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सैनिक दमन से भागकर भारत पहुंच रहे हैं म्यांमार के लोग

प्रभाकर मणि तिवारी
८ मार्च २०२१

म्यांमार में सैनिक तख्तापलट के खिलाफ विरोध बढ़ता जा रहा है. उधर सेना के कथित उत्पीड़न के खिलाफ भारत के पूर्वोत्तर राज्यों मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड में विरोध के स्वर लगातार तेज होने लगे हैं.

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Myanmar | Proteste gegen Militärputsch
तस्वीर: AP/picture-alliance

म्यांमार में सैनिक शासन के खिलाफ प्रदर्शन जारी है और सेना का दमन भी. आज वहां ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर आम हड़ताल हो रही है. म्यांमार में सैनिक दमन के खिलाफ भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में कई संगठन आवाज उठा रहे हैं. पिछले दिनों म्यांमार से आठ पुलिस वालों समेत 20 से ज्यादा लोगों के मिजोरम में शरण लेने और म्यांमारी सेना की ओर से उनको वापस भेजने की अपील के बाद केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सीमा से घुसपैठ रोकने के लिए कड़ा कदम उठाने का निर्देश दिया है.

भारत-म्यांमार सीमा पर मुक्त आवाजाही का समझौता है जिसके तहत सीमावर्ती इलाकों में रहने वाली जनजातियों के आदिवासी बिना किसी वीजा के महज एक परमिट के आधार पर एक-दूसरे देश की सीमा में 16 किमी तक भीतर आ जा सकते हैं. इस सीमा के दस किमी के दायरे में 250 से ज्यादा गांव हैं जिनमें तीन लाख से ज्यादा की आबादी रहती है. ये लोग अक्सर डेढ़ सौ प्रवेश चौकियों से होकर सीमा के आर-पार आवाजाही करते रहे हैं. बीते महीने म्यांमार में सेना की ओर से तख्तापलट के बाद सीमा पार से इसी समझौते का लाभ उठा कर कई लोग मिजोरम के सीमावर्ती इलाकों में आए हैं. अब पुलिस वाले भी यहां आ रहे हैं. गैर-सरकारी सूत्रों के मुताबिक, म्यांमार से कम से कम तीस पुलिसवालों और उनके परिजनों ने मिजोरम में शरण ली है.

भारत के लिए संतुलन की मुश्किल

भारत सरकार उहापोह में है. म्यांमार के साथ उसके अच्छे संबंध हैं, लेकिन म्यांमार की सेना भारत के साथ संबंधों में चीन का तुरुप चलती रही है. सीमा पार से शरणार्थियों के भाग कर भारत आने की खबरों और इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच संभावित तनाव को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने असम राइफल्स को सीमा पार से लोगों के आने पर अंकुश लगाने को कहा है. पूर्वोत्तर में म्यांमार सीमा पर असम राइफल्स ही तैनात है. इस निर्देश में साफ कहा गया है कि बिना वैध पासपोर्ट और वीजा के म्यांमार से किसी को भारतीय सीमा में प्रवेश नहीं करने देना चाहिए.

Myanmar | Proteste gegen Militärputsch
म्यांमार सेना के खिलाफ बढ़ता विरोधतस्वीर: Str/AFP/Getty Images

म्यांमार से पलायन कर मिजोरम पहुंचने वाले पुलिसवालों का कहना है कि उन्होंने सेना का आदेश मानने से इंकार कर दिया था. इससे उनकी जान को खतरा था. इसलिए मजबूरन उनको सपरिवार भारत आना पड़ा. मिजोरम के गृह मंत्रालय ने इन पुलिसवालों समेत कम के कम 16 म्यांमारी नागरिकों के राज्य में आने की पुष्टि की है. मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने शुक्रवार को कहा था, "म्यांमार में हमारे भाइयों और बहनों को सेना के तख्तापलट की वजह से समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हम उन लोगों का स्वागत करते हैं, जो अपनी जान बचाने के लिए मिजोरम आने पर मजबूर हैं. सरकार इस बात का ध्यान रख रही है कि वे भुखमरी का सामना न करें और इसलिए उसी के अनुरूप व्यवस्था की जा रही है.”

