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मृत्यु और मोक्ष की सबसे अहम कड़ी हैं 'डोम राजा'

१६ जुलाई २०१८

हिंदू धर्म में मोक्ष पाने का एकमात्र केंद्र माने गए बनारस में दो राजा हैं. एक हैं काशीनरेश जो राज्य की राजनीति देखते हैं और दूसरे हैं 'डोम राजा' जिनके अधीन महाश्मशान है. डोम समाज के महत्व का पता मृत्यु के बाद चलता है.

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Bilder aus der heiligen Stadt Varanasi, Indien
तस्वीर: DW/Murali Krishnan

बनारस में गंगा किनारे स्थित प्राचीन श्मशान घाट पर अनादिकाल से चिताएं जल रही हैं. डोम समाज से ताल्लुक रखने वाले बहादुर चौधरी की पिछली पीढ़ियों ने भी यही काम किया है. दिन-रात जलने वाली चिताओं के लिए वह अग्नि का प्रबंध करते हैं. चौधरी अनपढ़, गरीब और निचली जाति से हैं, लेकिन अंतिम संस्कार के वक्त वह सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं. वह लोगों को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त कराने का द्वार दिखाते हैं.

मणिकर्णिका घाट पर चिताओं के जलने से हर तरफ गंध है. इसी में लोगों के रुंदन, काले धुएं और गर्मी की मिलावट है. कुछ दूर पर नागा साधु और भिक्षुक दिखाई देते हैं जो अपने हिस्से का इंतजार कर रहे हैं. चौधरी कहते हैं, ''मृत्यु के बाद ही हमारा काम है.'' डोम समाज का काम हिंदू परिवार के उस पुरुष को मशाल देने का है जिसे चिता को आग लगानी है. डोम राजा सफेद कफन में लिपटे शव को गेंदे के फूलों से सजाने में मदद करते हैं. इसके बाद शव को लकड़ी की चिता के ऊपर रखते हैं अन्य क्रिया कर्म पूरी होती है.

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मुखाग्नि के बाद अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है और इन सारे कामों के लिए डोम राजा पैसे दिए जाते हैं. डोम समाज का हर सदस्य किसी न किसी तरह से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में लगा रहता है. कोई आग की व्यवस्था देख रहा है, कोई लकड़ियों का प्रबंधन देख रहा है या कोई चिता को सजाने के लिए फूल और जेवर का बंदोबस्त कर रहा होता है.

Foto von Sudipto Das
तस्वीर: Sudipto Das

डोम समाज को मिलने वाले दान में काफी अंतर है. कुछ रईस परिवार हजारों रुपये दान में देते हैं और सभी मौजूद मजदूरों को भोजन कराते हैं. वहीं, कुछ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया का खर्च उठाने में असमर्थ होते हैं. दिन में 18 घंटे काम करने वाले चौधरी कभी दिन में 150 रुपये तो कभी पांच हजार तक कमाते हैं. यह उनके बड़े परिवार को चलाने के लिए नाकाफी है, लेकिन वह कोई और काम कर भी नहीं सकते हैं.

तपती गर्मी हो या कड़ाके की सर्दी, डोम समाज की आंखों के सामने बस चिता की अग्नि और कानों में गंगा आरती की गूंज सुनाई देती है. इन सबके बीच मृत शरीर से गिरे सोने के जेवर या दांत की छानबीन भी हो जाती है.

चौधरी चाहते थे कि उनके दोनों बेटे पढ़ें और कोई दूसरा काम-धंधा शुरू करें, लेकिन उनके बेटों ने स्कूल छोड़ दिया और पिता की तरह ही घाट को संभालना शुरू कर दिया. वह कहते हैं, "वक्त बदलता है तो बहुत कुछ बदलता है, लेकिन यहां कुछ नहीं बदलेगा. लोग पैदा होते रहेंगे, मरते रहेंगे और बनारस आते रहेंगे. और जब वे यहां आएंगे तो डोम राजा को ढूंढेंगे जिससे उन्हें मुक्ति मिल सकें.

वीसी/एमजे (एएफपी)

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