बकरीद पर बकरों की कमी
१६ नवम्बर २०१०पिछले दिनों पाकिस्तान सरकार ने बढ़ती महंगाई को नीचे लाने और बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए भारत से सब्जियों और मवेशियों के आयात की अनुमति दी है. पेशावर के एक व्यापारी का कहना है कि बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए ईद-उल-जुहा के मौके पर भारत से मवेशियों को आयात किया गया है.
पेशावर के रिंग रोड मार्केट पर एक व्यापारी ने पीटीआई को बताया कि मवेशी थके हुए हैं क्योंकि वे वागा सीमा से दो दिन का सफर कर भारत से लाए गए हैं. त्यौहार से पहले किए गए आयात के बावजूद मवेशियों की कीमत आसमान छू रही है और सरकारी अधिकारियों का भी कहना है कि वे त्यौहार के लिए मवेशी खरीदने की हालत में नहीं हैं.
दो महीने की बाढ़ ने शहरों और गांवों को तो नुकसान पहुंचाया ही, लाखों माल मवेशियों को भी वह बहा ले गई. इस धंधे से जुड़े लोगों का कहना है कि मवेशियों की इतनी कमी हो गई है कि उनके दाम बढ़ाने पड़े हैं जो निम्न और मध्य वर्ग के लोगों की पहुंच से बाहर हो गए हैं.
इस साल पाकिस्तान में 17 से 19 नवम्बर तक हो रहे वार्षिक मुस्लिम त्यौहार में शोक की नमाज के बाद भेड़, बकरी, गाय और अन्य मवेशियों की कुरबानी दी जाती है और गोश्त गरीबों के साथ बांटा जाता है. पांच शहरों में समाचार एजेंसी एएफपी द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार बकरों की औसत कीमत 21,000 रुपये हो गई है.
भेड़ भी बाजार में 15 हजार से 24 हजार रुपये तक में बिक रहे हैं. गायें औसत 35 हजार रुपये में बिक रही हैं. अच्छे बछड़ों की कीमत 90 हजार तक ली जा रही है. पिछले साल भेड़ की कीमत छह हजार रुपये थी जबकि बकरे साढ़े सात हजार रुपये में मिल रहे थे. गाय और बछड़ों की कीमत स्थानीय बाजारों में 17 हजार से 26 हजार रुपये थी.
पाकिस्तान में सरकार द्वारा तय मजदूरों का न्यूनतम वेतन लगभग 9,000 रुपये प्रति माह है जबकि मध्य वर्ग के सरकारी कर्मचारियों का औसत वेतन 26,000 रुपये है. पश्चिमी शहर क्वेटा में सबीह अहमद का कहना है, "ये कीमतें मेरे बजट से बाहर हैं. मैं समझता हूं कि आधे से ज्यादा लोग इस बार ईद में कुरबानी नहीं दे पाएंगे."
सरकारी आंकड़ों के अनुसार बाढ़ में 3 लाख से अधिक मवेशी मारे गए. पेशावर के हिजब अली मवेशियों के कम होने की वजह बाढ़ को बताते हैं तो लाहौर के मांस व्यापारी जलील खान इसकी वजह मवेशियों की तस्करी में देखते हैं. उनका कहना है, "बड़ी संख्या में मवेशियों को अफगानिस्तान भेज दिया जाता है." युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में मवेशियों की साल भर कमी रहती है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ए कुमार