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म्यांमार ने रोहिंग्या गांवों का सफाया किया

आशुतोष पाण्डेय
२३ फ़रवरी २०१८

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि म्यांमार के अधिकारी रोहिंग्या लोगों पर हुए अत्याचारों के सबूतों को छिपा रहे हैं. संस्था का कहना है कि यूएन की टीम को म्यांमार के रखाइन प्रांत में जाने दिया जाना चाहिए.

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Myanmar Zerstörung von Dörfern der Rohingya
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/DigitalGlobe

सैटेलाइट से मिली तस्वीरों से पता चलता है कि म्यांमार के अधिकारियों ने जलाए गए रोहिंग्या गांवों को कैसे साफ कर दिया है. ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि पिछले साल अगस्त में भड़की हिंसा के बाद से कम से कम 55 गांवों को पूरी तरह साफ कर दिया गया है. इस हिंसा के कारण लगभग सात लाख लोग पहले ही भागकर बांग्लादेश चले गए हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच में एशिया विभाग के निदेशक ब्रैड एडम्स ने डीडब्ल्यू को बताया, "अधिकारी अत्याचार के सबूतों को छिपाना चाहते हैं और उन्होंने रोहिंग्या लोगों की जमीनों पर कब्जा कर लिया है. वे कब्रों, इस्तेमाल किए गए हथियारों और उन सभी सबूतों को छिपा रहे हैं जिनसे पता लगाया जा सके कि किसने ये अपराध किए हैं." उनके मुताबिक, "इससे रोहिंग्या लोगों के सफाए की बर्मी अधिकारियों की मानसिकता पता चलती है."

रोहिंग्या लोगों को म्यांमार अपना नागरिक नहीं मानता है और न ही उन्हें अपनी नागरिकता देता है. रोहिंग्या लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं जो दशकों से म्यांमार में रह रहे हैं. लेकिन म्यांमार उन्हें बांग्लादेश से आए गैरकानूनी प्रवासी समझता है. पिछले साल म्यांमार की सेना ने अपनी कई चौकियों पर हमलों के बाद रोहिंग्या चरमपंथियों के खिलाफ अभियान छेड़ा. इसे बाद में संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने रोहिंग्या लोगों का "जातीय सफाया" बताया. रोहिंग्या लोगों का कहना है कि म्यांमार में रहने वाले बहुसंख्यक बौद्ध उनके साथ भेदभाव और हिंसा करते हैं.

म्यांमार में रोहिंग्या लोगों के गांवों को साफ किए जाने की पहली तस्वीरें 9 फरवरी को सामने आईं जिन्हें म्यांमार के लिए यूरोपीय संघ के राजदूत क्रिस्टियान श्मिट ने ट्वीट किया.

लेकिन म्यांमार की सरकार का कहना है कि गांवों को इसलिए साफ किया गया है ताकि वहां गावों को फिर से बसाने की योजना पर काम किया जा सके जिसके तहत बेहतर सड़कें और घर बनाए जाएंगे. म्यांमार के सामाजिक कल्याण मंत्री ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "जब वे (रोहिंग्या शरणार्थी) वापस आएंगे तो वे अपने मूल स्थान पर या मूल स्थान के करीब रह सकेंगे." वहीं संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था के निदेशक फिलिपो ग्रांडी का कहना है कि म्यांमार में अभी ऐसे हालात नहीं है कि रोहिंग्या लोग वहां लौट सकें क्योंकि जिन कारणों के चलते उन्हें वहां से भागना पड़ा, वे अभी तक जस के तस बने हुए हैं.

दूसरी तरफ, ह्यूमन राइट्स वॉच ने म्यांमार के अधिकारियों से कहा है कि वे संयुक्त राष्ट्र की जांच टीम को रखाइन प्रांत में जाने दें ताकि वे वहां जाकर असल स्थिति का जायजा ले सकें. म्यांमार ने संयुक्त राष्ट्र की टीम को वीजा देने से इनकार कर दिया है. वह अंतरराष्ट्रीय मीडिया और मानवाधिकार संस्थानों को भी रखाइन में नहीं जाने दे रहा है. सिर्फ सरकार प्रोयोजित गाइडेड टूर के जरिए वहां जाया जा सकता है.