पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को हटाने की मांग, बड़ा आंदोलन शुरू
२८ अक्टूबर २०१९इस रैली का आयोजन जमात ए इस्लामी (एफ) नाम की एक राजनीतिक पार्टी ने किया है जिसके हजारों कार्यकर्ता रविवार को कराची में जुटे और उन्होंने सरकार के खिलाफ मार्च शुरू किया. रैली का नेतृत्व मौलाना फजलुर रहमान कर रहे हैं, जो एक ताकतवर धार्मिक राजनेता है और जेयूआई (एफ) के मुखिया हैं. उनका कहना है कि इमरान खान एक साल पहले चुनावों में धांधली के जरिए सत्ता में आए.
कराची में रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री इमरान खान को इस्तीफा देना होगा. लाखों लोग कराची में जमा हुए हैं. जब देश भर से लोग इस्लामाबाद पहुंचेंगे तो फिर सरकार क्या करेगी?"
रहमान को पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल(एन) और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और उनके बेटे बिलावट भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का समर्थन भी मिल रहा है. उम्मीद है कि जब रैली इस्लामाबाद पहुंचेगी तो उसमें लाखों लोग शामिल हो जाएंगे. रहमान ने कराची में कहा, "मैं इस्लामाबाद में बताऊंगा कि आगे क्या करना है." माना जा रहा है कि ये लोग इस्लामाबाद के बाहर धरने पर बैठेंगे और प्रधानमंत्री के निवास स्थान की तरफ जाने की कोशिश भी कर सकते हैं.
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पाकिस्तान में इस तरह के लॉन्ग मार्च होते रहे हैं. इसके पहले भी कई धार्मिक गुटों के मार्च और धरनों की वजह से कई दिन इस्लामाबाद ठप्प रहा है. धार्मिक नेता रहमान संसदीय लोकतंत्र के समर्थक हैं और पिछली सरकारों में मंत्री भी रह चुके हैं.
जेयूआई (एफ) के प्रवक्ता मुफ्ती अबरार ने कहा कि इमरान खान की "अवैध सरकार" सेना के समर्थन से सत्ता में आई है. पिछले साल हुए चुनावों को कई बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने खारिज किया था, लेकिन उन्होंने इनके खिलाफ कोई आंदोलन शुरू नहीं किया था. राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इमरान खान के सख्त रवैये और बदहाल अर्थव्यवस्था के कारण आखिरकार उनके विरोधी अब मैदान में उतर रहे हैं.
इमरान खान पर आरोप लगते हैं कि देश की ताकतवर सेना उन्हें समर्थन दे रही है. हाालंकि इस आरोप को इमरान खान और सेना, दोनों बेबुनियाद बताते हैं. नवाज शरीफ की पार्टी का कहना है कि जुलाई 2018 के आम चुनाव में सेना ने खुलकर इमरान खान की पार्टी को फायदा पहुंचाया जबकि न्यायपालिका के जरिए पीएमएल (एन) के नेताओं को निशाना बनाया गया. पार्टी का कहना है कि कार्यवाहक सरकार ने भी उसकी गतिविधियों पर कार्रवाई की.
पिछले दिनों पत्रकारों से बातचीत में इमरान खान ने कहा कि उन्हें सत्ता से बाहर करने की विपक्ष की कोशिशों से निपटने के लिए उन्हें सेना का भरपूर समर्थन प्राप्त है.
2018 का आम चुनाव जीतने के बाद सत्ता में आए इमरान खान ने देश की अर्थव्यवस्था सुधारने और रोजगार के अवसर पैदा करने का वादा किया था. लेकिन उनके आलोचक कहते हैं कि वह अपने किसी वादे को पूरा नहीं कर पाए हैं. हालांकि इमरान खान ने सरकारी खर्चों में कटौती की मुहिम शुरू की है लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह सिर्फ दिखावा है क्योंकि प्रधानमंत्री की टीम के साथ पाकिस्तान के गंभीर ढांचागत मुद्दों से निपटने की कोई योजना नहीं है.
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पाकिस्तान में मुद्रास्फीति दर आठ प्रतिशत को छू रही है और पाकिस्तानी रुपये के मूल्य में बीते साल के मुकाबले एक तिहाई गिरावट आई है. देश के विदेशी मुद्रा भंडार में इतना भी पैसा नहीं है कि दो महीने से ज्यादा के निर्यात के लिए पूरा पड़ सके. ऐसे में इमरान खान की सरकार को इस साल मई में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज लेना पड़ा.
आईएमएफ के राहत पैकेज के साथ बहुत कड़ी शर्तें जुड़ी हैं और इस वजह से वह आम लोगों में बहुत अलोकप्रिय है. विश्लेषकों का कहना है कि इन सब हालात में विपक्ष को लगता है कि इमरान खान को सत्ता से हटाने का इससे अच्छा कोई मौका नहीं हो सकता.
जेयूआई(एफ) के मौलाना रशीद महमूद सूमरो ने हाल में कहा कि विश्व आर्थिक फोरम की रिपोर्ट बताती है कि इमरान खान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार तीन प्रतिशत बढ़ा है. उन्होंने कहा, "अर्थव्यवस्था की हालत बुरी है, आम जरूरत की चीजों के दाम आसमान को छू रहे हैं और लोग बेहद गरीबी में जी रहे हैं. तो इसलिए जरूरी कि प्रधानमंत्री इमरान खान अपना बोरिया बिस्तर समेटें."
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