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भारत में कोरोना संकट से उपजे कई राजनीतिक संकट

समीरात्मज मिश्र
१५ अप्रैल २०२०

कोरोना के खतरों के बीच भारतीय चुनाव आयोग ने राज्य सभा और कुछ राज्यों के विधान सभा चुनावों को टालने की घोषणा कर दी लेकिन कुछ राज्यों में कोरोना महामारी सामाजिक और आर्थिक संकट के साथ-साथ राजनीतिक संकट की वजह भी बन गयी है.

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तस्वीर: UNI

राज्यसभा की 55 सीटों पर चुनाव आयोग ने पिछले महीने चुनाव कराने का ऐलान किया था. हालांकि इनमें से 37 सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध जीत गए, लेकिन 18 सीटों के लिए 26 मार्च को मतदान होना था. आयोग ने इस मतदान को टाल दिया. उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों में विधान परिषद के चुनाव होने थे, वो भी टल गए.

लेकिन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में अलग तरह की राजनीतिक स्थिति आ पहुंची है. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में कोरोना संकट के बीच, देश में लॉकडाउन शुरू होने से ठीक पहले 23 मार्च को बीजेपी ने सरकार तो बना ली लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार अब तक न हो सका. पहले माना जा रहा था कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है लेकिन लॉकडाउन के तीन मई तक बढ़ जाने के बाद इसकी संभावना भी धूमिल हो गई है.

कोरोना संकट के इस मुश्किल दौर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अकेले ही संघर्ष करते हुए नजर आ रहे हैं. भोपाल और इंदौर जैसे महानगरों में कोरोना के बढ़ते प्रकोप से हालात बदतर होते जा रहे हैं. विपक्षी कांग्रेस पार्टी शिवराज सरकार को लेकर हमलावर हो गई है और अभी तक कैबिनेट गठन नहीं होने पर सवाल खड़े कर रही है.

मध्य प्रदेश में कोरोना पॉजिटिव मरीजों का आंकड़ा सात सौ के करीब पहुंच चुका है. इंदौर और भोपाल में बड़ी तादाद में मरीज मिल रहे है. इंदौर में 362 तो भोपाल में 144 कोरोना पॉजिटिव मरीज मिल चुके है. पूरे प्रदेश में 50 लोग कोरोना की वजह से मर चुके है. यह संख्या महाराष्ट्र के बाद देश में दूसरे नंबर पर है. इंदौर में तो स्थिति बेकाबू होती जा रही है जहां अब तक 35 लोगों की मौत हो चुकी है. मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के अलावा कोई भी मंत्री नही है.

हालांकि कोरोना संकट को देखते हुए बीजेपी ने अब एक टास्क फोर्स बनाया है जो सरकार की मदद करेगी. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को इसका संयोजक बनाया गया है. इस टास्क फोर्स में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, वरिष्ठ नेता नरोत्तम मिश्र और ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी तुलसी सिलवट को भी सदस्य बनाया गया है.

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, "संसदीय प्रणाली में भी कोरोना की वजह से कई दिलचस्प बातें देखने को मिल रही हैं. केवल मुख्यमंत्री के भरोसे लगभग एक महीना तक कोई राज्य सरकार चली हो, ऐसा शायद ही कभी हुआ हो. राष्ट्रपति शासन की बात अलग है. हालांकि उस समय भी उसके पास सलाहकारों की एक टीम होती है. यही नहीं, राज्य सभा का चुनाव तो टला ही है जो लोग निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं, वो अब तक शपथ नहीं ले सके हैं और यह भी पहली बार हुआ है.”

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने आरोप लगाया है कि कोरोना संकट के दौरान भी बीजेपी, कांग्रेस सरकार गिराने का षड़यंत्र रचती रही और इस संकट की ओर उसने ध्यान नहीं दिया. एक प्रेस वार्ता में उन्होंने आरोप लगाया, "प्रदेश में प्रजातंत्र के नाम पर एक मुख्यमंत्री मात्र हैं. न स्वास्थ्य मंत्री है, न गृह मंत्री है, मतलब कैबिनेट ही नहीं है. न ही लोकल बॉडी है, सब नदारद है. प्रदेश के हैल्थ डिपार्टमेंट की प्रिंसिपल सेकेट्री सहित 45 से अधिक अधिकारी कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं. बीजेपी की सत्ता की भूख ने देश को संकट में डाला है. देश में अकेली मध्य प्रदेश सरकार है जहां स्वास्थ्य मंत्री भी नहीं है.”

