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समाज

मंदिरों के कपाट बंद हैं और पंडों के कमाई के रास्ते भी

प्रभाकर मणि तिवारी
१० अप्रैल २०२०

श्रद्धालुओं का इहलोक और परलोक सुधारने की बात करने वाले पंडे और पुरोहित लॉकडाउन से संकट में हैं. मंदिरों के कपाट बंद हैं और पंडों के कमाई के रास्ते. बंगाल के पंडों ने राज्य सरकार से मदद मांगी.

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तस्वीर: DW/Prabhakar

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित कालीघाट मंदिर पूरी दुनिया में मशहूर है. इसके अलावा हुगली के किनारे बसे दक्षिणेश्वर मंदिर में रोजाना दूर-दराज से हजारों दर्शनार्थी पहुंचते हैं. इनसे मिलने वाले चढ़ावे से हजारों पंडों और पुरोहितों की रोजी-रोटी चलती है. राज्य के प्रमुख मंदिरों में पुरोहितों की तादाद लगभग दो हजार है. लेकिन कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के अंदेशे से लॉकडाउन के दौरान तमाम बड़े मंदिरों के बंद रहने से इनके चढ़ावे और दक्षिणा से रोजी-रोटी चलाने वाले हजारों पंडों-पुरोहितों के सामने फाकाकशी की नौबत आ गई है. इन लोगों ने निरुपाय होकर अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस मामले में हस्तक्षेप की गुहार लगाई है.

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हुगली नदी के किनारे बसा है दक्षिणेश्वर मंदिर. तस्वीर: DW/Prabhakar

कोरोना की वजह से होने वाले लॉकडाउन से पहले तक इन मंदिरों में रोजाना भारी भीड़ जुटती थी. लेकिन लॉकडाउन के दौरान सुरक्षा के लिहाज से इन मंदिरों को बंद करने के बाद अब मंदिरों और उनके आसपास के इलाकों में सन्नाटा पसरा है. नतीजतन चढ़ावे के तौर पर रोजाना होने वाली कमाई बंद है. इसकी वजह से पुरोहितों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है. इन पुरोहितों का परिवार मंदिरों के चढ़ावे से होने वाली कमाई से ही चलता था.

लगातार बढ़ती परेशानी की वजह से इन पुरोहितों के एक प्रतिनिधिमंडल ने इसी सप्ताह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर उनको अपनी समस्या से अवगत कराया है और मदद की गुहार लगाई है. इन पुरोहितों की आशंका 14 अप्रैल तक की ही नहीं है. कोरोना के मामलों में लगातार तेजी आने की वजह यह तय माना जा रहा है कि लॉकडाउन अभी लंबा खिंचेगा. इससे परिस्थिति और जटिल होने का अंदेशा है. कोलकाता के एक मंदिर के पुरोहित धीमान बनर्जी कहते हैं, "हमारा कोई नियमित वेतन नहीं है. रोजोना मिलने वाली दक्षिणा और चढ़ावा ही हमारी आय का एकमात्र साधन है. लेकिन मंदिरों में ताला बंद होने की वजह से अब हम लोग पैसे-पैसे के लिए मोहताज होते जा रहे हैं.”

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लॉकडाउन के दौरान दिखती कोलकाता की खाली सड़कें.तस्वीर: DW/Prabhakar

धीमान बताते हैं कि घर में जो बची-खुची रकम थी वह भी तेजी से खर्च हो रही है. अब लॉकडाउन लंबा खिंचने पर हमारे सामने भुखमरी की नौबत आ जाएगी. एक अन्य पुरोहित सुदर्शन मुखर्जी भी धीमान की बातों का समर्थन करते हैं. वह कहते हैं, "मंदिर में कमाई बंद होने की वजह से हमें न तो मंदिर समिति की ओर से कोई सहायता मिल रही है और न ही सरकार की ओर से. हम तो न इधर के हैं और न उधर के. सरकार गरीबों और मजदूरों के लिए तो राशन-पानी का इंतजाम कर रही है. लेकिन हमें वह सुविधा भी नहीं मिल रही है.”

