भारत-जापान के रक्षा और कारोबारी रिश्ते
१० दिसम्बर २०१५भारत और जापान की दोस्ती को ऊपर जाते वक्र का रिश्ता बताया गया है. इसे प्रधानमंत्री शिंजो आबे के दौरे से और बल मिलेगा. वे 11 से 13 दिसंबर तक होने वाली 9वें वार्षिक शिखर भेंट में हिस्सा लेंगे. हालांकि दोनों देशों के बीच वार्षिक मुलाकातों की परंपरा बन गई है लेकिन इस मुलाकात पर खास ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि इसके दौरान दोनों देशों के बीच परमाणु क्षेत्र में अहम समझौता होने की उम्मीद है. दोनों नेता एक साल पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे पर हुए फैसलों की समीक्षा भी करेंगे, जिसमें पारस्परिक संबंधों को विशेष रणनैतिक पार्टनरशिप में बदलने का फैसला किया गया था.
टोक्यो के टेंपल यूनिवर्सिटी के जेम्स ब्राउन का कहना है कि आबे का भारत दौरा सांकेतिक और व्यावहारिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, "यह यात्रा न सिर्फ भारत के साथ जापान के रिश्तों को गहन बनाती है, बल्कि कम से कम जापान में इसे एशिया में चीन की ताकत को संतुलित करने का प्रभावी तरीका भी समझा जा रहा है."
नागरिक परमाणु समझौता
बातचीत की एक प्राथमिकता रक्षा संबंधों और नागरिक परमाणु सहयोग की बातचीत को आगे बढ़ाना है. भारत ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए अपने परमाणु बिजली उद्योग के आकार और क्वॉलिटी को बेहतर करना चाहता है. दूसरी ओर जापान भारत को परमाणु तकनीक के निर्यात का रास्ता साफ करना चाहता है. जेम्स ब्राउन का कहना है कि जापानी परमाणु उद्योग की घरेलू समस्याओं को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय समझौतों का महत्व बढ़ गया है.
लेकिन जापान की ओर से बाधाएं भी हैं क्योंकि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत नहीं किए हैं. आर्थिक विश्लेषक राजीव विश्वास कहते हैं, "बातचीत का लक्ष्य होगा धीरे धीरे पारस्परिक परमाणु समझौते की ओर बढ़ना." यही राय वॉशिंगटन के वुड्रो विल्सन सेंटर के माइकल कुगेलमन की भी है, "कई नाजुक मुद्दों पर सहमति होनी है. दोनों देशों में परमाणु मुद्दे पर संवेदनशीलता के चलते वे सख्त सुरक्षा कदमों पर जोर देंगे. "
सुरक्षा और आर्थिक सहयोग
सुरक्षा के जुड़े मुद्दे भी बातचीत के केंद्र में होंगे. दोनों देश तकनीकी गोपनीयता को लीक होने से रोकने का समझौता करेंगे जो दोनों देशों के बीच हथियारों की खरीद फरोख्त का आधार होगा. जेम्स ब्राउन कहते हैं, "यह महत्वपूर्ण है क्योंकि सख्त नियंत्रण जापान के लिए भारत के साथ रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की प्रमुख शर्त है." आबे के दौरे पर पहला प्रमुख रक्षा समझौता खोज और बचाव कार्य में इस्तेमाल होने वाले यूएस 2 विमानों के संयुक्त प्रोडक्शन का होगा. जापान की सिर्फ आर्थिक दिलचस्पी नहीं है, बल्कि इलाके के देशों के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाकर चीन के प्रभाव को कम करना भी है.
रक्षा और ऊर्जा के अलावा जापान इस मौके पर खुद को भारत के संरचना पार्टनर के रूप में पेश करेगा. राजीव विश्वास का कहना है कि नगर विकास भारत जापान विकास सहयोग का मुख्य इलाका है. जापान भारत को दिल्ली मुंबई कॉरीडोर में शहरों और औद्योगिक इलाकों के अलावा स्मार्ट सिटीज के विकास में मदद दे रहा है. इसके अलावा जापान कई सालों से भारत को अपनी बुलेट ट्रेन तकनीक बेचना चाहता है. भारत भी रेल के विकास में विदेशी सहयोग चाह रहा है. जापान ने मुंबई अहमदाबाद बुलेट रेल प्रोजेक्ट के लिए 15 अरब डॉलर का सस्ता लोन ऑफर किया है.
स्वाभाविक रिश्ते
भारत और जापान के रिश्तों को बेहतर बनाना नरेंद्र मोदी की एक्ट ईस्ट नीति का हिस्सा है जिसका लक्ष्य एशिया प्रशांत के देशों के साथ भारत के रिश्तों को मजबूत करना है. इसलिए आबे और मोदी की दिलचस्पी पारस्परिक व्यापार को बढ़ाने की है जो 2014 में 15 अरब डॉलर थी. राजीव विश्वास का कहना है कि जापान के निर्यात में भारत का हिस्सा सिर्फ 1.2 प्रतिशत है जबति चीन को जापान का 18.3 प्रतिशत निर्यात होता है. जापान ने आने वाले पांच सालों में भारत में करीब 35 अरब डॉलर निवेश करने का फैसला लिया है.
शिंजो आबे की इस यात्रा से भारत जापान संबंधों में और तेजी आएगी. दिल्ली के रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान की स्मृति पटनायक का कहना है कि दोनों देशों के सामरिक हित एक दूसरे से मिलते हैं जिसका असर उनके रिश्तों पर दिखेगा, "जापान भारत में आर्थिक तौर पर सक्रियता बढ़ा रही है, वैश्विक मुद्दों पर भी दोनों देशों के विचारों में समानता आएगी." लेकिन सीमाएं भी हैं. दक्षिण एशिया विशेषज्ञ जयशंकर कहते हैं, "भारत जापान के लिए अमेरिका का विकल्प नहीं हो सकता और न ही जापान भारत को वह सब कुछ दे सकता है, जो भारत चाहता है. लेकिन निकट भविष्य में आम रिश्तों पर कोई सवाल नहीं उठेगा."