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राजनीतिबेल्जियम

भारतीय मूल के पूर्व पीएम समेत ये होंगे ईयू के बड़े चेहरे

स्वाति मिश्रा
२८ जून २०२४

यूरोपीय संघ (ईयू) के नेताओं में ब्लॉक के शीर्ष पदों पर सहमति बन गई है. इनमें भारत के गोवा से ताल्लुक रखने वाले पुर्तगाल के पूर्व पीएम अंटोनियो कोस्टा भी हैं, जो यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष होंगे.

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तस्वीर में बाईं तरफ उर्सुला फॉन डेय लाएन, बीच में अंटोनियो कोस्टा और दाहिनी तरफ कया कल्लास
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष बनने के लिए अभी उर्सुला फॉन डेय लाएन को यूरोपीय संसद में बहुमत हासिल करना होगा. यह मतदान जुलाई में होने की उम्मीद है. वहीं, कया कल्लास की नियुक्ति पर निर्णायक मुहर को औपचारिकता माना जा रहा है. अंटोनियो कोस्टा यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष पद के लिए चुन लिए गए हैं. तस्वीर: Zhao Dingzhe/Xinhua/IMAGO/Sean Gallup/Getty Images/LUDOVIC MARIN/AFP via Getty Images

ब्रसेल्स में हुए यूरोपीय परिषद के सम्मेलन में जर्मनी की उर्सुला फॉन डेय लाएन को यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष बनने के लिए आधिकारिक तौर पर नामांकित कर दिया गया. हालांकि, पद पर चुने जाने के लिए अभी उन्हें यूरोपीय संसद में बहुमत जीतना होगा. 

27 जून को हुए ईयू सम्मेलन में दो अन्य शीर्ष पदों पर भी फैसला हुआ. पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री अंटोनियो कोस्टा यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और एस्टोनिया की प्रधानमंत्री कया कल्लास यूरोपीय संघ (ईयू) की अगली विदेश नीति प्रमुख होंगी. ये नियुक्तियां बीते दिनों यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनाव के क्रम में हुई हैं. 

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यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष होंगे पुर्तगाल के पूर्व पीएम

अंटोनियो कोस्टा 2015 से 2023 तक पुर्तगाल के प्रधानमंत्री रहे. नवंबर 2023 में भ्रष्टाचार से जुड़ी जांच में पुलिस ने उनके आधिकारिक आवास की तलाशी ली थी. जांचकर्ताओं ने कहा कि लीथियम और ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाओं में कथित भ्रष्टाचार को लेकर कोस्टा पर भी जांच चल रही है. इसके बाद कोस्टा ने न्याय प्रक्रिया में आस्था जताते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था.

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न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान तस्वीर खिंचवाते पुर्तगाल के पूर्व प्रधानमंत्री अंटोनियो कोस्टा.
यूरोपीय संघ के लिए हुए चुनाव से पहले ही अंटोनियो कोस्टा की उम्मीदवारी मजबूत मानी जा रही थी. हालांकि, नवंबर 2023 में भ्रष्टाचार से जुड़े सवालों के बीच जब उन्होंने इस्तीफे का एलान किया, तब माना जा रहा था कि ईयू में उनकी संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं. उनके आगे समय रहते खुद पर उठ रहे संशय दूर करने की बड़ी चुनौती थी.तस्वीर: Lev Radin/picture alliance

केवल वह ही नहीं, बल्कि उनके चीफ ऑफ स्टाफ समेत एक करीबी दोस्त और पूर्व इंफ्रास्ट्रक्चर मिनिस्टर भी जांच के घेरे में थे. बीते दिनों जब ईयू में कोस्टा की उम्मीदवारी पर बात चल रही थी, तब भी पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टुस्क ने भ्रष्टाचार मामले से जुड़ी जांच के संदर्भ में कहा था कि कोस्टा पद के योग्य हैं, लेकिन उनपर चल रहे मामले की कानूनी स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए.

कोस्टा के परिवार का संबंध भारत के गोवा से है. गोवा, पुतर्गाल का उपनिवेश रहा है. कोस्टा के दादा गोवा में पैदा हुए और अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा वहीं बिताया. जनवरी 2017 में बतौर प्रधानमंत्री अंटोनियो कोस्टा प्रवासी भारतीय दिवस में हिस्सा लेने भारत भी गए थे.

