पश्चिम बंगाल ने बदला नाम, अब होंगे तीन नाम
२९ अगस्त २०१६मशहूर कवि और नाट्यकार शेक्सपियर ने कभी कहा था कि नाम में क्या रखा है? लेकिन पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए शायद नाम में ही सब कुछ रखा है. यही वजह है कि उनकी तृणमूल कांग्रेस सरकार ने पश्चिम बंगाल का नाम तीन भाषाओं में अलग-अलग रखने का फैसला किया है. सरकार की ओर से पेश इस प्रस्ताव को विपक्षी राजनीतिक दलों के विरोध के बीच विधानसभा ने भी पारित कर दिया है. एक राज्य के तीन अलग-अलग नाम कुछ अजीब लगते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल शायद भारत का पहला ऐसा राज्य होगा जो तीन भाषाओं में तीन अलग-अलग नामों से जाना जाएगा. अब इसका नाम बांग्ला में बांग्ला, अंग्रेजी में बेंगाल और हिंदी में बंगाल होगा.
इससे पहले लेफ्टफ्रंट सरकार के शासनकाल में वर्ष 2001 में कलकत्ता का नाम बदल कर कोलकाता किया गया था. बाद में ममता बनर्जी सरकार ने वर्ष 2011 में सत्ता में आने के बाद पश्चिम बंगाल का नाम बदल कर पश्चिम बंग करने की भी मुहिम चलाई थी. लेकिन तब यह मामला अधर में लटक गया था.
विधान सभा में फैसला
संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी की ओर से सदन में पेश प्रस्ताव में कहा गया था कि राज्य का नाम अब बांग्ला में बांग्ला, अंग्रेजी में बेंगाल और हिंदी में बंगाल होगा. इस प्रस्ताव पर बोलते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "बांग्ला नाम की एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है. ममता ने कहा कि उनको बंगो नाम से भी समस्या नहीं थी. लेकिन ज्यादातर लोग बांग्ला नाम चाहते थे. अंग्रेजी में यह बेंगाल होगा ताकि पड़ोसी बांग्लादेश के नाम के साथ कोई भ्रम नहीं हो." मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले भी नाम बदलने का प्रस्ताव रखा गया था. लेकिन वह मामला केंद्र के पास अटक गया था. इसलिए हमने एक बार फिर यह प्रस्ताव पारित किया है.
ममता बनर्जी ने विधानसभा परिसर में पत्रकारों को बताया कि हमलोगों ने फैसला कर लिया है. अब राज्य का नाम बांग्ला और बंगाल होगा. उन्होंने कहा, "सरकार ने केंद्र से नाम बदलने के प्रस्ताव को स्वीकार करने का अनुरोध किया है. हम चाहते हैं कि संसद के अगले अधिवेशन में इस फैसले पर मुहर लग जाए." मुख्यमंत्री ने बताया कि इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से उनकी बात हो गई है.
व्यावहारिक फैसला
दरअसल, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अंतरराज्यीय परिषद समेत तमाम अहम बैठकों में बोलने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर-कर थक गई थीं. अंग्रेजी में वेस्ट बंगाल वर्णमाला के अक्षरों के क्रम में लगभग आखिर में आता था. ऐसे में ममता को अपनी बात कहने का बहुत कम समय मिल पाता था या कई बार तो समय ही नहीं मिल पाता था. इसलिए उन्होंने कैबिनेट में राज्य के नाम वेस्ट या पश्चिम हटाने का फैसला किया.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रस्ताव पर कैबिनेट को भला क्या आपत्ति होती? सो, उसने इस पर अपनी मुहर लगा दी. उस समय तय हुआ था कि राज्य का नाम बांग्ला रखा जाए या बंगो, इसका फैसला बाद में किया जाएगा. तमाम विपक्षी दलों ने सरकार से इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाने की अपील की थी. लेकिन ऐसा करने की बजाय सरकार ने विधानसभा के विशेष अधिवेशन में इसका फैसला करने की बात कही थी. इसी वजह से 26 अगस्त से विशेष सत्र बुलाया गया था.
असहमत हैं राजनीतिक दल
ममता का कहना है कि इससे पहले वाममोर्चा सरकार ने भी राज्य का नाम बदलने का प्रयास किया था. लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं रही थी. अब मोर्चा और दूसरे दल इसका विरोध कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि नाम बदलने के प्रस्ताव का विरोध करने वालों को इतिहास कभी माफ नहीं करेगा. ऐसे लोग इतिहास का मखौल उड़ाने का प्रयास कर रहे हैं.
विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान कहते हैं कि वह चाहते थे कि इस मुद्दे पर जनमत संग्रह हो या फिर इसका फैसला करने के लिए एक आयोग का गठन किया जाए. उनकी टिप्पणी पर ममता कहती हैं कि तीन महीने पहले हुआ विधानसभा चुनाव जनमत संग्रह ही था और नतीजे सबके सामने हैं.
लेफ्ट फ्रंट विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती ने इस मुद्दे पर फैसले के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है. वह कहते हैं, "हमें नए नाम बांग्ला पर कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन एक राज्य के तीन नाम कैसे हो सकते हैं?" उनकी दलील है कि आखिर उत्तर प्रदेश को अंग्रेजी में नार्दर्न प्रोविंस नहीं कहा जाता. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दिलीप घोष ने धमकी दी है कि वह राज्य का नाम बदलने के प्रस्ताव को संसद में पारित नहीं होने देंगे.