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पाकिस्तान: बाढ़ के एक साल बाद भी मुश्किल हालात

२७ जुलाई २०११

पाकिस्तान में पिछले साल आई बाढ़ से करीब दो करोड़ लोगों की जिंदगियों पर असर पड़ा. डोएचे वेले ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए जर्मन संस्था जीआईजेड से जानने की कोशिश की कि एक साल में राहत और निर्माण का काम कहां तक पहुंचा है.

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तस्वीर: UN Photo/Evan Schneider

हांस श्टाइनमन अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए जर्मन संस्था जीआईजेड की ओर से पिछले दो सालों से पाकिस्तान में हेल्थ प्रोग्राम चला रहे हैं. इस संस्था को जर्मन आर्थिक सहयोग और विकास मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, यूरोपीय संघ और नीदरलैंड्स और फ्रांस की सरकारों से आर्थिक मदद मिलती है.

डोएचे वेले: पाकिस्तान में बाढ़ आए एक साल हो गया है. बाढ़ग्रस्त इलाकों में अब हालत कैसे हैं?

हांस श्टाइनमनः मैं इस बारे में एक आम नजरिया नहीं दे सकता. हर प्रांत में स्थिति अलग है. उत्तर पश्चिमी इलाकों में जीवन काफी हद तक सामान्य हो चुका है. वहां खेत दोबारा तैयार कर लिए गए हैं, लोग अपने गांव में लौट रहे हैं. पुनर्निर्माण का काम चल रहा है, लेकिन अभी वह बहुत ही शुरुआती स्तर पर है. लोगों के पास रहने के लिए घर तो हैं, लेकिन कई घरों पर छत ही नहीं है, प्लास्टिक शीट्स से घरों को ढका गया है. आप जितना दक्षिण की ओर जाएंगे हालत उतनी ही बदतर दिखेगी, खासतौर से पंजाब और सिंध में. इन प्रांतों में अप्रैल और मई तक पानी भरा हुआ था, क्योंकि पानी के निकलने का यहां कोई रास्ता ही नहीं है. अभी भी इन प्रांतों में लोग बेघर हैं और कैम्पों में रह रहे हैं. उनके खेत अभी भी गीले और कीचड़ से भरे हैं कि वहां खेती नहीं की जा सकती. वहां अकाल नहीं पड़ा है, लेकिन खाने पीने की चीजें अभी भी बहुत कम हैं. वहां राहत का काम चल रहा है और उस से काफी मदद भी मिली है, लेकिन अभी भी हालात बहुत मुश्किल हैं. नवनिर्माण का काम वहां बहुत धीरे धीरे ही मुमकिन है.

A Pakistani baby opens her mouth as her mother drops water to keep her from dehydration at an evacuation center for flood victims in Multan, Pakistan on Sunday Aug. 22, 2010. The world has given or pledged more than $800 million to help Pakistan cope with massive floods, Pakistan's foreign minister said Sunday, as a surging river in the south led authorities to urge thousands more people to evacuate. (AP Photo/Aaron Favila)
तस्वीर: AP

आप लोगों ने वहां पानी के फिल्टर और मच्छरदानियां बांटी थीं. क्या जिन इलाकों पर बाढ़ का सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ा था, वहां आप सब लोगों तक ये चीजें पहुंचा पाए हैं?

नहीं, यह कहना तो ठीक नहीं होगा कि सब लोगों तक मदद पहुंच पाई है. बाढ़ के बाद कई संस्थाएं मदद के लिए आगे आईं. राहतकार्य के लिए हमने कई संस्थाओं के साथ मिल कर काम किया, इनमें सरकारी संस्थाओं के अलावा कई एनजीओ, डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ और संयुक्त राष्ट्र की और भी कई एजेंसियां शामिल हैं. हमने करीब दस हजार परिवारों को पानी के फिल्टर बांटे. अगर एक परिवार में औसतन पांच लोग हों, तो हमने करीब पचास हजार फिल्टर बांटे हैं. लेकिन बाढ़ पीड़ितों की संख्या को देखते हुए यह काफी नहीं है. हमने अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर कई बड़े बड़े वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट पाकिस्तान भेजे हैं ताकि पूरे इलाके की इन से मदद हो सके और लोगों को पीने के लिए साफ पानी मिल सके. पीने का पानी वहां पहले की तरह अब भी बड़ी समस्या बना हुआ है. अगले मानसून में फिर से दिक्कत सामने आएगी.

पाकिस्तान की सरकार आपके काम में कितना सहयोग देती है?

हम मूल रूप से उत्तर पश्चिमी हिस्से में काम कर रहे हैं, इसलिए मैं उसी के बारे में बात करूंगा. हम वहां सालों से काम कर रहे हैं और मैं यह कह सकता हूं कि हमने उनका भरोसा जीता है. हमारा आपसी सहयोग बहुत अच्छा है. हां, वहां काम करना आसान नहीं है, सुरक्षा के नजरिये से भी वहां मुश्किलें हैं. हमें इन बातों को ध्यान में रखना होता है और इनके साथ ही अपना काम करना होता है. लेकिन मैं कम से कम राज्य सरकार के बारे में तो यह कह ही सकता हूं कि वो हमारे साथ बहुत सहयोग करती रही है.

A flood survivor drinks from a water pump amid the rubble of destroyed homes in Azakhel, near Nowshera, northwest Pakistan, Saturday, Aug. 14, 2010. A case of the deadly waterborne disease cholera has been confirmed in Pakistan's flood-ravaged northwest, and aid workers expect there to be more, the U.N. said Saturday. The discovery came as new flood surges hit the south and the prime minister said the deluge has made 20 million people homeless. (AP Photo/Aaron Favila)
तस्वीर: AP

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर से बाढ़ पीड़ितों की ठीक तरह मदद नहीं की गई और जितनी मदद उन्हें मिली, वह भी काफी नहीं थी. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह निराश करने वाली बात है. आप इस बारे में क्या कहेंगे?

मैं इसे इस तरह से नहीं देखता. यह बात सच है कि राजनैतिक कारणों से काफी मुश्किलें आईं, लेकिन इस पर मैं चर्चा नहीं करना चाहता. मैं केवल उन संस्थाओं के बारे में ही बात कर सकता हूं जिनके साथ मिल कर हम काम करते हैं और उनका काम बहुत अच्छा रहा है. राजनैतिक मुद्दे अलग हैं और वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय से प्रेरित होते हैं. यह एक अलग स्तर की चर्चा है.

इंटरव्यू: किश्वर मुस्तफा/अनुवाद: ईशा भाटिया

संपादन: महेश झा

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