भारत को अमेरिकी विकास सहायता पर सवाल
१९ जुलाई २०११भारत ने लगभग 40 अरब डॉलर की अमेरिकी प्रतिभूतियां खरीदी हैं. टॉम कोबर्न का कहना है कि जो देश हमें कर्ज दे सकता है उसे मदद देने की क्या जरूरत है. "ऐसे देशों से कर्ज लेना जो हमारी मदद पाते हैं, देने और पाने वाले दोनों के लिए खतरनाक है. यदि ये देश अमेरिकी कर्ज खरीद सकते हैं तो अपने सहायता कार्यक्रम में खर्च भी कर सकते हैं."
टॉम कोबर्न ने ये बातें अपनी "बैक इन ब्लैक - अ डिफिसीट रिडक्शन प्लान" में कही है जो अमेरिकी कर्ज पर राजनीतिक गतिरोध को तोड़ने की दिशा में सबसे महात्वाकांक्षी योजना है. अपनी 621 पेज वाली रिपोर्ट में कोबर्न ने संसदीय शोध सेवा की इस जानकारी का हवाला दिया है कि अमेरिकी सरकार भारत और चीन सहित 16 देशों को 1.4 अरब डॉलर की सहायता दी जबकि इनसे अमेरिका ने 10-10 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज ले रखा है.
अमेरिकी वित्त मंत्रालय के अनुसार चीन ने अमेरिका को 1100 अरब डॉलर का कर्ज दे रखा है जबकि 2010 में उसे पौने तीन करोड़ डॉलर की सहायता मिली है. ब्राजील के पास 193.5 अरब डॉलर के अमेरिकी बांड है जबकि उसे 2.5 करोड़ डॉलर की सहायता मिली है. रूस के पास 128 अरब डॉलर के बांड हैं और 7 करोड़ से अधिक की सहायता मिली है जबकि भारत ने 40 अरब डॉलर के बांड खरीदे हैं और उसे साढ़े 12 करोड़ डॉलर से अधिक सहायता मिली है. इसमें 25 लाख काउंटर टेररिज्म के लिए, 7 लाख जनसंहारक हथियारों की रोकथाम के लिए. 3 करोड़ एड्स की रोकथाम के लिए, सवा 2 करोड़ परिवार नियोजन के लिए, लगभग 2 करोड़ मां और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए और 1.37 करोड़ टीबी से लड़ने के लिए है.
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विदेशों को दी जाने वाली सहायता का बचाव करते हुए कहा था कि यह ऐसा निवेश है जिसपर अधिक मुनाफा होता है. जर्मन विकास सहयोग मंत्री डीर्क नीबेल का भी कहना है प्रति यूरो विकास सहायता पर जर्मन अर्थव्यवस्था को 1.80 यूरो का लाभ होता है.
जर्मनी के आर्थिक संस्थानों का कहना है कि कम विकसित देशों के साथ जर्मनी के विकास सहयोग का सहयोगी देशों में जर्मन निर्यात पर सकारात्मक असर होता है. एक स्टडी के अनुसार विकास सहयोग से निर्यात पर होने वाले असर के जरिए जर्मनी में 1,40,000 कार्यस्थानों को सुरक्षित किया जा सका है.साथ ही 3.7 अरब यूरो के वेतन की भी गारंटी हुई है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि विकास सहायता देने के बदले यदि सरकार अपने नागरिकों का टैक्स घटा देती है तो जर्मनी को 50 हजार कार्यस्थानों से हाथ धोना पड़ेगा. वेतन के भुगतान में 1.5 अरब यूरो प्रति साल की कमी हो जाएगी. स्टडी का कहना है कि यदि विकास सहायता को बढ़ाया जाता है तो देश में रोजगार और आय में भी वृद्धि हो सकती है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ए जमाल