मोदी सरकार को मुगल शहजादे दारा शिकोह में दिलचस्पी क्यों?
१९ फ़रवरी २०२०आलोचकों का कहना है कि दारा शिकोह में मोदी सरकार की दिलचस्पी मुसलमानों को "अच्छे मुसलमानों" और "बुरे मुसलमानों" में बांटने की रणनीति का हिस्सा है और सरकार दारा शिकोह को एक "आदर्श मुसलमान" के तौर पर पेश करना चाहती है.
केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने पिछले दिनों सात विशेषज्ञों वाली एक कमेटी बनाई और उसे तीन महीनों के भीतर दारा शिकोह की कब्र तलाश करने का आदेश दिया. हालांकि यह काम बहुत मुश्किल है क्योंकि दिल्ली में हुमायूं के मकबरे के अहाते में मुगल परिवार के 140 से ज्यादा लोग दफन हैं. उनमें से शहंशाह शाहजहां के बड़े बेटे और औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह की कब्र तलाशना आसान नहीं. इसकी बड़ी मुश्किल यह भी है कि किसी भी कब्र पर उसमें दफन व्यक्ति का नाम नहीं लिखा है.
बीजेपी और आरएसएस की दिलचस्पी हाल के दिनों में दारा शिकोह में कुछ ज्यादा ही देखने को मिली है. पिछले साल सरकार ने राष्ट्रपति भवन के पास स्थित डलहौजी रोड का नाम बदलकर दारा शिकोह रोड कर दिया. वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दारा शिकोह के नाम पर एक रिसर्च चेयर कायम की गई है.
दारा शिकोह की बरसी पर आरएसएस से जुड़ी संस्था मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम में आरएसएस से वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल ने दारा शिकोह को "असली मुसलमान" करार दिया. उनका कहना था कि अगर औरंगजेब की जगह दारा शिकोह बादशाह होता तो भारत में इस्लाम को फलने फूलने का ज्यादा मौका मिलता.
हिंदू संगठनों का कहना है कि भारत में आज दारा शिकोह जैसे उदारवादी मुसलमानों की जरूरत है. ऐसे मुसलमान जिन्होंने हिंदू धर्म और इस्लामी परंपराओं के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश की. दारा शिकोह ने अन्य किताबों के अलावा भगवत गीता और 52 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया.
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दारा शिकोह कौन था?
"दारा शिकोह: द मैन हू वुड बी किंग" के लेखक अवीक चंद्रा का कहना है कि दारा शिकोह का व्यक्तित्व बहुत बहुमुखी था. वह एक बहुत ही जिंदादिल इंसान, एक विचारक, सक्षम शायर, विद्वान, आला दर्जे का सूफी और कला की गहरी समझ रखने वाला शहजादा था लेकिन उसे प्रशासन और सैन्य मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. शाहजहां ने दारा शिकोह को सैन्य मुहिमों से दूर रखा जबकि औरंगजेब को 16 वर्ष की उम्र में एक बड़ी सैन्य मुहिम की कमान सौंप दी.
शाहजहां की बीमारी के बाद उत्तराधिकार की जंग में जब दारा शिकोह औरंगजेब से हार गया तो उसे गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया. फ्रांसीसी इतिहासकार फ्रांसुआ बर्नियर ने अपनी किताब "ट्रेवल्स इन मुगल इंडिया" में इसके बाद का दर्दनाक मंजर लिखा है. वह लिखते हैं कि दारा शिकोह को बेहद अपमानजनक तरीके से एक हाथी पर बिठाकर दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया. दारा शिकोह के पांव जंजीरों से बंधे हुए थे.
इसके एक दिन बाद औरंगजेब की अदालत ने दारा शिकोह पर इस्लाम का अपमान करने का आरोप लगाते हुए उसे मौत की सजा सुना दी. बाद में औरंगेजब के दो कर्मचारियों ने दारा शिकोह की गर्दन उड़ा दी. फिर दारा शिकोह का कटा हुआ सिर औरंगजेब के सामने पेश किया गया, जिसे औरंगजेब ने आगरा में शाहजहां के पास भिजवाने का आदेश दिया. आगरा में ताजमहल के पीछे दारा शिकोह के सिर को दफन कर दिया गया जबकि धड़ को दिल्ली में उन्हीं रास्तों पर घुमाया गया जहां दारा शिकोह को जिंदा घुमाया गया था. बाद में उस धड़ को हुमायूं के मकबरे के अहाते में दफना दिया गया.
दारा शिकोह की कब्र कौन सी है
दारा शिकोह की कब्र को तलाशने वाली विशेषज्ञों की कमेटी के एक सदस्य और पुरातत्वविद केके मोहम्मद का कहना है, "कोई भी निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकता कि दारा शिकोह की कब्र कौन सी है. हमें सिर्फ इतना मालूम है कि हुमायूं के मकबरे के अहाते में एक छोटी सी कब्र है. ज्यादातर लोग एक खास छोटी सी कब्र के बारे में कहते हैं कि यही दारा शिकोह की कब्र है."
कमेटी के एक और सदस्य बीआर मणि कहते हैं, "अहाते में मौजूद एक कब्र के बारे में मशहूर है कि यही दारा शिकोह की कब्र है. यह हुमायूं के मकबरे के पश्चिमी हिस्से में एक जगह पर है. इस इलाके में रहने वाले लोग पीढ़ी दर पीढ़ी यही बात सुनते आ रहे हैं और पुरातत्व विभाग के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी ऐसा ही मानते हैं. लेकिन इसके अलावा हमारे पास कोई और सबूत नहीं है."
विशेषज्ञों की इस कमेटी की अभी तक कोई मीटिंग नहीं हुई है और ना ही कब्र को तलाशने के लिए किसी खास तरीके के बारे में बताया गया है. लेकिन पुरातत्वविद केके मोहम्मद का कहना है, "हम विश्वास के साथ तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन कायमाबी की उम्मीद तो रखनी ही चाहिए. यह सही दिशा में एक कदम है. यह काम पहले ही होना चाहिए था."
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