उस समय हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कोस्टा ने गोवा से जुड़ी अपनी जड़ों पर गर्व जताते हुए कहा था, "मैं इस मौके का इस्तेमाल कर गोवा में अपने रिश्तेदारों के पास जाने की योजना बना रहा हूं, जो अब भी मरगावो में रहते हैं, जहां मेरे पिता का घर था."

15 और 16 जून 2024 को स्विट्जरलैंड में हुए यूक्रेन शांति सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचीं उर्सुला फॉन डेय लाएन.
पेशे से फिजिशियन रहीं उर्सुला फॉन डेय लाएन जर्मनी में पारिवारिक और युवा मामलों की मंत्री रह चुकी हैं. 2013 में वह जर्मनी की पहली महिला रक्षा मंत्री बनीं. 2019 में वह यूरोपियन कमीशन की पहली महिला अध्यक्ष बनीं. 2022 में वह दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं की फोर्ब्स सूची में 8वें नंबर पर थीं. फिर 2023 में फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें 'दुनिया की सबसे ताकतवर महिला' बताया. पहले कार्यकाल में कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध उर्सुला की सबसे बड़ी चुनौतियों में रहा. तस्वीर: Denis Balibouse/KEYSTONE/REUTERS/dpa/picture alliance

उर्सुला फॉन डेय लाएन को दूसरा कार्यकाल

लाएन के नाम पर 25 जून को ही अनाधिकारिक सहमति बन गई थी, लेकिन 27 जून को ब्रसेल्स में हुए ईयू सम्मेलन में इसपर आखिरी फैसला लिया गया. यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के तौर पर यह उनका दूसरा कार्यकाल होगा. यूरोपीय आयोग, ईयू की कार्यपालिका शाखा है.

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यह नए कानूनों का प्रस्ताव लाता है, सालाना बजट तैयार करता है, जिसे फिर परिषद और संसद मंजूर करते हैं. यूरोपीय आयोग बजट लागू किए जाने की भी निगरानी करता है. साथ ही, आयोग यह भी सुनिश्चित करता है कि ईयू के कानूनों का सदस्य देशों में सही तरीके से पालन किया जाए. इसके अलावा यह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ईयू का प्रतिनिधित्व भी करता है.

11 और 12 जून को जर्मनी की राजधानी बर्लिन में आयोजित यूक्रेन रीकवरी कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने आईं एस्टोनिया की प्रधानमंत्री कया कल्लास.
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद कया कल्लास लगातार यूक्रेन का समर्थन करती आई हैं. वह यूक्रेन को सैन्य सहायता देने और रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की भी प्रबल समर्थक रही हैं. साथ ही, वह ईयू की उन आवाजों में हैं जो यूरोप की बदली हुई स्थितियों के मद्देनजर रक्षा और सैन्य क्षमताएं बढ़ाने पर जोर देते हैं. तस्वीर: Kay Nietfeld/dpa/picture alliance

कौन हैं ईयू की नई विदेश नीति प्रमुख कया कल्लास

एस्टोनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री और उदार लोकतंत्र की समर्थक कया कल्लास ईयू की विदेश नीति प्रमुख होंगी. इस पद को 'हाई रेप्रेजेंटेटिव ऑफ दी यूनियन फॉर फॉरेन अफेयर्स एंड सिक्यॉरिटी पॉलिसी' कहा जाता है. हालांकि, यूरोपीय संसद की विदेश मामलों की समिति को उनकी नियुक्ति पर मंजूरी देनी है, लेकिन इसे औपचारिकता ही माना जा रहा है. 

यूक्रेन युद्ध के बीच इस पद पर कल्लास का चुनाव रूस को दिए गए एक स्पष्ट संदेश के तौर पर देखा जा रहा है. कल्लास ना केवल रूसी आक्रामकता की मुखर आलोचक रही हैं, बल्कि सोवियत संघ के शासन में जीने का निजी अनुभव भी रखती हैं. वह 14 साल की थीं, जब एस्टोनिया सोवियत संघ से आजाद हुआ. 

यूरोप के लिए क्यों ऐतिहासिक है 1 मई 2004 की तारीख

सोवियत संघ के दौर में इस देश को एस्टोनिया सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक के तौर पर जाना जाता था. 1991 में हुए एक रेफरेंडम में करीब 78 फीसदी लोगों का समर्थन मिलने के बाद एस्टोनिया की संसद ने 20 अगस्त 1991 को सोवियत संघ से आजाद होने की घोषणा की. मई 2004 में एस्टोनिया ईयू का सदस्य बना.

