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"मैं विश्वव्यापी नाटो नहीं देखती," मेर्कल

२७ मार्च २००९

आगामी सप्ताह नाटो की 60वीं जयंती है. जर्मनी की चांसलर अंगेला मेर्कल ने उसे लक्ष्य कर एक नीति वक्तव्य में कहा कि वे कोई विश्वव्यापी नाटो नहीं चाहतीं.

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चांसलर मेर्कल नाटो पर नीति वक्तव्य देते हुएतस्वीर: AP

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन, जिसे संक्षेप में नाटो कहते हैं, अगले महीने अपनी 60 वीं जयंती मनाने जा रहा है. यूरोपीय देशों तथा अमेरिका और कैनेडा को मिला कर बने इस सैनिक गठबंधन की स्थापना, द्वितीय विश्व युद्ध के चार साल बाद, 4 अप्रैल 1949 को वॉशिंगटन में हुई थी. उसकी 60 वीं जयंती के अवसर पर तीन और चार अप्रैल को जर्मनी के बाडन-बाडन और फ्रांस के श्ट्रासबुर्ग में नाटो देशों का शिखर सम्मेलन होगा. जर्मनी इस सम्मेलन में नाटो से क्या कहना चाहता है, इस पर चांसलर अंगेला मेर्कल ने संसद में एक निति-वक्तव्य देते हुए प्रकाश डाला.

चांसलर अंगेला मेर्कल ने अपने भाषण कई ध्यानाकर्षक बातें कहीं. पहली यह कि जर्मनी अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सैनिक उपस्थिति और अधिक बढ़ाने की अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की मांग को आसानी से मान नहीं सकता. वे इसका डट कर विरोध करेंगीः "अफ़ग़ानिस्तान का उदाहरण दिखाता है कि कोई सफलता तभी संभव है, जब नाटो की सारी सैनिक क्षमता वहां स्थिरता लाने की एक व्यापक और सुसंगठित नीति का हिस्सा हो."

चांसलर मेर्कल का इशारा इस बात की तरफ़ था कि अमेरिका नाटो सेनाओं की सहायता से अफ़ग़ानिस्तान में अब तक मुख्य रूप से सैनिक विजय पाने के लिए प्रयत्नशील रहा है. वे चाहती हैं कि वैसे भी, सामन्यतः भी, नाटो को हमेशा विशुद्ध सैनिक-रणनितिक नज़रिया अपनाने के बचना चाहिये. वे कोई "विश्वव्यापी" नाटो भी नहीं चाहतीं: "मैं कोई विश्वव्यापी नाटो नहीं देखती. वह उत्तर अटलांटिक देशों का ही सामूहिक सुरक्षा संगठन है और बना रहना चाहिये."

दूसरी सबसे ध्यानाकर्षक बात थी रूस और नाटो के बीच निकट सहयोग पर बल. चांसलर मेर्कल ने संपूर्ण यूरोप के लिए रूस की सुझायी सुरक्षा-संधि में दिलचस्पी लेते हुए नाटो और रूस के बीच नियमित परामर्शों का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि 20 साल से हम एक-दूसरे के विरोधी नहीं रहे. शीतयुद्ध वाला ज़माना सदा के लिए बीत चुका है. उल्लेखनीय है कि नाटो शिखर सम्मेलन से ठीक पहले रूसी राष्ट्रपति द्मित्री मेद्वेदेव बर्लिन आ रहे हैं.

चांसलर मेर्कल ने तीसरी महत्वपूर्ण बात यह कही कि नाटो को भविष्य में संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय सुरक्षा एवं सहयोग संगठन जैसी संस्थाओं के साथ तालमेल बैठा कर काम करना चाहिये.

एजेंसियां: राम यादव

संपादन: प्रिया एसेलबॉर्न