अजाब बनी पाइपलाइन
१२ अगस्त २०१४अमेरिकी सरकार ने इसी साल अनुमान लगाया कि कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का कितना उत्सर्जन होगा. लेकिन स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट के रिसर्चरों का दावा है कि यह अनुमान सही नहीं है. संस्था के शोध में पता चला है कि पाइपलाइन की चलते तेल तीन डॉलर प्रति बैरल सस्ता हो जाएगा. सस्ता तेल यानी ज्यादा खपत.
करीब 3400 किलोमीटर की कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन के जरिए पश्चिमी कनाडा की रिफाइनरियों से अमेरिका में टेक्सास की खाड़ी तक तेल लाने की योजना है. अमेरिकी सरकार के मुताबिक पाइपपाइन से हर साल तीन करोड़ टन कार्बन डायॉक्साइड का उत्सर्जन होगा. वहीं स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट के मुताबिक सीओटू का उत्सर्जन 12.1 करोड़ टन होगा. नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पाइपलाइन तेल की खपत घटाने के लिए उठाए जा रहे कदमों को डगमगा देगी.
अमेरिका की वेस्लेयान यूनिर्सिटी के पर्यावरण अर्थशास्त्री गैरी योहे भी रिसर्च को सहमत हैं, "सस्ता तेल सुनने में अच्छा लगता है कि लेकिन यहां कोई भी चीज मुफ्त नहीं है. सस्ते तेल से ग्राहक भले ही खुश हों जाएं लेकिन धरती नहीं होगी." 2013 में दुनिया भर में तेल की खपत ने 36 अरब टन सीओटू छोड़ी. ससेक्स यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री रिचर्ड टोल मानते हैं कि कीस्टोन की वजह से यह उत्सर्जन कम तो नहीं ही होगा.
कुछ अमेरिकी विशेषज्ञ सस्ते तेल की ज्यादा खपत को आधार बना कर किए गए इस शोध से बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं. अमेरिकन पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट की प्रवक्ता सबरीना फांग के मुताबिक, "अगर पाइपलाइन नहीं बनाई जाए तो तेल रेल और टैंकरों के जरिए लाया जाएगा और इसमें भी तो खर्चा और उत्सर्जन होगा ही."
30 इंच मोटी कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन पर करीब एक दशक से बहस चल रही है. पाइपलाइन संबंधी सारे प्रस्ताव तैयार हैं. बस अमेरिकी सरकार की हरी झंडी का इंतजार है. राष्ट्रपति बराक ओबामा साफ कर चुके हैं कि अगर पाइपलाइन से सीओटू का उत्सर्जन अनुमान के मुताबिक होगा, तभी वो काम को आगे बढ़ाएंगे. इस मुद्दे पर अमेरिकी संसद भी बंटी हुई है.
ओएसजे/एजेए (एपी)