फील्ड में तैनात सशस्त्र सेनाओं से मुलाकात करने पहुंचीं एस्टोनिया की प्रधानमंत्री कया कल्लास.
यूक्रेन युद्ध, ब्लॉक की अंदरूनी अहसमतियां, मानवाधिकार और लोकतंत्र जैसे अहम मुद्दों पर कुछ सदस्य देशों का चिंताजनक रुझान, यूरोपीय एकजुटता और रूस की आक्रामकता जैसे विषय ईयू की विदेश नीति के स्तर पर कया कल्लास के लिए मुख्य चुनौतियां होंगी. तस्वीर: ROBERT MARKUS LIIV/Estonian Defence Forces

यूक्रेन को नाटो में शामिल किए जाने की समर्थक

इसी महीने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कया कल्लास ने लिखा, "कई देश औपनिवेशिक युद्धों से पीड़ित रहे हैं. आमतौर पर रूस को एक साम्राज्यवादी ताकत के रूप में नहीं देखा जाता है, लेकिन वह था और अब भी है. मेरे देश एस्टोनिया ने भी करीब आधी सदी तक रूसी साम्राज्यवाद और कब्जे का सामना किया है." 

यूक्रेन पर रूस के हमले को 'रूस की साम्राज्यवादी जमीन हड़पने की नीति' का विस्तार बताते हुए कल्लास ने लिखा कि यूक्रेन में यह होता देखना "एक दुखद चेतावनी है कि कैसे इतिहास खुद को दोहरा सकता है." वह कहती रही हैं कि 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध तक के दरमियानी सालों में दुनिया ने एक तरह से मॉस्को की आक्रामक नीतियों को नजरंदाज किया.

वह यूक्रेन को सैन्य सहयोग देने की पक्षधर हैं. वह यूक्रेन की संभावित नाटो सदस्यता का भी समर्थन करती आई हैं. उनके मुताबिक, सवाल यह नहीं कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनेगा कि नहीं, बल्कि कब बनेगा यह मुद्दा है. कल्लास कह चुकी हैं कि रूस के साथ जारी युद्ध के खत्म हो जाने के बाद यूक्रेन की नाटो सदस्यता से जुड़ी व्यावहारिक पक्षों पर सहमति बनाना जरूरी है.

वह किसी भी ऐसे शांति समझौते की भी विरोधी हैं, जिसमें मॉस्को द्वारा दावा किए जाने वाले यूक्रेनी भूभाग क्रीमिया, डोनेत्स्क, लुहांस्क, खेरसॉन और जापोरिझिया को रूस के सुपुर्द करने की बात हो. उनके पिता सिम कल्लास भी एस्तोनिया के प्रधानमंत्री और यूरोपीय कमिश्नर रह चुके हैं.

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रूस की 'वांटेड' लिस्ट में हैं कल्लास!

फरवरी 2024 में खबर आई कि रूस ने कल्लास को 'वांटेड' लोगों की सूची में रखा है. यूरो न्यूज ने रूस के आंतरिक मंत्रालय के डेटाबेस के हवाले से बताया कि मॉस्को ने कल्लास को 'सोवियत सौनिकों से जुड़ स्मारकों को नष्ट' करने के आपराधिक आरोपों में वांछित बताया है. कल्लास के अलावा एस्टोनिया के स्टेट सेक्रेटरी और लिथुआनिया के संस्कृति मंत्री को भी इस कथित वांटेड लिस्ट में डाला गया.

इसपर प्रतिक्रिया देते हुए कल्लास ने एक्स पर लिखा, "यह एक और सबूत है कि मैं सही काम कर रही हूं. यूक्रेन के लिए ईयू का मजबूत समर्थन एक सफलता है और इससे रूस को तकलीफ होती है. क्रेमलिन को अब उम्मीद है कि इस कदम से मुझे और बाकियों को चुप कराने में उसे मदद मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं होगा. बल्कि इसका उलट होगा. मैं यूक्रेन को मजबूती से समर्थन देना जारी रखूंगी. मैं यूरोप की सुरक्षा बढ़ाने पर कायम रहूंगी." 

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