मोटे आंकड़ों के मुताबिक, राज्य के मंदिरों में लगभग दो हजार पुरोहित नियमित रूप से पूजा-अर्चना करते हैं. कालीघाट और दक्षिणेश्वर समेत तमाम प्रमुख मंदिरों में पंडे का काम करने वाले लोगों की तादाद भी कम से कम दो हजार है. उनके अलावा इन मंदिरों के आस-पास फूल और प्रसाद की दुकान लगाने वालों की तादाद भी हजारों में है. लेकिन लंबे लॉकडाउन से इन सबके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है.

धीमान कहते हैं, "राज्य सरकार ने फूल, बीड़ी और चाय उद्योग जैसे कई क्षेत्रों को छूट दी है. हमने मुख्यमंत्री से मंदिरों के मामले में भी आंशिक छूट देने का अनुरोध किया है ताकि दर्शनार्थियों का आना शुरू हो सके.” वह कहते हैं कि मंदिरों में आने वाले लोग मास्क, सोशल डिस्टेंस औऱ दूसरे सुरक्षा उपाय अपना सकते हैं.

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कालीघाट मंदिर, कोलकातातस्वीर: DW/Prabhakar

कालीघाट मंदिर में पंडे का काम करने वाले निर्मल चटर्जी बताते हैं, "लॉकडाउन के बाद से ही कमाई पूरी तरह ठप हो गई है. छह लोगों का परिवार में मैं ही अकेला कमाऊ सदस्य हूं. लेकिन अब परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो गया है.” तमाम मंदिर समितियों ने भी इस मामले में अपने हाथ खड़े कर दिए हैं. एक मंदिर समिति के सचिव वीरेंद्र गांगुली कहते हैं, "मंदिरों की आय ठप है. ऐसे में हम पुरोहितों की सहायता कैसे कर सकते हैं. अब सरकार चाहे तभी कुछ हो सकता है.”

वैसे, लॉकडाउन का एलान होने के पहले से ही महानगर के कई प्रमुख मंदिरों ने दर्शनार्थियों की भीड़ को नियंत्रित करना शुरू कर दिया था. दक्षिणेशर मंदिर ट्रस्ट के सचिव कुशल चौधरी बताते हैं, "हमने मार्च के दूसरे सप्ताह से ही दर्शनार्थियों की भीड़ पर अंकुश लगा दिया था. इसके तहत लोगो को छोटे- समूहों में ही भीतर आने दिया जा रहा था. पूजा और दर्शन पर तो रोक नहीं थी. लेकिन दर्शनार्थियों की आवाजाही पर अंकुश लगा दिया गया था.”

बीरभूम जिले में स्थित मशहूर तारापीठ मंदिर तो लॉकडाउन से पहले तक खुला था. लेकिन बाद में राज्य सरकार के निर्देश पर मंदिर को बंद कर दिया गया. यहां भी देश-विदेश से रोजाना हजारों लोग पहुंचते थे. मंदिर सेवायत समिति के सदस्य पुलक चटर्जी बताते हैं, "केंद्र और राज्य सरकार के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए मंदिर को बंद करने का फैसला किया गया. इससे आर्थिक समस्या तो है. लेकिन सुरक्षा पहले जरूरी है. इसके अलावा लॉकडाउन की वजह से अगर दर्शनार्थी ही नहीं आएंगे तो मंदिर खुला रखना बेमतलब है.”

राज्य सरकार के सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पुरोहितों की मांग पर सहानुभूति के साथ विचार करने का भरोसा दिया है. उन्होंने भरोसा दिया है कि 11 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बैठक में अगर लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला होता है सरकार पुरोहितों की सहायता पर विचार कर सकती है.

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