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महाराष्ट्र, हरियाणा में बीजेपी से कहां हुई चूक

चारु कार्तिकेय
२४ अक्टूबर २०१९

महाराष्ट्र और हरियाणा विधान सभा चुनावों के नतीजों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है लेकिन उसे झटका लगा है. उसे उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिल सकी हैं जबकि कांग्रेस ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है.

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India Elections
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool

महाराष्ट्र और हरियाणा विधान सभा चुनावों के नतीजे सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए निराशाजनक रहे हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी-शिव सेना गठबंधन ने बहुमत हासिल तो कर लिया है लेकिन पिछली बार के मुकाबले उसे कम से कम 20 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. वहीं हरियाणा त्रिशंकु विधान सभा की ओर बढ़ता नजर आ रहा है, बीजेपी की सीटों में गंभीर गिरावट और कांग्रेस के पिछली बार से कहीं बेहतर प्रदर्शन की बदौलत. 

महाराष्ट्र 

288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधान सभा में 2014 के चुनावों में बीजेपी को 122, शिव सेना को 63, कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटें मिली थीं. बीजेपी-शिव सेना गठबंधन इस बार भी आगे है और सरकार बनाने की ओर बढ़ रहा है. लेकिन दोनों पार्टियों की सीटों में भारी गिरावट आई है. 

Wahlausgang in Indien 2019
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक अनंत बगाएतकर मानते हैं कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सीटों में कमी आने के दो मुख्य कारण हैं, पश्चिमी महाराष्ट्र में सूखे और बाढ़ के समय राज्य सरकार के कुप्रबंधन से पनपा आक्रोश और चुनाव अभियान में बीजेपी के नेताओं द्वारा बार बार राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों का छेड़ना. बगाएतकर ने ये भी बताया कि बीजेपी और शिव सेना दोनों ने ही भारी संख्या में कांग्रेस और एनसीपी छोड़ कर आए दल-बदलू नेताओं को टिकट दिया था (कम से कम 40) और ऐसा लगता है कि इस बात से नाराज हो कर स्थानीय कार्यकर्ताओं और पारम्परिक मतदाताओं ने उनको हरा दिया.

कांग्रेस और एनसीपी ने सीटों में वृद्धि हासिल की है. जहां कांग्रेस को सिर्फ कुछ सीटों की मामूली बढ़त मिली है. एनसीपी इस चुनाव की असली सफल पार्टी बन कर उभरी है. कई नेताओं के पार्टी छोड़ जाने से लेकर कई शीर्ष नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों जैसी कई तरह की चुनौतियों के बावजूद पार्टी ने अपने प्रदर्शन में 15 सीटों की बढ़त हासिल की है. एनसीपी ने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया है और पहली बार कांग्रेस के साथ अपने गठबंधन के इतिहास में बड़ी पार्टी बन कर उभरी है. 

समीक्षक मानते हैं कि एनसीपी के संस्थापक और मुखिया शरद पवार को इसका श्रेय जाता है. 79 वर्ष के कैंसर को पछाड़ने वाले नेता ने एक नौजवान नेता की ऊर्जा से न सिर्फ अपनी पार्टी के लिए कैंपेन किया, बल्कि कांग्रेस में चल रहे गहरे नेतृत्व संकट की वजह से पूरे गठबंधन के नेतृत्व का भार अपने कंधों पर ले लिया. आज के नतीजों से पवार खुश हैं और उन्होंने न सिर्फ महाराष्ट्र के मतदाता का आभार प्रकट किया है बल्कि जनादेश के आगे सर झुकाते हुए विपक्ष में रहना स्वीकार किया है.

Anhänger der Indischen Partei BJP haltzen Plakate nach der Wahl hoch
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

हरियाणा 

एक तरफ महाराष्ट्र के नतीजों ने बीजेपी को चेतने पर मजबूर किया है, तो दूसरी तरफ हरियाणा के मतदाताओं ने बीजेपी को और भी कड़ा संदेश दिया है. सबसे बड़ी पार्टी बने रहने के बावजूद बीजेपी का आंकड़ा बहुमत से काफी दूर है और उसके लिए सरकार बनाना मुश्किल हो गया है. पिछले चुनावों में 15 सीटों पर सिमटी कांग्रेस ने अपनी सीटों को दोगुना कर लिया है और पार्टी सरकार बनाने के प्रयासों में जुट गई है.

राजनीतिक विश्लेषक संजय कपूर कहते हैं कि ये नतीजा बीजेपी के हरियाणा नेतृत्व से ज्यादा केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ है. वो याद दिलाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हरियाणा में जनसभा करने वाले बीजेपी के सभी नेताओं ने कश्मीर से धारा 370 के हटाए जाने और असम में एनआरसी के लागू किए जाने के नाम पर वोट मांगे. उसके बाद अगर मतदाता ने बीजेपी को नकार दिया तो इसका मतलब यही है कि वो इन कदमों से खुश नहीं है. संजय कपूर कहते हैं कि वैसे भी हरियाणा की सरकार का नियंत्रण बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के हाथों में था. 

पर कांग्रेस और बीजेपी से इतर जिसके प्रदर्शन की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो है चुनाव के ठीक पहले पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल के परपोते दुष्यंत चौटाला द्वारा शुरू की गई जननायक जनता पार्टी. जेजेपी ने अपने पहले चुनाव में 10 सीटें हासिल कर ली हैं और सरकार बनाने की कोशिशों में किंगमेकर बन गई है. अब बीजेपी और कांग्रेस दोनों उसे लुभाने में और अपने पाले में ले आने में जुटे हैं.

इन दोनों चुनावों में बीजेपी को सीटें कम होने से निराशा हाथ लगी है. इन चुनावों के ठीक पहले पार्टी लोक सभा चुनावों में और भी भारी बहुमत से जीत दोहराकर और फिर कर्नाटक में सत्ता हासिल कर आत्मविश्वास से भर गई थी. ये नतीजे पार्टी को यथार्थ के धरातल पर ला सकते हैं.

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