मणिपुर में ही नहीं दिखेगी 'मेरी कॉम'
३ सितम्बर २०१४जानी-मानी महिला बॉक्सर एमसी मेरी कॉम के जीवन पर बनी फिल्म 'मेरी कॉम' का वर्ल्ड प्रीमियर चार सितंबर को टोरंटा अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव के शुरूआती दिन होगा. यह फिल्मोत्सव के पहले दिन दिखाई जाने वाली पहली हिन्दी फिल्म है. लेकिन यह विडंबना ही है कि यह फिल्म मेरी कॉम के गृह राज्य मणिपुर में ही नहीं दिखाई जाएगी. इसकी वजह यह है कि मणिपुर में पिछले कोई डेढ़ दशक से हिन्दी फिल्मों के प्रदर्शन पर पाबंदी है. यह पाबंदी सरकार ने नहीं, बल्कि उग्रवादी संगठनों ने लगा रखी है.
पाबंदी
इस पूर्वोत्तर राज्य में विभिन्न उग्रवादी संगठनों ने वर्ष 2000 में हिन्दी फिल्मों और टीवी सीरियलों के प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी थी. उनकी दलील थी कि इन फिल्मों से राज्य की संस्कृति और सामाजिक व नैतिक मूल्यों के लिए खतरा पैदा हो गया है. सरकार और गैर-सरकारी संगठनों की तमाम कोशिशों के बावजूद संगठनों ने इस पाबंदी को खत्म करने या इसमें ढील देने की कोई पहल नहीं की.
यह देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा (छोटे-बड़े कोई तीन दर्जन) उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं. राज्य में उग्रवाद पर अंकुश लगाने के लिए ही यहां सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम जैसे कानून लागू किए गए हैं, जिसे खत्म करने की मांग में सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला पिछले 14 साल से अनशन पर हैं. लेकिन बावजूद इसके न तो वह कानून खत्म हुआ है और न ही उग्रवाद पर अंकुश लग सका है. एक साल पहले अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और फिल्म के निदेशक ओमंग कुमार ने मणिपुर का दौरा किया था. तब उन्होंने उम्मीद जताई थी कि राज्य के लोग खुद को इस फिल्म से जोड़ने में कामयाब रहेंगे और अपवाद के तौर पर इसके प्रदर्शन की इजाजत मिल जाएगी. लेकिन इसके रिलीज की तारीख करीब आने के बावजूद उग्रवादी संगठन अपनी पाबंदी में ढील देने के मूड में नहीं हैं. इन संगठनों ने कहा है कि फिल्म भले मेरी कॉम के जीवन पर बनी है, इसमें न तो स्थानीय कलाकारों ने काम किया है और न ही इसके किसी सीन की शूटिंग मणिपुर में की गई है.
प्रतिक्रिया
बॉक्सर मेरी कॉम ने तो अब तक इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. लेकिन स्थानीय युवकों का कहना है कि उनको यह फिल्म देखने का मौका मिलना चाहिए और अपवाद के तौर पर इसे राज्य में रिलीज करने की इजाजत दी जानी चाहिए. उग्रवादी संगठनों के डर के मारे कोई भी अपना नाम नहीं बताना चाहता. फिल्म निर्माता थंगजामांग हाओकिप कहते हैं, "भले ही इस फिल्म की शूटिंग मणिपुर में नहीं हुई है, लेकिन इसे अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुंचाना चाहिए." वह कहते हैं कि राज्य में इसके प्रदर्शन की स्थिति में दूर-दराज इलाकों के लोग भी इसे देख कर मेरी कॉम के सफर से प्रेरणा ले सकते हैं.
एक युवक कहता है, "यहां हिन्दी फिल्मों पर पाबंदी है. लेकिन हम यह फिल्म देखना चाहते हैं. इसके प्रदर्शन की इजाजत दी जानी चाहिए." एक आदिवासी संगठन ने भी उग्रवादी संगठनों से इस फिल्म को यहां रिलीज करने की अनुमति देने की अपील की है. लेकिन अब तक उन संगठनों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई है. कुछ लोगों ने फिल्म की यह कहते हुए आलोचना की है कि इसमें किसी मणिपुरी कलाकार को नहीं लिया गया है. लेकिन मेरी कॉम के कोच यह कहते हुए इसका समर्थन करते हैं, "काम कोई भी करे, कहानी तो हमारी है. एक भारतीय के तौर पर हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए."
प्रदर्शन की कोशिश
मेरी कॉम के निर्माता इस फिल्म को मणिपुर में रिलीज कराने के लिए राज्य सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं. लेकिन उनको भी इसकी अनुमतकि मिलने की उम्मीद कम ही है. सुरक्षा के सवाल पर सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हैं. राज्य के सिनेमा हॉल मालिक भी इसके प्रदर्शन के इच्छुक हैं. लेकिन उग्रवादियों के डर से वह खुल कर इसका समर्थन नहीं कर रहे हैं. एक सिनेमा हॉल मालिक कहते हैं, "इस फिल्म के रिलीज होने पर हमें इससे मोटी कमाई की उम्मीद थी. राज्य के लोग मेरी कॉम के जीवन और सफर को देखने के लिए सिनेमा हॉलों की ओर खिंचे चले आते. लेकिन ऐसा संभव नहीं लगता."
वैसे, फिल्म के निर्माताओं और मेरी कॉम के समर्थकों ने अब तक उम्मीद नहीं छोड़ी है. उनके समर्थक तो इस फिल्म को देखने के लिए असम तक जाने की योजना बना रहे हैं.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: ईशा भाटिया