म्यांमार सेना के खिलाफ बनता माहौल

इस बीच, म्यांमार में सेना के कथित अत्याचारों और उत्पीड़न के खिलाफ वहां जारी नागरिक अवज्ञा आंदोलन (सीडीएम) को अब मिजोरम के अलावा मणिपुर और नागालैंड के मानवाधिकार संगठनों का भी समर्थन मिलने लगा है. आल मणिपुर ट्राइबल यूनियन (एएमटीयू) के कार्यकारी अध्यक्ष रोमियो बंगडोन कहते हैं, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय को म्यांमार में शीघ्र हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि आम लोगों को सेना के उत्पीड़न से बचाया जा सके.” एएमटीयू के साथ नागालैंड के टेनयिमी स्टूडेंट्स यूनियन ने भी म्यांमार के आम लोगों का समर्थन किया है. इस यूनियन में दस नागा जनजातियों के प्रतिनिधि शामिल हैं.

पूर्वोत्तर के चार राज्यों, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश की 1,643 किमी लंबी सीमा म्यामांर से लगी है. सीमावर्ती इलाकों में आबादी, बोली, रहन-सहन और संस्कृति में भी काफी समानताएं है. वहां रहने वाली जनजातियों में आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता चलता है. म्यांमार में होने वाली किसी भी उथल-पुथल का खासकर मिजोरम पर सीधा असर पड़ता है. मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगी है. राज्य की सबसे बड़ी मिजो जनजाति जातीय रूप से सीमा पार चिन राज्य की चिन जनजाति से जुड़ी है. चिन तबका मणिपुर के कूकी-जोमी समुदाय से भी जुड़ा है. म्यांमार में नागा जनजाति के लोग भी काफी तादाद में हैं. उनके संबंध मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में रहने वाले नागा जनजाति के लोगों से हैं.

Myanmar Mandalay | Proteste gegen Militärputsch | Festnahme Demonstrant
सेना के दमन से भाग रहे हैं लोगतस्वीर: AFP

म्यांमार से भागे पुलिसकर्मियों पर नजर

दूसरी ओर, म्यांमार ने भारत से अपने उन पुलिसकर्मियों को वापस लौटाने के लिए कहा है जो कुछ दिन पहले सीमा पार कर मिजोरम में शरण लेने पहुंचे थे. सीमावर्ती चंपाई की उपायुक्त मारिया सी टी जुआली ने इस बात की पुष्टि की कि म्यांमार के फलाम जिले के उपायुक्त ने मिजोरम आने वाले आठ पुलिसकर्मियों को सौंपने की मांग की है. जुआली ने पत्रकारों से कहा, "मुझे म्यांमार के फलाम जिले के उपायुक्त का एक पत्र मिला है जिसमें दोनों देशों के आपसी रिश्तों को ध्यान में रखते हुए आठ पुलिसकर्मियों को हिरासत में लेने और म्यांमार को सौंपने का अनुरोध किया गया है.” वे फिलहाल केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का इंतजार कर रही हैं.

नई दिल्ली स्थित संगठन नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टार्चर (एनसीएटी) ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से अपील की है कि तख्तापलट के बाद म्यांमार से भाग कर भारत पहुंचने वाले लोगों को शरणार्थी का दर्जा देने की कार्रवाई शीघ्र शुरू की जानी चाहिए. संगठन के संयोजक सुहास चकमा कहते हैं, "भारत सरकार के पास शरण मांगने वालों के आवेदनों के निपटारे का कोई तंत्र नहीं होने की वजह से कई बार संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं हो पाता. सरकार ऐसे मामलों में अपनी मर्जी के मुताबिक फैसले लेती है. इसे रोकने के लिए इस मामले में मानवाधिकार आयोग का हस्तक्षेप जरूरी है.”

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