परमाणु युद्ध का बढ़ता खतरा
१६ अक्टूबर २०१२विशेषज्ञ मानते हैं कि क्यूबा मिसाइल संकट परमाणु युद्ध में नहीं बदल सका क्योंकि उस वक्त दुनिया में केवल दो देशों - रूस और अमेरिका के पास ही परमाणु हथियार थे. तब दोनों देशों को यह अहसास था कि अगर परमाणु हमला हुआ तो कोई भी देश दोबारा हमला करने की स्थिति में नहीं होगा. पर आज ऐसा नहीं है.
क्यूबा मिसाइल संकट 1962 में हुआ जब 14 अक्टूबर को कम्युनिस्ट देश क्यूबा में सोवियत संघ ने मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें तैनात कर दी. अमेरिकी सेना का ग्वांतानामो बेस और फ्लोरिडा तट पूरी तरह से इन मिसाइलों की मार की जद में था. जवाब में अमेरिका ने भी अपने लड़ाकू विमानों को युद्ध के लिए तैयार कर लिया था. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने उस वक्त सोवियत संघ से बिना शर्त मिसाइलों को हटाने की मांग की. इसके बाद दोनों देशों के बीच समझौता हुआ. परमाणु युद्ध के खतरे को दुनिया ने इतनी नजदीक से कभी महसूस नहीं किया था.
धमकी से बढ़ा युद्ध का खतरा
आज ईरान भी परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश में लगा हुआ है. पडो़सी देश भारत और पाकिस्तान पहले से ही परमाणु शक्ति संपन्न हैं. ऐसे में शक्ति का संतुलन गड़बड़ाया हुआ है. रेगन्सबुर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राइनहार्ट मायर वाल्सेर इसे "आतंक का संतुलन" कहते हैं. वह कहते हैं कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद "आतंक का संतुलन" उस तरह का नहीं रहा जैसे पहले था. उनका कहना है, "आज क्षैतिज निशस्त्रीकरण में समस्याएं आ रही हैं. इसका मतलब यह हुआ कि बड़ी ताकतें तो परमाणु हथियार कम करने में लगी हैं, लेकिन छोटे छोटे देश परमाणु हथियार बना रहे हैं." आधिकारिक परमाणु संपन्न देशों, यानि अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस के अलावा भारत और इस्राएल के पास भी परमाणु हथियार हैं. राजनीतिक रूप से अस्थिर पाकिस्तान और निरंकुश उत्तरी कोरिया भी परमाणु शक्ति से संपन्न हैं.
उत्तर कोरिया के उप विदेश मंत्री पाक किल योन ने संयुक्त राष्ट्र संघ में पिछले हफ्ते ही बोलते हुए कहा कि कोरियाई द्वीप पर किसी तरह का उकसावा परमाणु युद्ध को भड़का सकता है. 1968 में परमाणु निशस्त्रीकरण संधि पर हस्ताक्षर करने वाला ईरान भी अब परमाणु हथियार हासिल करने में लगा है. चार परमाणु शक्ति संपन्न देशों के विरोध के बावजूद ईरान अपने विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है. इस्राएल के खिलाफ ईरान की धमकी भी कम नहीं हो रही.
मध्य एशिया में हथियारों की होड़
परमाणु हथियारों से कितना नुकसान हो सकता है इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. फ्रैंकफर्ट के पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट में काम करने वाली अनेटे शापेर कहती हैं, "परमाणु हथियारों से ऐसा खतरा होता है जिसके बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता. आप कभी भी निश्चित तौर पर यह नहीं जानते कि परमाणु हथियारों से संपन्न देश कैसा व्यवहार करेगा. " हालांकि वह यह भी कहती हैं कि न तो ईरान और न ही उत्तरी कोरिया परमाणु हमला करेंगे क्योंकि उन्हें जवाबी हमले का भी डर है. उत्तरी कोरिया ने मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों का परीक्षण कर लिया है लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है. ईरान की आर्थिक हालत कोरिया से भले ही बेहतर है लेकिन कूटनीतिक तौर पर दोनों देश पूरी दुनिया में अलग थलग हैं. शापेर कहती हैं, "इस तरह की स्थित में अलग थलग पड़े देश आक्रामक रवैया अपना लेते हैं. उन्हें घरेलू राजनीति में संतुलन साधने में मदद मिलती है."
ईरान के बारे में कहा जा सकता है कि परमाणु हथियार हासिल करने की उसकी जिद के पीछे शक्ति, सम्मान और क्षेत्रीय प्रभुत्व हासिल करने की इच्छा है. विशेषज्ञों का मानना है कि खतरा सउदी अरब जैसे देशों से भी है जो परमाणु हथियारों से संपन्न ईरान को खतरा मानते हुए हथियारों की नई दौड़ शुरु कर सकते हैं.
भारत पाकिस्तान का तनाव
पाकिस्तान के बारे में सबसे खतरनाक बात यह है कि परमाणु शक्ति से संपन्न यह देश राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है. परमाणु हथियारों के आतंकवादियों के हाथ में पड़ने की लगातार आशंका जताई जा रही है. पाकिस्तान परमाणु कार्यक्रम के जनक अब्दुल कादिर खान पर परमाणु तकनीक को बेचने के भी आरोप लगते रहे हैं. शापेर का इस बारे में कहना है, "पाकिस्तान का व्यवहार पूरी तरह से विध्वंसक रहा है. ईरान, ईराक और लीबिया में यूरेनियम संवर्धन के जितने भी प्लांट हैं उनके तार कहीं न कहीं पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं."
पड़ोसी देश भारत से मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान पहले से ही तैयारी करता रहा है. भारत पाकिस्तान के बीच हथियारों की जंग शीत युद्ध के दौर की याद दिलाती है. लेकिन शापेर भारत और पाकिस्तान में अंतर भी करती हैं. वह कहती हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच काफी फर्क है. "अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा और अर्थव्यवस्था पाकिस्तान के मुकाबले काफी मजबूत है." मायर वाल्सेर इस बारे में कहते हैं," निवारण की प्रक्रिया अलग अलग बातों पर निर्भर करती थी. आज उनमें से कोई भी नहीं है. जैसे कि युद्ध की परंपरागत क्षमताएं. खतरा इस बात का है कि पाकिस्तान और ईरान जैसे देश युद्ध की स्थिति में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि उनके परंपरागत हथियार इतने मजबूत नहीं हैं कि वे दुश्मन को हरा सकें." शापेर का कहना है कि क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान कोई भी पक्ष पागलपन की सीमा तक नहीं पहुंचा और इसी से दुनिया बच गई, "लेकिन इस बार बटन किस के हाथ में होगा हम नहीं जानते और हमें यह भी नहीं पता कि वह किस तरह पेश आएगा."
रिपोर्टः क्रिस्टीन रुटा/वीडी
संपादनः ईशा भाटिया