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समाज

बंदर के भ्रूण में इंसानी स्टेम सेल रोपने की कोशिश

कार्ला ब्लाइकर
२३ अप्रैल २०२१

कैलिफोर्निया में वैज्ञानिकों ने तीखी बहसों को जन्म देने वाली एक रिसर्च पर काम शुरू किया हैः उन्होंने एक मानव-वानर भ्रूण तैयार किया जो तीन सप्ताह तक जिंदा रहा.

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Javaneraffe
तस्वीर: picture-alliance/dpa/blickwinkel/McPHOTO

चीन और अमेरिका के वैज्ञानिकों की टीम ने स्टेम सेल रिसर्च के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की है. वैज्ञानिकों ने बंदर के कुछ दिन के विकसित भ्रूण यानी ब्लास्टोसिस्ट में इंसानी स्टेम सेल रोप दी. शीर्ष वैज्ञानिक युआन कार्लोस इजपिसुआ बेलमोन्ते की अगुआई में टीम, दो विभिन्न आनुवंशिक सामग्रियों से बने कुछ भ्रूणों को 20 दिन तक जिंदा रखने में सफल रही. इस मिलेजुले भ्रूण से एक मिलाजुला जीव तैयार हुआ जिसे काइमेरिक भी कहा जाता है, या अंतरप्रजातीय काइमेरा.

कैलिफोर्निया में साल्क इन्स्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल स्टडीज से जुड़े इजपिसुआ बेलमोन्ते और उनकी टीम ने युन्नान में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की कुन्मिंग यूनिवर्सिटी में कार्यरत वाइत्सी जी की अगुआई में चीनी शोधकर्ताओं के एक दल के सहयोग से ये रिसर्च की है. पिछले दिनों प्राकृतिक विज्ञान के प्रतिष्ठित जर्नल "सेल” में काइमेरिक मानव-वानर भ्रूणों के बारे में उनका अध्ययन प्रकाशित हुआ था.

विकास की प्रारम्भिक प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए 1970 के दशक से स्तनपाइयों में मिथकीय जीव यानी काइमेरा बनाए जाते रहे हैं. अंतर ये है कि उस वक्त वैज्ञानिक, रोडेन्ट्स या कुतरने वाले जानवरों का इस्तेमाल करते थे, और अंतरप्रजातीय जीव लंबे समय तक जीवित रहते नहीं थे. नये अध्ययन के लिए बड़ा मोड़ पिछले साल तब आया जब कुन्मिंग यूनिवर्सिटी की चीनी टीम ने ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित की जो बंदर के भ्रूणों को जीवित रखने और एक विस्तृत समयावधि तक शरीर के बाहर वृद्धि करने का अवसर देती है.

इजपिसुआ बेलमोन्ते कहते हैं कि ऐतिहासिक रूप से मनुष्य-जंतु काइमेरा तैयार करने के लिए मेजबान प्रजातियों में इंसानी कोशिकाओं के समन्वय और उनकी निम्न कार्यक्षमता का बुरा असर पड़ा है.

सेल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद मिलेगी कि काइमेरा कैसे काम करते हैं और आने वाले शोधों के लिए उनमें क्या सुधार किए जाएं.

Vorstufe des Embryos, mit genetischem Material von Mensch und Affe
तस्वीर: Weizhi Ji, Kunming University of Science and Technology

कैसे करना है- ये पता है, लेकिन क्यों- ये नहीं पता

जंतुओं की आनुवंशिक सामग्री को मनुष्य स्टेम सेल से मिश्रित करना कुदरती प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण दखल है. लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इसकी उनके पास एक वजह भी है.

इजपिसु बेलमोन्ते समझाते हैं "हम मनुष्यों में कुछ खास तरह के प्रयोग करने में असमर्थ हैं, तो ये जरूरी है कि हमारे पास और एक्युरेट अध्ययन और मनुष्य जीव-विज्ञान और बीमारियों को समझने के लिए अधिक बेहतर मॉडल होने चाहिए."

