सिर्फ प्रीमैरिटल सेक्स नहीं है लिव इन रिलेशनशिप
११ अप्रैल २०१६आपसी रिश्तों के लेकर मुंबई हमेशा से प्रयोगवादी रहा है. मुंबई की महानगरीय संस्कृति में भावनाओं से ज्यादा व्यावहारिकता को प्रमुखता मिली है. स्त्री-पुरुष संबंधों में इस प्रयोग का रंग कुछ ज्यादा चटक होकर सामने आता है.
विवाह पूर्व महिला-पुरुष का एक छत के नीचे रहना यानि लिव इन रिलेशनशिप परंपरावादी भारतीयों के लिए किसी बड़े अनैतिक झटके से कम नहीं है. लेकिन भारत एक बहुआयामी संस्कृति वाला जीवंत देश है जहां परिवर्तन और प्रयोग के लिए अवसर हमेशा मौजूद रहता है. और प्रयोग और परिवर्तन का सबसे बड़ा केंद्र मुंबई है, जहां 'लिव इन पार्टनर्स' के प्रति स्वीकार्यता का भाव है.
शेयरिंग और केयरिंग
जब भी 'लिव इन' की चर्चा होती है तो सबसे पहले लोगों के मन में 'प्रीमैरिटल सेक्स' की ही बात आती है, जबकि यह रिश्ता इससे कहीं ज्यादा है. मुंबई एक आपा धापी वाला शहर है जहां लोग एक दूसरे को कम समय दे पाते हैं. काम के लिए अपने परिवार से इतनी दूर आकर जीवन संघर्ष में युवाओं को एक भावनात्मक सहयोगी की तलाश रहती है, जो लिव इन पार्टनर के रूप में पूरी हो जाती है. एक भीड़ भाड़ वाले शहर में जहां किसी को किसी की परवाह नहीं है, ऐसे में एक साथी मिल जाने से दिल को सुकून मिलता है.
लिव इन उन लोगों को आकर्षित करता है, जो वैवाहिक जीवन तो पसंद करते हैं लेकिन उससे जुड़ी जिम्मेदारियों से मुक्त रहना चाहते हैं. उत्तरदायित्व के बिना 'शेयरिंग और केयरिंग' के लिए युवा वर्ग के बीच लिव इन लोकप्रिय हो रहा है. अभिनेता अर्जुन कपूर की मानें, तो लिव इन विवाह पूर्व प्रशिक्षण का काम करता है. लिव इन में रहने वाले ज्यादातर जोड़े इसे शादी के पहले एक-दूसरे को समझने का मौका मानते हैं. यहां के युवाओं में लिव इन एक प्रकार से विवाह के विकल्प या विवाह पूर्व प्रशिक्षण संस्था के रूप में ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है.
साथ ही मुंबई में महंगाई भी बहुत है. इस शहर का रुख करने वाले युवाओं के लिए आशियाने की तलाश बहुत मुश्किल और महंगा सौदा साबित होता है. फ्लैट्स के महंगे किराए अकेले के बस की बात नहीं होते. ऐसे में कोई पार्टनर मिल जाने पर उनका आर्थिक बोझ हल्का हो जाता है. पार्टनर के साथ रहना आर्थिक प्रबंधन के लिए मुफीद साबित होता है. विपरीत सेक्स के पार्टनर के साथ रहना युवाओं को ज्यादा लुभाता भी है.
बॉलीवुड का प्रभाव
लिव इन को लेकर मुंबई की स्थिति देश के दूसरे शहरों से थोड़ी बेहतर जरूर है लेकिन शादी किए बिना रहने वाले जोड़ों की संख्या यहां भी बहुत ज्यादा नहीं है. केवल मनोरंजन उद्योग और कॉर्परेट जगत से जुड़े एक वर्ग तक ही यह सीमित है. बॉलीवुड की फिल्में और कलाकार अलग अलग कारणों से लिव इन के समर्थक रहे हैं. इसका प्रभाव मुंबई की सोचने की प्रक्रिया पर भी पड़ा है. इन जोड़ो के प्रति मुंबई का समाज अनुदार या पक्षपाती नहीं है. लिव इन रिलेशनशिप के विरोधी भी इसे पाप या अनैतिक नहीं मानते.
लेकिन एक दूसरा पहलु यह भी है कि लिव इन पार्टनर्स के बीच समझदारी और पार्टनर के प्रति ईमानदारी का आभाव होते ही यह रिश्ता दर्दनाक और दुख का कारण भी बन जाता है. भारतीय अभिभावक अपने बच्चों को लिव इन रिलेशनशिप में देखना पसंद नहीं करते. भारत के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि जो जोड़े लिव इन में रहते हैं उनके बीच अनबन या लड़ाई होने पर सुलह समझौता कराने वाला कोई अपना नहीं होता.
इससे उनके अवसाद या तनाव में घिरने की आशंका ज्यादा रहती है. इसके अलावा भारतीय संस्कृति में पले बढ़े जोड़े पति-पत्नी की ही तरह एक दूसरे से समर्पण की मांग करने लगते हैं. समर्पण में दरार या ब्रेक अप होने पर अवसाद और तनाव घर कर जाता है. खासतौर पर महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है. लिव इन संबंधों से उत्पन्न तनाव जानलेवा भी साबित हो सकता है. टीवी अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी की मौत, इस रिश्ते के दुखद और पीड़ादायी अंत की कहानी ही तो कहती है.
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