अंधविश्वास पर लगे रोक
१४ जनवरी २०१५संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इंसान, यह शायद दुनिया के पहले ऐसे इंसान हैं जिन्हें अपने नाम में "इंसान" लिख कर साफ कर देना पड़ रहा है कि वह धरती पर पैदा हुए बाकी लोगों की तरह इंसान ही हैं. यह बात वह अपनी फिल्म के एक डायलॉग में भी साफ करते हैं. रॉकस्टार जैसे कपड़े पहने, सनी देओल जैसा मुक्का मारते और किसी सुपरहीरो की तरह फाइट सीन करते हुए वह फिल्म में कहते हैं, "कोई हमें संत कहता है, कोई कहता है फरिश्ता, कोई कहता है गुरु, तो कोई कहता है भगवान, लेकिन हम तो हैं सिर्फ एक इंसान."
कितनी नाइंसाफी है कि इतना सुशील स्वभाव दिखाने का सेंसर बोर्ड ने उन्हें यह इनाम दिया कि फिल्म ही रोक दी. इन्होंने भले ही अपने नाम में राम और रहीम लिखा हो, पर खुद को भगवान कहने की जुर्रत तो हरगिज नहीं की! आखिर दुनिया में ना जाने कितने ही लोगों का नाम राम और रहीम होता है, तो भला इन्होंने क्या पाप किया है? संत जी के भक्त भी इसी सवाल का जवाब तलब कर रहे हैं कि आखिर उनके गुरु की गलती क्या है. ना जाने क्यों सेंसर बोर्ड को लगता है कि "फिल्म इसलिए नहीं दिखाई जा सकती क्योंकि वह अंधविश्वास को बढ़ावा देती है और उससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है" और यहां तक कि "धर्म के नाम पर दंगे भी भड़क सकते हैं."
कुछ इसी तरह की बातें चल रही हैं आज कल. गली मोहल्ले में बैठे लोग हों या फिर सोशल मीडिया पर चर्चा करने वाले. धर्म के नाम पर बेतुकी दलीलें देने वालों की कोई कमी नहीं है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जो संत खुद को भगवान का दूत (मेसेंजर ऑफ गॉड) कहता है, उस पर कत्ल और बलात्कार के मामले चल रहे हैं. बाबा रामपाल का मामला अभी बहुत पुराना नहीं हुआ है. ढोंगी बाबा को अपने बिल से निकालने में सरकार के 26 करोड़ रुपये खर्च हो गए. जाहिर है इस बार भगवान के दूत के नाम पर एक बार फिर सरकार इतना पैसा बर्बाद नहीं करना चाहेगी. लेकिन भक्तों के अंधविश्वास के आगे यह सभी आंकड़े फिजूल हैं. आसाराम बापू के जेल जाने के बाद भी उनके भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई है.
संत राम रहीम के मामले में भी यही रवैया रहेगा. भावनात्मक स्तर पर आसरा ढूंढते लोग इस तरह के संतों के पास जाते रहेंगे और धर्म के नाम पर इस तरह के लोग अपना साम्राज्य और बड़ा करते रहेंगे. अगर यह फिल्म रिलीज हो भी जाती है, तो उसका मुनाफा संत राम रहीम के साम्राज्य को बढ़ाने के काम ही काम तो आएगा. जहां तक अभिव्यक्ति की आजादी की बात है, तो फिल्म को रिलीज होने का हक है. आमिर खान की फिल्म पीके से भी लोगों को काफी शिकायत थी. लेकिन ना सिर्फ सेंसर बोर्ड, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने भी फिल्म पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था.
ब्लॉग: ईशा भाटिया