सेल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं का दावा है कि इंसानी स्टेम सेल से काइमेरा बनाने वाले इस काम से "रिजनेरेटिव मेडिसन यानी पुनर्योजी चिकित्सा से जुड़े विभिन्न प्रयोगों के लिए एक फायदेमंद रणनीति बनाने में मदद मिल सकती है जिसमें प्रत्यारोपण के लिए अंगों और ऊत्तकों का निर्माण भी शामिल है." 

लेकिन इजपिसु बेलमोन्ते और उनके सहकर्मियों के काम की तीखी आलोचना भी होती रही है. केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के जेनेटिक्स विभाग में लेक्चरर अल्फोंसो मार्तिनेज आरियास का कहना है कि ये शोध बहुत 'घटिया' है. शोधकर्ताओं के डाटा का अध्ययन करने के बाद मार्तिनेज आरियास का कहना है, "जिस चीज का दावा ये लोग कर रहे हैं वो तो कतई नामुमकिन सी बात है."

सेल एक पीयर रिव्यू वाला जर्नल है. यानी इस जर्नल में प्रकाशित होने वाला हर अध्ययन कड़ी जांच प्रक्रिया से गुजरता है जिसमें वैज्ञानिकों का पैनल, अध्ययन सामग्री और उसके नतीजों की गहन समीक्षा करता है. बेलमोन्ते और उनकी टीम के अध्ययन का सेल जर्नल में प्रकाशित होने का अर्थ ये भी है कि उसकी समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों को ऐसा कुछ नहीं लगा जो मार्तिनेज आरियास को लगता है. यानी वे मार्तिनेज की तरह चिंतित नहीं हैं.

IVF-Labor  Menschliche Blastozyste
तस्वीर: epd/imago

मनुष्य होने का मतलब क्या है?

नैतिकता से जुड़े सवाल कायम हैं. मौजूदा अध्ययन में, भ्रूण 20 दिन से ज्यादा नहीं टिक पाया. लेकिन तब क्या होगा जब विज्ञान आखिरकार एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगा कि इस तरह के मिथकीय जीव वास्तविक विकसित जीवों के रूप में आकार ले लेंगे?

ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में ऑक्सफर्ड उइहिरो सेंटर फॉर प्रैक्टिकल एथिक्स के निदेशक जुलियन सावुलेस्चु साइंस मीडिया सेंटर को दी अपनी टिप्पणी में कहते हैं, "इस रिसर्च से मनुष्य-गैरमनुष्य काइमरा पर तो आफत ही टूट पड़ेगी."

उनके सामने प्रमुख नैतिक सवाल इस बात का है कि ये काइमेरा किस किस्म के प्राणी होंगे- वे किस हद तक सोच सकते हैं या महसूस कर सकते हैं? क्या उनके अंगों को लेना स्वीकार्य होगा जिन्हें ट्रांसप्लांट के उद्देश्य के लिए तैयार किया गया था?

सावुलेस्चु ने लिखा, "इन अजीबोगरीब प्राणियों का नैतिक दर्जा क्या होगा?"

वह कहते हैं, "जीवित पैदा किए वाले काइमेरा पर प्रयोगों से पहले या उनके अंगों को निकालने से पहले, उनकी मानसिक क्षमताओं और जिंदगियों का समुचित आकलन किया जाना भी अनिवार्य है."

ओस्लो यूनिवर्सिटी में प्रैक्टिकल फिलॉसफी की एसोसिएट प्रोफेसर आना माजडोर एक कदम आगे जाकर कहती हैं, "ये कामयाबी एक अपरिहार्य तथ्य को और मजबूत बनाती है कि जैविक श्रेणियां पहले से निर्धारित नहीं होतीं- वे लचीली होती हैं." 

साइंस मीडिया सेंटर में अपनी टिप्पणी में उन्होंने लिखा, "इस शोध से जुड़े वैज्ञानिक मानते हैं कि ये काइमेरी भ्रूण नये अवसर मुहैया कराते हैं क्योंकि 'हम मानवों पर कुछ खास तरह के प्रयोग करने में असमर्थ हैं.' लेकिन ये सवाल बना हुआ है कि इन्हें मानव भ्रूण कहें या नहीं."

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