1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भाले की जगह लड़ाकों ने थामा बल्ला

१५ मार्च २०१२

केन्या के मासाई लड़ाकों ने अचानक युद्ध के हथियार छोड़ कर गेंद बल्ला थाम लिया है. पैड बांध कर विकेट के सामने खड़े हो गए हैं और धड़ल्ले से क्रिकेट खेलने लगे हैं. आखिर यह माजरा क्या है.

https://p.dw.com/p/14KyT
लाइकीपिया में मासाई समुदाय की क्रिकेट टीमतस्वीर: Getty Images

केन्या में रहने वाले मासाई जाति के लोग यूं तो खानाबदोश हैं और इधर उधर ठिकाने बनाने में यकीन रखते हैं. कुछ साल पहले इनकी दिलचस्पी क्रिकेट की तरफ हो गई. फ्रांसीस मेशामे अब मासाई क्रिकेट के सदस्य हैं. उन्होंने ढाल की जगह पैड बांध लिए हैं और भाले की जगह बल्ला उठा लिया है. मेशामे कहते हैं, "यह एक आसान खेल है क्योंकि जब आप बॉलिंग करते हैं तो यह भाला फेंकने जैसा ही है."

हालांकि क्रिकेट खेलने के लिए इन्होंने ड्रेस नहीं बदली. ये अपने पारंपरिक कपड़ों में ही खेलते हैं. 29 साल के मेशामे का कहना है, "हम जो पैड पहन रहे हैं, वह हमारी ढाल की तरह है, जबकि बल्ला हमें हमारे रुंगू यानी भाले की तरह लगता है."

कहां से आया क्रिकेट

केन्या कई साल तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा है और इसी वजह से यहां क्रिकेट बहुत लोकप्रिय हुआ है. हालांकि केन्या की अंतरराष्ट्रीय टीम है और वह वर्ल्ड कप में भी खेलता है, पर यह सिर्फ बड़े शहरों में खेला जाता है. मासाई कबीले के लोगों ने पांच साल पहले तक इस खेल के बारे में सुना तक नहीं था. लेकिन तभी एक क्रिकेट फैन आलिया बावर ने यहां के बच्चों को इस खेल के बारे में बताया.

वह बच्चों को लेकर मोम्बासा द्वीप पर गईं, जहां मैच खेला गया. अब 34 साल की हो चुकीं बावर सात साल से केन्या में रह रही हैं. मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका की बावर इससे पहले क्रिकेट में स्कोरिंग किया करती थीं. उनका कहना है, "अब बड़े हो रहे बच्चों की दिलचस्पी भी क्रिकेट में बढ़ने लगी है." टीम में करीब 20 खिलाड़ी हैं. इनमें से एक 23 साल के वेबलेन नागाइस इसे अजीबोगरीब खेल मानते हैं.

कौन हैं ये लोग

मासाई जाति के लोग केन्या और तंजानिया इलाकों में रहते हैं. वे अपने खास पहनावे की वजह से दूर से ही पहचान में आ जाते हैं. केन्या में करीब साढ़े आठ लाख मासाई हैं, जो स्थानीय भाषा स्वाहिली के अलावा अंग्रेजी भी बोल लेते हैं.

केन्या और तंजानिया की सरकारों ने कई बार मासाई लोगों से कहा है कि वे अपनी खानाबदोशी को छोड़ कर स्थायी जीवन बिताने पर ध्यान दें. लेकिन पर्यावरण जानकारों का कहना है कि उनकी परंपरा से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए. वे लोग रेगिस्तानी इलाकों में भी खेती करने में माहिर होते हैं. मासाई झंडे पर भाले और ढाल का निशान है और वे लोग लकड़ी तथा फूस के बने घरों में रहते हैं.

Kenia Sport Maasai spielen Cricket in Laikipia
सामाजिक कुरीतियों और मुश्किलों के बारे में भी क्रिकेट के जरिए चर्चातस्वीर: Getty Images

बावर का कहना है कि किसी को नया खेल सिखाना आसान चुनौती नहीं होती और अगर खेल का पूरा किट न मिल पाए तब तो और भी मुश्किल होती है. लेकिन कई लोगों ने मासाई क्लब की मदद की है. इनके क्लब का नाम मासाई क्रिकेट वॉरियर है और इनके पास बैट, बॉल, पैड और दस्ताने हैं. बावर का कहना है कि भाला फेंकने में निपुण होने की वजह से यहां के लोग अच्छी बॉलिंग कर सकते हैं.

क्रिकेट की दीवानगी

खेल को लेकर दीवानगी इस कदर है कि इनके खिलाड़ी सिर्फ खेलने के लिए हर रोज आठ किलोमीटर चल कर आने के लिए तैयार हैं. यानी हर रोज 16 किलोमीटर की वॉक.

टीम के बॉलर बहुत अच्छे माने जाते हैं और उनकी गेंदबाजी बड़ी सधी हुई होती है. पिछले साल क्रिकेटर विदाउट बोर्डर (सीडब्ल्यूबी) के कुछ ट्रेनरों ने इनका खेल देखा और उन्हें अवार्ड भी दिया. टीम के दो सदस्य मोम्बासा में क्रिकेट की ट्रेनिंग ले रहे हैं. यह अकादमी केन्या के रिटायर हो चुके राष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ियों ने खोला है.

क्रिकेट टीम के खिलाड़ी अपने कबीले में जागरूकता फैलाने की भी कोशिश कर रहे हैं, जो कम उम्र में शादी और महिलाओं के साथ ज्यादती के लिए बदनाम है. अब ये खिलाड़ी स्कूलों में जाते हैं और महिला पुरुष समानता के अलावा पर्यावरण सुरक्षा और शादी की ठीक उम्र की बात करते हैं. बावर का कहना है कि अब इलाके के 20 स्कूलों में क्रिकेट के बारे में बताया जाता है.

अजीब बात है कि देश के दूसरे हिस्सों में क्रिकेट से ज्यादा फुटबॉल या रग्बी जैसे खेल हैं. हालांकि केन्या की राष्ट्रीय टीम 2003 के वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल तक पहुंच गई थी. मासाई लोगों की मुश्किल यह है कि उनके पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं और मुकाबले के लिए कोई टीम भी नहीं मिलती. लेकिन इरादे बुलंद हैं. सोनयांगा का कहना है, "जल्दी या देर में. केन्या की राष्ट्रीय टीम में जरूर एक या एक से ज्यादा मासाई खिलाड़ी होगा."

रिपोर्टः एयमेरिक विंसेनॉट (एएफपी)/ए जमाल

संपादनः आभा मोंढे