पेशावर हमले के बाद भारत पाक रिश्ते
१७ दिसम्बर २०१४पेशावर की दर्दनाक घटना की सूचना मिलते ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन करके न केवल गहरी संवेदना जताई बल्कि यह भी विश्वास दिलाया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत पाकिस्तान के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा है. उधर नवाज शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान अपनी धरती से आतंकवाद का पूरी तरह खात्मा करके रहेगा और इस बारे में वह अफगानिस्तान से भी बात कर रहे हैं.
क्या इन बयानों में एक नई शुरुआत की आहट सुनाई देती है? क्या नरेंद्र मोदी का नवाज शरीफ को फोन करके आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में सहयोग करने की पेशकश करना दोनों देशों के बीच रुके हुए संवाद के फिर से शुरू होने की संभावना की ओर इशारा करता है? क्या नवाज शरीफ अफगानिस्तान के प्रति पाकिस्तान की नीति बदलने का संकेत दे रहे हैं? क्या आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान एक दूसरे के साथ हाथ मिला सकते हैं? इन सभी सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे हैं और फिलहाल केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है.
इन सभी सवालों के जवाब 'हां' में दिए जा सकते हैं बशर्ते पाकिस्तान की नागरिक सरकार और सेना आतंकवाद और भारत एवं अफगानिस्तान के प्रति नीति के मामले में एकमत हो जाएं. समस्या यह कि पाकिस्तान की रक्षा एवं विदेश नीति लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार के हाथ में नहीं, बल्कि सेना के हाथ में है. सेना का रवैया वही रहा है जिसे पिछले माह पाकिस्तान के सर्वाधिक अनुभवी राजनयिक और नवाज शरीफ के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने व्यक्त किया था. अजीज का कहना था कि जो आतंकवादी पाकिस्तान के खिलाफ नहीं हैं, पाकिस्तान उनसे दुश्मनी मोल क्यों ले? यहां उनका साफ इशारा भारत विरोधी जैश ए मुहम्मद और लश्कर ए तैयबा और अफगानिस्तान विरोधी हक्कानी गुट एवं अफगान तालिबान की ओर था. पाकिस्तान लश्कर ए तैयबा और जैश ए मुहम्मद जैसे संगठनों को कश्मीर और भारत के अन्य भागों में आतंकवादी कार्रवाइयों के लिए इस्तेमाल करता है और हक्कानी गुट और अफगान तालिबान के जरिए अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों, अफगान सैनिकों एवं पुलिसकर्मियों और भारतीय दूतावास एवं विभिन्न परियोजनाओं में कार्यरत भारतीयों पर आतंकवादी हमले कराता है. उसका लक्ष्य कश्मीर पर कब्जा करना और अफगानिस्तान में कठपुतली सरकार को सत्ता में लाना है. अक्सर वहां की सरकार और सेना इन दोनों लक्ष्यों के बारे में एकमत रहती है, लेकिन यदि कभी नागरिक सरकार भारत के साथ संबंध सुधारने की पहल करती भी है तो सेना उसे नाकाम कर देती है.
ऐसे में नवाज शरीफ का यह बयान कि उनकी सरकार पाकिस्तान से आतंकवाद का पूरी तरह से खात्मा करना चाहती है और अफगानिस्तान के साथ भी बात कर रही है, बेहद महत्वपूर्ण है. लेकिन यदि पाकिस्तानी सेना इस बयान से सहमत नहीं है तो फिर कुछ नहीं हो सकता. पाकिस्तान अफगानिस्तान सीमा के आस पास के क्षेत्र में हक्कानी गुट और अफगान तालिबान ने शरण ले रखी है. अफगानिस्तान और भारत दोनों चाहते हैं कि पाकिस्तान इनके खिलाफ कार्रवाई करे. इनके पाकिस्तान तालिबान और अल कायदा के साथ भी घनिष्ठ संबंध हैं. लेकिन पाकिस्तानी सेना सिर्फ पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ ही सशस्त्र अभियान चलाये हुए है. सवाल यह है कि क्या वह इन सभी पर हाथ डालना चाहेगी?
यदि पाकिस्तान 'अच्छे आतंकवादी' और 'बुरे आतंकवादी' के बीच फर्क करना बंद करके सभी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, तो भारत निश्चय ही उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खुफिया एजेंसियों समेत हर स्तर पर सहयोग करेगा और दोनों देशों के बीच न सिर्फ संवाद बहाल होगा बल्कि आपसी संबंधों में तेजी के साथ सुधार भी आयेगा. लेकिन यह एक यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है कि क्या कभी ऐसा होगा? क्या पेशावर की दर्दनाक घटना की रोशनी में पाकिस्तान सरकार और सेना अपनी नीतियां बदलेंगी?
ब्लॉग: कुलदीप कुमार