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भारत में केंद्रीय मंत्रियों का विवेकाधिकार खत्म

३० जुलाई २०११

भारत में केंद्र सरकार के मंत्रियों के विवेक के आधार पर फैसला करने के अधिकार को खत्म कर दिया गया है. वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने रविवार को इसका एलान किया.

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तस्वीर: UNI

प्रणब मुखर्जी भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए बनाए गए केंद्रीय मंत्रियों के समूह के अध्यक्ष हैं. उ उन्होंने कहा कि मंत्रियों के समूह ने अपने सुझाव सौंप दिए हैं जिन पर अमल के लिए कानून मंत्रालय और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग काम कर रहे हैं. विवेकाधिकार में समाज सुधार जैसे मंत्रालयों के मंत्रियों को खर्च करने के लिए कई फंड दिए जाते हैं. इसमें गैस पंप और गैस कनेक्शन के कूपन भी दिए जाते थे जिन्हें पहले ही खत्म किया जा चुका है.

नियुक्तियों का मामला विवेकाधिकार नहीं

हालांकि वित्त मंत्री ने यह साफ कर दिया कि भूटान और नेपाल जैसे देशों के छात्रों को भारत के मेडिकल कॉलेजों में दी जाने वाली सीट और बैंकों के अनाधिकारिक निदेशकों की नियुक्ति जैसे मामले विवेकाधिकार के दायरे में नहीं आते. ये सरकार की तरफ से लिए जाने वाले सामूहिक फैसले हैं जो कैबिनेट की नियुक्ति समिति देखती है.

भ्रष्टाचार की जांच में तेजी

प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक सख्त कार्यक्रम तैयार कर लिया गया है. इसमें भ्रष्ट जनसेवकों के खिलाफ कोर्ट और विभागीय जांच को तेजी से पूरा किया जाएगा. दोषी जनसेवकों को पद से हटाने या सजा देने के बारे में तीन महीने के भीतर फैसला ले लिया जाएगा. इसके अलावा मंत्रियों के समूह ने यह सुझाव भी दिया है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई की 71 विशेष अदालतें गठित की जाएंगी जिनके बारे में सरकार पहले ही अपनी मंजूरी दे चुकी है. इनमें से 10 अदालतों ने तो काम करना भी शुरू कर दिया है.

10 साल से ज्यादा समय से लंबित पड़े भ्रष्टाचार निरोधक मामलों को तुरंत निपटाया जाएगा और केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों के सतर्कता प्रशासन को मजबूत किया जाएगा. खासतौर से कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सतर्कता विंग को तो बेहद चुस्त दुरुस्त बनाने का सुझाव दिया गया है.

हालांकि मंत्रियों के समूह ने संविधान की धारा 311 में संशोधन करने से इनकार किया है. यह धारा किसी जनसेवक के बड़े अपराधों और घोर भ्रष्टाचार के मामलों में संक्षिप्त कार्यवाही से जुड़ी है.

मंत्रियों के समूह ने प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के लिए एक खुला और प्रतियोगी तंत्र बनाने का सुझाव दिया है जो सरकारी खरीद और ठेके देने की प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता बरतेगा. इन सुझावों को तैयार करने में भारत सरकार के पूर्व सचिव अशोक चावला और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव विनोद ढल की सेवाएं लेकर सुझाव तैयार किए गए हैं. इसके अलावा सरकारी खरीद मानक और सरकारी खरीद नीति का भी विस्तार से परीक्षण करने के बाद ही सुझावों का ड्राफ्ट तैयार किया गया है. सचिवों की समिति इस मामले में अपने सुझाव अगस्त के मध्य तक दे देगी.

Anna Hazare und Kiran Bedi
तस्वीर: UNI

लोकपाल पर चर्चा

मंत्रियों के समूह ने लोकपाल मसले पर भी चर्चा की जिसके बारे में एक विधेयक लाने की तैयारी चल रही है. मानसून सत्र में यह विधेयक पेश किया जाना है जिसके ड्राफ्ट पर मंत्रियों के बीच सहमति हो गई है. इस ड्राफ्ट में प्रधानमंत्री, सासंदों के संसदीय कार्य और न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है.

प्रणब मुखर्जी ने इस बारे में कहा कि अगर प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा गया तो इससे 'संस्थागत स्थाई अस्थिरता' पैदा होगी. प्रणब मुखर्जी अन्ना हजारे के साथ गठित की गई लोकपाल विधेयक की ड्राफ्ट कमेटी के भी अध्यक्ष हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री को इस दायरे से बाहर रखने के फैसले का बचाव करते हुए कहा, "सनक के इस दौर में कोई भी लोकपाल के सामने प्रधानमंत्री की लिखित में शिकायत कर देगा और फिर पूरी सरकार चली जाएगी. अगर लोकपाल को पहली नजर में ही इस में कोई आधार दिखता है तो प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ेगा. हमारे तंत्र में प्रधानमंत्री सबसे आधारस्रोत हैं और उनके जाने से पूरी सरकार चली जाएगी."

इस विधेयक के खिलाफ अन्ना हजारे ने 16 अगस्त से अनशन पर जाने की चेतावनी दी है. इस पर प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अगर गांधीवादी नेता अन्ना हजारे नागरिक समिति के तैयार किए बिल को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं तो उन्हें राजनीतिक पार्टियों को इसके लिए तैयार करना होगा जिससे कि इसे संसद में बिना बहस के ही पारित कर दिया जाए.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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