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भारत-चीन के बीच कूटनीतिक कोशिशें तेज

चारु कार्तिकेय
२४ जून २०२०

भारत और चीन सैन्य गतिरोध को शांत करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों में जुट गए हैं. बुधवार को दोनों देशों के सरकारी अधिकारियों के बीच में भी बात-चीत हो सकती है, लेकिन सैन्य गतिरोध जस का तस बना हुआ है.

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Konflikt China Indien | Ganderbal-Grenze
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Press/I. Abbas

गलवान घाटी में भारतीय सेना के 20 सैनिकों के मारे जाने के लगभग 10 दिन बाद ऐसा लग रहा है कि भारत और चीन गतिरोध को शांत करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों में जुट गए हैं. समस्या यह है कि इन प्रयासों की पृष्ठभूमि में जो सैन्य गतिरोध है वह अपनी जगह जस का तस बना हुआ है.

मीडिया में आई खबरों में दावा किया जा रहा है कि सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत के एक दिन बाद, बुधवार को दोनों देशों के सरकारी अधिकारियों के बीच में भी बातचीत होगी. बताया जा रहा है कि जॉइंट सेक्रेटरी स्तर की इस वर्चुअल बातचीत में भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय के पूर्वी एशिया विभाग में जॉइंट सेक्रेटरी और चीन की तरफ से विदेश मंत्रालय के बाउंड्री एंड ओशिएनिक विभाग के डायरेक्टर जनरल भाग लेंगे. 

जानकारों का मानना है कि शुक्रवार से लेकर अभी तक के बयानों और बातचीत के अलग अलग दौर से संकेत यही मिलता है कि गतिरोध की तीव्रता को कम करने की मजबूत कोशिशें की जा रही हैं. माना जा रहा है कि स्थिति के स्थिर होने में रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों के बीच चल रही वर्चुअल बैठक का भी महत्वपूर्ण योगदान है. बैठक में मंगलवार को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि भारत और चीन दोनों ने शांतिपूर्ण समाधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है.

लावरोव ने यह भी कहा कि दोनों देशों ने किसी भी तरह का गैर-कूटनीतिक कदम उठाने के विषय में कोई भी वक्तव्य नहीं दिया है. इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि इन हालात में इन दोनों को रूस या किसी भी और देश की मदद की जरूरत नहीं है. चीनी मीडिया की खबरों में यहां तक कहा जा रहा था कि बुधवार को मॉस्को में रक्षा-मंत्री राजनाथ सिंह चीन के रक्षा-मंत्री से भी मिलेंगे लेकिन भारत सरकार ने इस खबर का खंडन कर दिया है.

इस बीच जानकारों का यह भी कहना है कि कूटनीतिक प्रयास अपनी जगह हैं लेकिन इनके सामने सैन्य स्तर पर चल रहे गतिरोध को समाप्त करने की बड़ी चुनौती है. भारतीय सेना से सेवानिवृत्त अफसर और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ अजय शुक्ला का कहना है कि गलवान घाटी की घटना के बाद चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी उपस्थिति 30 प्रतिशत बढ़ाई है और वे लद्दाख के डेपसांग में भी प्रवेश कर गई है.

शुक्ला के अनुसार ये भारत-चीन सीमा पर 1962 के बाद चीन की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती है और भारत को उत्तरी लद्दाख में अभी भी चीनी सेना से काफी खतरा है.

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