मधुमक्खियों के डीएनए पर शोध
२६ अगस्त २०१४दुनिया के कई देशों में मधुमक्खियों की पूरी की पूरी कॉलोनी के मारे जाने की खबर आम सी हो गयी है. ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर मधुमक्खियों के आनुवांशिक ढांचे पर ध्यान दिया जाए और यह समझा जाए कि तीन लाख साल में अलग अलग तरह के माहौल में खुद को ढालने के लिए उनकी जीन में किस किस तरह के बदलाव हुए, तो मधुमक्खियों को बचाया जा सकता है.
अब तक माना जाता था कि मधुमक्खियां मूल रूप से अफ्रीका से नाता रखती हैं. लेकिन आनुवांशिक ढांचे पर शोध करते हुए वैज्ञानिकों को पता चला कि दरअसल वे एशिया से नाता रखती हैं. शोध के लिए 14 देशों से 140 किस्म की मधुमक्खियों का डाटा जमा किया गया. यूरोप और अफ्रीका के अलावा मध्य पूर्व, अमेरिका और ब्राजील की भी मधुमक्खियों की जांच की गयी.
वैज्ञानिकों ने पाया कि अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए मधुमक्खियों ने दूसरे देशों की मधुमक्खियों के साथ प्रजनन किया. इससे वे कई बीमारियों के खिलाफ इम्यून हो गयीं और खुद को बचाने में कामयाब रहीं.
हाल के सालों में कीटनाशकों के इस्तेमाल से मधुमक्खियों की संख्या में भारी कमी आई है. इसके अलावा मोबाइल फोन भी इनके लिए खतरा बने हुए हैं. पहले हुए शोध बताते हैं कि मोबाइल फोन से निकलने वाले सिग्नल के कारण मधुमक्खियां अपना रास्ता भटक जाती हैं और अपने झुंड से अलग हो जाती हैं, बाद में उनकी मौत हो जाती है. फूलों के परागण में ये मधुमक्खियां एक बड़ी भूमिका निभाती हैं. वैज्ञानिकों को डर है कि इनकी संख्या में कमी से फूड चेन में गड़बड़ हो सकती है. ऐसे में फल सब्जियों को उपजाने के नए तरीकों के बारे में भी सोचना पड़ सकता है.
ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने इस बात को खारिज किया है कि मधुमक्खी पालन के कारण उनकी संख्या पर असर पड़ा है, बल्कि उन्होंने इस ओर इशारा किया है कि भविष्य में खेती मधुमक्खियों के डीएनए के अनुरूप होनी चाहिए.
आईबी/ओएसजे (एएफपी)