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बांग्लादेश के लिए एक नई शुरूआत!

प्रिया एसेलबॉर्न३० दिसम्बर २००८

दुनिया भर के नेताओं ने बांग्लादेश को स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनावों के लिए बधाई दी है, पर इनमें हारने वाली बेगम ख़ालिदा ज़िया ने चुनाव नतीजों को ख़ारिज कर दिया है. सवाल है कि क्या फिर बांग्लादेश पुराने रास्ते पर जा सकता है.

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जीत के बाद मुस्कुराती शेख़ हसीनातस्वीर: DW

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले घंटों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि बांग्लादेश लोकतंत्र के रास्ते पर वापस आएगगा या प्रदर्शनों की वजह से एक बार फिर अस्थिरता, हिंसा और भ्रष्टाचार का शिकार बनेगा जैसा कि अतीत में कई बार होता आया है.

बदलाव के लिए वोट- इस हैडलाइन के साथ बांग्लादेश के बड़े अखबारों ने शेख हसीना और उनके महागठबंधन की ऐतिहासिक जीत का वर्णन किया. अमादेरशमोय अखबार का कहना था कि दिसंबर 1971 में आवामी लीग की वजह से मिली स्वतंत्रता के बाद एक बार फिर दिसंबर में आवामी लीग को भारी जीत हासिल हुई. दूसरे अखबारों का कहना था कि खालेदा ज़िया और बीएनपी को अपने शासनाल में भ्रष्टाचार और अपराध के ख़िलाफ़ कोई कारगर मुहिम न चलाने की सज़ा मिली है.

भारत और अमेरिका ने बांग्लादेश को सफल चुनाव के लिए बधाई दी है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गॉर्डन दुगुईड ने कहा कि बांग्लादेश के सभी नागरिक सफल चुनावों पर गर्व कर सकते हैं और वोट देने वालों की बड़ी संख्या यह दर्शाती है कि लोग लोकतंत्र को फिर से देखना चाहते हैं और अपने भविष्य को लेकर आवाज़ उठाना चाहते हैं. यूरोपीय संघ ने भी चुनावों को लेर संतोष व्यक्त किया है. 150 पर्यवेक्षों के मिशन के अध्यक्ष आलेकसैंडर लांबसडोर्फ का कहना था कि जिस कुशलता के साथ मतगणना हुई उससे वह बहुत प्रभावित हुए हैं. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले दिन सिर्फ़ 37 साल के इस देश का भविष्य तय करेंगे.

"हमें अब दोनों पार्टियों को एहसास दिलाना होगा कि इस गलत परंपरा को छोड दिया जाए कि जिसने जीत हासिल कि है उसकी ही चलेगी. लोकतंत्र में सरकार और विपक्ष के बीच एक विशेष तरह का संबध होता है. एक दूसरे के साथ ठीक बर्ताव होना चाहिए और अगले चुनावों में विपक्ष को भी मौका मिलना चाहिए."

शेख हसीना को आज संवादाता सम्मेलन में अपनी जीत पर प्रतिक्रिया देनी थी और अपनी नीतियां पेश करनी थीं. लेकिन सुरक्षा इंतेज़ाम में कमी और बहुत बड़ी संख्या में मौजूद पत्रकारों की वजह से शेख हसीना ऐसा नहीं कर पाईं. चुनावों के पहले शेख हसीना ने वादा किया था कि यदि वे जीतीं तो महंगाई और आम ज़रूरत की चीज़ों के दामों में कमी होगी. साथ ही वे भ्रष्टाचार और इस्लामी उग्रवाद के खिलाफ मुहिम चलाना चाहती हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि मतदाताओं ने इसलिए हसीना और आवामी लीग को वोट दिए क्योंकि 2001 से 2006 तक के बीएनपी के शासन में ग़रीबी को कम करने के लिए तथा शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के लिए अंतरराष्ट्रीय समदाय से मिले कड़ोरों डॉलर के बावजूद कुछ नहीं किया गया. देखना यह है कि शेख हसीना और उनकी आवामी लीग बांग्लादेश के लिए एक नई शुरूआत ला सकती है या देश की 37 साल के इतिहास में एक बार फिर सभी उम्मीदें भंग हो जाएंगी. 300 सदस्य वाले राष्टीय संसद में आवामी लीग को अब तक 230 सीट मिलीं हैं.