पहाड़ों में मंगल ग्रह का आनंद
वैज्ञानिक मंगल ग्रह पर इंसान की यात्राओं को संभव बनाने के बहुत करीब पहुंच गए हैं. ऑस्ट्रिया की आल्प्स पहाड़ियों के ग्लेशियर में लाल ग्रह जैसी कठिन परिस्थितियों में वैज्ञानिक मंगल यात्रा के लिए तैयारी कर रहे हैं.
अमादी-15
दो हफ्ते लंबे प्रोजेक्ट का नाम है अमादी-15. ऑस्ट्रियन स्पेस फोरम ने इसे 3 अगस्त 2015 को काउनेरटाल ग्लेशियर पर शुरु किया. एनालॉग एस्ट्रोनॉट्स कहे जाने वाले बर्लिन की कार्मेन कोएलर और स्पेन के मूनोज एलोर्जा ने मंगल जैसे माहौल वाले इस ग्लेशियर को अभ्यास के लिए चुना.
भारी भरकम कपड़े
एल्युमीनियम की परत और आग-रोधी केवलार से बने इस विशेष स्पेससूट का वजन करीब 48 किलोग्राम है. 5 महीने की कठिन ट्रेनिंग के बाद इस खास मिशन के लिए चुनी गई गणितज्ञ और मौसमविज्ञानी कार्मेन कोएलर बताती हैं कि सूट पहन कर, "झुकना और उठना मुश्किल है."
मंगल जैसी चट्टानें और बजरी
गर्मियों में ग्लेशियर की चट्टानी सतह पर चलना लाल ग्रह जैसा ही मुश्किल होता है. यही कारण है कि मंगल पर चलने फिरने के अभ्यास के लिए यहां "आदर्श स्थिति" है. यहां दो मार्स-रोवर मॉडलों का भी परीक्षण हो रहा है, जो काफी बड़ी चट्टानों के ऊपर से भी अपना रास्ता बनाने में सक्षम हैं.
स्नोकैट नहीं रोवर
इस मार्स रोवर के कई गुण ऑपर्चूनिटी से मिलते जुलते हैं. ऑपर्चूनिटी पिछले 11 साल से मंगल की जानकारियां जुटा रहा है. 2012 में उसका साथ देने के लिए क्यूरियोसिटी नाम के आधुनिक रोवर को भी मंगल भेजा गया. धरती से मार्स रोवर तक कोई भी सिग्नल पहुंचाने में नासा के वैज्ञानिकों को करीब 20 मिनट लगते हैं.
लंबी यात्रा में परेशानी
मंगल तक जाने और वापस लौटने में करीब 3 साल लग जाएंगे. इस यात्रा के दौरान कुछ भी हो सकता है. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी का दांत टूट जाए तो उसके लिए 3-डी प्रिंटर से डेंचर छापा जा सकेगा. उसका भी टेस्ट यहां हो रहा है.
एस्ट्रोनॉट्स के लिए गर्म स्नान
इन परीक्षणों से 19 देशों के 100 रिसर्चर जुड़े हुए हैं, जो ट्रायल कर व्यावहारिक कार्यप्रणाली को परख रहे हैं. इसमें से एक परीक्षण स्टीम शावर को टेस्ट करने का भी है. यह एक ऐसी डिवाइस है जिनमें बहुत कम द्रव का इस्तेमाल कर अंतरिक्षयात्री स्नान कर सकेंगे. अभी तक वे केवल शरीर को पोंछ कर काम चलाते हैं.
केबल रेल
ग्लेशियर तक इन सारी चीजों और लोगों को ले जाने का काम कुछ ही मिनटों में केबल रेलवे की मदद से हो गया. मंगल तक जाने में तो एक साल लग जाएगा. और हां, असली यात्रा में ब्रेक के दौरान इस तरह हेलमेट निकाल कर रह पाना भी संभव नहीं होगा.
मंगल पर बर्फ नहीं
ग्लेशियरों पर इन परीक्षणों के लिए गर्मियों के महीने उपयुक्त समय हैं. जाड़े के दिनों में पूरा काउनेरटाल ग्लेशियर बर्फ से ढका होता है. ग्लेशियर पर बर्फ के बहाव के कारण कोई भी मार्स रोवर काम नहीं कर पाएगा.