संवैधानिक जानकारों के मुताबिक, राज्यों में राज्यपाल को सरकार संचालन में सहायता के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद होती है लेकिन इसमें कितने सदस्य होंगे या फिर अकेले मुख्यमंत्री ही कब तक संपूर्ण मंत्रिपरिषद का प्रतिनिधित्व करता रहेगा, इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया है.

वहीं दूसरी ओर, महाराष्ट्र में कोरोना संकट के चलते राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर भी संकट के बादल मँडरा रहे हैं. दरअसल, मुख्यमंत्री बनते वक्त उद्धव ठाकरे विधान सभा और विधान परिषद में से किसी के भी सदस्य नहीं थे. 28 नवंबर 2019 को उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. संविधान की धारा 164 (4) के अनुसार उद्धव ठाकरे को 6 महीने के भीतर किसी भी सदन का सदस्य बनना अनिवार्य है. ऐसा न होने की स्थिति में उन्हें इस्तीफा देना पड़ सकता है.

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उद्धव ठाकरे के हाथों से समय फिसला जा रहा है.तस्वीर: AFP

जहां तक विधानसभा का सदस्य बनने का सवाल है तो उसके लिए विधानसभा की कोई सीट खाली करानी होगी और फिर वहां चुनाव कराने होंगे. दूसरा रास्ता विधान परिषद की सदस्यता पाने का है. दोनों ही स्थितियों में उद्धव ठाकरे का किसी भी सदन का सदस्य बन पाना मुश्किल दिख रहा है.

महाराष्ट्र के विधान परिषद के 9 सदस्यों का कार्यकाल 24 अप्रैल को खत्म हो रहा है. इन सीटों पर चुनाव होने थे, जिन्हें कोरोना संकट की वजह से टाल दिया गया है. ऐसा माना जा रहा था कि उद्धव ठाकरे भी इन्हीं में से किसी एक सीट पर चुनाव लड़ कर विधान परिषद में पहुंचने की योजना बना रहे थे. लेकिन अब आयोग इन सीटों पर कब चुनाव कराएगा, ये कहना मुश्किल है.

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, "विधान परिषद में पहुंचने का एक रास्ता उद्धव ठाकरे के पास यह हो सकता है कि वो मनोनीत सीट के जरिए पहुंचे. लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी राज्य सरकार की इस सलाह पर अमल करते हैं या नहीं.”

हालांकि मुख्यमंत्री पद बरकरार रखने के लिए उद्धव ठाकरे के सामने यह रास्ता भी है कि छह महीने का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही वह इस्तीफा दे दें और फिर नए सिरे से मंत्रिपरिषद का गठन करें. ऐसी स्थिति में उन्हें किसी भी सदन का सदस्य बनने के लिए छह महीने का समय फिर मिल जाएगा. लेकिन ऐसा होने पर यहां भी एक बार मध्य प्रदेश जैसी ही स्थिति आ सकती है.

मुख्य मंत्री के इस्तीफा देने के साथ ही पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ेगा और सरकार गिर जाएगी. नए सिरे से सरकार बनाने के लिए राज्यपाल को पत्र देने से लेकर शपथ ग्रहण की तारीख तय करने जैसी पूरी प्रक्रिया नए सिरे से शुरू करनी होगी. कोरोना संकट को देखते हुए एक साथ पूरे मंत्रिपरिषद का शपथ ग्रहण कराना कितना आसान होगा, यह कहना मुश्किल है. ऐसी स्थिति में उद्धव ठाकरे के पास शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों के समर्थन और बहुमत के बावजूद राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की भी सिफारिश कर सकते हैं.

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