भारत में सभी समुदायों में गिरी प्रजनन दर
एनएफएचएस के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में सभी समुदायों में प्रजनन दर गिर गई है. विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय में सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई है.
गिरी राष्ट्रीय दर
एनएफएचएस के ताजा आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रजनन दर गिर कर दो पर आ गई है. प्रजनन दर यानी एक महिला के पूरे जीवन में होने वाले बच्चों की औसत संख्या. एनएफएचएस के पिछले दौर में यह आंकड़ा 2.2 था.
रिप्लेसमेंट स्तर से नीचे
1992-93 में जब एनएफएचएस की शुरुआत हुई थी, तब राष्ट्रीय प्रजनन दर 3.4 थी. सर्वेक्षण के ताजा दौर तक इसमें 40 प्रतिशत गिरावट आई है. अब यह प्रतिस्थापन स्तर से भी नीचे आ गई है. प्रतिस्थापन स्तर यानी वो स्तर जहां बस उतने ही बच्चे पैदा होते हैं जिनसे आबादी स्थिर रह सके.
मुसलमानों में सबसे तेज गिरावट
प्रजनन दर में गिरावट सभी समुदायों में देखी गई है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में यह सबसे तेजी से गिरी है. एनएफएचएस के पिछले दौर से इस दौर के बीच मुसलमानों में प्रजनन दर 9.9 प्रतिशत गिरी है. 1992-93 में मुसलमानों में प्रजनन दर 4.4 थी जो अब गिर कर 2.3 पर आ गई है.
बौद्ध समुदाय में सबसे कम
दूसरे समुदायों में प्रजनन दर और नीचे है. हिन्दुओं में यह 1.94 है, ईसाइयों में 1.88, सिखों में 1.61, जैनों में 1.6 और बौद्धों और नव बौद्धों में 1.39 है.
शिक्षा की बड़ी भूमिका
एनएफएचएस के मुताबिक महिलाओं की शिक्षा का प्रजनन दर से सीधा रिश्ता है. प्रति महिला बच्चों की संख्या महिलाओं के स्कूल जाने के स्तर के हिसाब से गिरी है. जो महिलाएं कभी भी स्कूल नहीं गईं उनके औसतन 2.8 बच्चे हैं और जो 12 या उससे ज्यादा सालों तक स्कूल गई हैं उनके 1.8 बच्चे हैं.
आर्थिक स्तर भी जिम्मेदार
रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक तरक्की से भी प्रजनन दर में सुधार आता है. आर्थिक दृष्टि से सबसे निचले पायदान पर खड़ीं औरतें सबसे ऊंचे पायदान वाली औरतों के मुकाबले औसतन 1.0 ज्यादा बच्चे पैदा करती हैं.