर में महिलाओं को सैनेटरी पैड की आपूर्ति कराने के लिए एक कंपनी चला रहे हैं और कई देशों में अपने कम लागत वाले स्वच्छता उत्पादों के लिए प्रौद्योगिकी प्रदान कर रहे हैं. टाइम मैगजीन ने 2014 में उन्हें 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में स्थान दिया था. साथ ही 2016 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उनकी कहानी को अभिनेता अक्षय कुमार ने फिल्म 'पैडमैन' के माध्यम से एक अलग ढंग से पर्दे पर अपनी स्टार पावर के साथ पेश किया. फिल्म मे माहवारी स्वच्छता पर देश भर में खुली बहस छेड़ी.
इस बारे में उन्होंने कहा, "यह पहली दफा था जब कोई सुपरस्टार माहवारी स्वच्छता पर फिल्म करने के लिए आगे आया. उन्होंने इस कारण को माना और जिस तरीके से फिल्म बनाई गई वह सबने देखा भी." मुरुगनाथम ने कहा कि अक्षय के स्टारडम ने जागरूकता बढ़ाने में मदद की और वे इस संवाद को अगले स्तर पर ले गए, "उन्होंने मेरे मिशन में अधिक शक्ति जोड़ दी. फिल्म ने इस दिशा में प्रभावी रूप से योगदान दिया है और मैं इसके लिए ट्विंकल, अक्षय जी, बाल्की सर और पूरी टीम का धन्यवाद देना चाहूंगा."
साधारण जिंदगी जीने में विश्वास रखने वाले मुरुगनाथम अपनी लालसा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए नए व्यवसायिक हितों का प्रयोग कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "हमने महिला पुलिसकर्मियों, स्कूली लड़कियों और ग्रामीण महिलाओं को भी पैड वितरित किए हैं. जागरूकता फैलाने के लिए हम विभिन्न अनूठी धारणाएं बना रहे हैं. पैडमैन चुनौती उसमें से एक है. महावारी स्वच्छता के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हम एक बहुभाषी गाना भी निकालने वाले हैं."
सुगंधा रावल (आईएएनएस)