मोहनजोदाड़ो: चुपचाप मरती विरासत
मोहनजोदाड़ो, धरती पर सबसे पुरानी इंसानी सभ्यताओं में से एक का सबूत है. लेकिन क्या यह अमूल्य धरोहर दम तोड़ रही है?
मोहनजोदाड़ो का अंत
5,000 साल पहले यहां फलती फूलती इंसानी सभ्यता अचानक उजड़ गई. अब उनकी स्मृतियां भी दम तोड़ रही है. बढ़ती गर्मी के चलते पानी का खारापन बढ़ रहा है. खारापन इन ढांचों को रेगमाल की तरह खा रहा है.
मोहनजोदाड़ो क्यों नहीं
मिस्र के पिरामिडों और ममियों की बात सब करते हैं, लेकिन दुनिया भर में मोहनजोदाड़ों की चर्चा कम ही होती है. जर्मनी के पुरातत्व विज्ञानी डॉक्टर मिषाएल यानसेन दशकों से वहां शोध कर रहे हैं. यानसेन के मुताबिक मोहनजोदाड़ों को उसकी पहचान मिलनी चाहिए.
ऐतिहासिक नगीने
सिंधु नदी के तट पर 5,000 साल पहले इंसान कैसे रहता था. वो क्या खाता और पहनता था. मोहनजोदाड़ों की खुदाई में ऐसी कई चीजें मिली हैं, जो इन सवालों के जवाब देती हैं. म्यूजियम में रखी चीजों को देखकर पता चलता है कि वह सभ्यता कितनी समृद्ध थी.
विकसित व्यवस्था
दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में जब इंसान गुफाओं में रहता था, तब मोहनजोदाड़ों में ईंट की मदद से मकान और शहर बसाए गए. पानी की निकासी की भी वहां समुचित व्यवस्था थी. यूनेस्को की इस विश्व धरोहर पर जाकर आज भी इस बात के सबूत मिलते हैं.
जबरदस्त इंतजाम
प्राचीन शहर मोहनजोदाड़ों में अलग अलग इलाके थे. एक तरफ रहने के लिए घर तो तो दूसरी तरफ स्नानागार. स्नानागार में ताजा पानी उपलब्ध रहता था.
दोहरी मार
गर्मियों में अब यहां तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. इतनी ज्यादा गर्मी मिट्टी के ढांचों को चटका देती है. वहीं पानी में मौजूद खारापन भूक्षरण को बढ़ा रहा है.
कितना बड़ा रहस्य
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मोहनजोदाड़ों को जलवायु परिवर्तन ने खत्म किया. कुछ आर्यों के हमले को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. वहीं कुछ इसे महाभारत से जोड़ते हैं और कहते हैं वहां परमाणु हथियारों जैसे अस्त्रों का प्रयोग हुआ.
बेवकूफी की बाढ़
2014 में सिंध फेस्टिवल के दौरान कामगार और इलेक्ट्रिशियन मोहनजोदाड़ों के कई ढांचों पर चढ़े. वहां खुदाई करके टेंट लगाए गए, लाइटिंग की गई. इन हरकतों ने भी प्राचीन शहर को चोटिल किया.
ध्वस्त न हो जाए इतिहास
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के डॉक्टर रिचर्ड मेएडोव कहते हैं, "जब तक यह दबा था, तब तक सुरक्षित था." मेएडोव की मानें तो मोहनजोदाड़ों के खत्म होते ही इंसान के हाथ में इतिहास की सिर्फ धूल होगी.