बारूदी सुंरगों से भरी अयोध्या: जज
१ अक्टूबर २०१०जस्टिस खान ने कहा, "यह जमीन का एक ऐसा टुकड़ा है जहां फरिश्ते भी उतरते घबराते हैं. यह तो बारूदी सुरंगों से भरा हुआ है."
उन्होंने कहा कि हम जजों को इन बारूदी सुरंगों को साफ करने का काम दिया गया. जस्टिस खान ने कहा, "कुछ समझदार तत्वों ने हमें सलाह दी कि हम ऐसा न करें. बेवकूफों की तरह हम इसमें कूद न पड़ें, नहीं तो हम धमाके में उड़ जाएंगे. लेकिन हमें तो हर हाल में खतरा उठाना ही है. और कहते हैं कि जिंदगी में जब खतरा उठाने का मौका आए, तब खतरा न उठाना ही सबसे बड़ा खतरा है."
285 पन्नों के अपने फैसले में जस्टिस खान ने कहा कि वह इस बात का फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि अपनी कोशिशों में वह कामयाब हुए या नहीं.
लखनऊ बेंच में तीन जज शामिल थे. इनमें जस्टिस डीवी शर्मा सबसे जूनियर थे. वह आज रिटायर हो रहे हैं. तीसरे जज जस्टिस सुधीर अग्रवाल थे. इन तीनों ने अलग अलग फैसला सुनाया.
जस्टिस खान ने लिखा, "एक बार फरिशतों को भी इंसान के सामने झुकना पड़ा. कई बार इंसान को यह साबित करना पड़ता है. और अब वैसा ही एक मौका है. हम सफल हुए या नहीं? अपने बारे में तो कोई भी खुद फैसला नहीं कर सकता."
ये सब बातें जस्टिस खान ने अपना फैसला शुरू करने से पहले कहीं. इसके बाद उन्होंने कहा, "...और अब वह फैसला जिसका पूरा देश सांसें थामे इंतजार कर रहा है."
जस्टिस खान और जस्टिस अग्रवाल ने आदेश दिया कि 2.7 एकड़ जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया जाए. एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए. दूसरे हिस्से की मिल्कियत निर्मोही अखाड़े को मिले और तीसरा हिस्सा राम लला विराजमान का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को मिले.
जस्टिस खान ने कहा कि बाबरी मस्जिद मुगल सम्राट बाबरी मस्जिद के आदेश से ही बनवाई गई थी, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि इस पर बाबर का या इसे बनाने वाले किसी और पक्ष का हक है. उन्होंने कहा कि इस मस्जिद को बनवाने के लिए कोई मंदिर नहीं तोड़ा गया बल्कि यह तो मंदिर के खंडहर पर बनाई गई जो वहां पिछले काफी वक्त से मौजूद था.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए कुमार