परमाणु कचरे से जर्मनी परेशान
१० सितम्बर २००८जर्मनी की राजधानी बर्लिन से क़रीब सवा दो सौ किलोमीटर दूर लोअर सैक्सनी प्रांत का आस्से परमाणु कचराघर. 1967 में यहां की एक नमक खान को परमाणु कचराघर के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा और तब से यहां लगातार परमाणु कचरा जमा किया जाता रहा है.
लेकिन हाल के दिनों में पता चला कि यह जगह पूरी तरह सुरक्षित नहीं और यहां के कई चैंबरों से पानी का रिसाव हो रहा है, जो परमाणु कचरे तक पहुंच रहा है. पानी के साथ रेडियोधर्मी पदार्थ के पर्यावरण में घुल जाने का ख़तरा बढ़ता जा रहा है. इस ख़ुलासे के बाद तो जैसे जर्मनी में हड़कंप मच गया. पर्यावरण मंत्री ज़िगमार गाबरियल को सामने आना पड़ा और इसकी ज़िम्मेदारी लेनी पड़ी. ज़िगमार गाब्रियेल का कहना है "इस जगह की देख रेख करने वाले लोगों को बहुत दिनों से इस बारे में पता था. यहां रेडियोधर्मिता से बचने के लिए ज़रूरी मानकों का भी पालन नहीं किया गया. इसकी देख रेख करने वालों को नियम क़ानूनों के बारे में भी पूरी जानकारी नहीं है. और वहां निर्माण की वजह से नए ख़तरे पैदा हो रहे हैं."
रिपोर्टों के मुताबिक़ 1988 में पहली बार पता चला कि इस जगह से रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव हो रहा है. लेकिन इस बात को दबा दिया गया. आस्से के परमाणु ठिकाने की देख रेख का ज़िम्मा एक सरकारी संस्था के हाथ में था, और समझा जाता है कि इस संस्था हेल्महोल्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंटिफ़िक रिसर्च के ख़िलाफ़ भी कड़ी कार्रवाई हो सकती है. संस्था ने आख़िरकार जब रिसाव की जानकारी दी तो यह भी कहा कि उसे नहीं लगता था कि रिसाव की जानकारी मीडिया में दिए जाने की ज़रूरत थी. संस्था के प्रवक्ता हाइंत्स इयोरी हॉरी ने तो यहां तक कहा कि हमें नहीं लगता था कि जनता को यह जानने में दिलचस्पी होगी कि आस्से में रेडियोधर्मी पदार्थों का रिसाव हो रहा है. जर्मनी की पूर्व पर्यावरण मंत्री और ग्रीन पार्टी की एक नेता रिनाटे क्युइनास्ट कहती हैं कि "हम वैज्ञानिकों पर भरोसा नहीं कर सकते और संस्थाओं पर भी भरोसा नहीं कर सकते. मेरा मानना है कि आस्से को लेकर ख़तरा तो बना ही रहेगा. इसलिए परमाणु कचरे के लिए नई जगह की तलाश अभी से शुरू कर दी जानी चाहिए."
मामले की गंभीरता को देखते हुए जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल को भी इस ओर तवज्जो देना पड़ा. भौतिक शास्त्र की जानकार मैर्केल ने कहा कि हमें फ़ैसला करना होगा कि परमाणु कचरे के लिए आख़िरकार किस जगह का इस्तेमाल किया जाए. ग्रीन पीस जैसी संस्थाएं परमाणु बिजली के ख़िलाफ़ हैं और उनका तो मानना है कि यहां से कचरा फ़ौरन हटाना चाहिए. टोबियास म्यूनशेमेयर के शब्दों में "आस्से का जो परमाणु ख़तरा है, वो पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा ख़तरा बनता जा रहा है. इसके जवाब में एक ही चीज़ हो सकती है और वह यह कि इस कचरे को तुरंत निकाला जाना चाहिए."
जर्मनी में चांसलर गेरहार्ड श्रोएडर के वक्त तय किया गया था कि साल 2021 तक यहां के परमाणु रिएक्टरों को बंद कर दिया जाएगा. लेकिन मौजूदा चांसलर अंगेला मैर्केल की पार्टी चाहती है कि परमाणु बिजली बनती रहे और वह 2021 की डेडलाइन को आगे बढ़ाना चाहती हैं. लेकिन आस्से के ताज़ा विवाद के बाद उनकी योजना मुश्किल होती दिख रही है. परमाणु ख़तरों का ध्यान आते ही ज़ेहन में 22 साल पुराने चेरनोबिल दुर्घटना कौंध जाती है, जब उस वक्त के सोवियत रूस में चेरनोबिल परमाणु संयंत्र का रिएक्टर फट गया था और पूरे पर्यावरण में ज़हरीले रेडियोधर्मी पदार्थ फैल गए थे. आज भी चेरनोबिल की घटना का ख़ौफ़ ख़त्म नहीं हुआ है. हालांकि आस्से परमाणु रिएक्टर नहीं, बल्कि कचरा जमा करने की जगह है, लेकिन यहां से भी रेडियोधर्मी पदार्थों के पर्यावरण में फैलने का ख़तरा तो है ही. तभी तो ख़ुद जर्मनी के पर्यावरण मंत्री गाबरियल कहते हैं. "मेरी नज़र में आस्से यूरोप का सबसे समस्या वाला परमाणु संयंत्र है."
जर्मनी में चार जगहों पर परमाणु कचरे जमा होते हैं. आस्से के अलावा गोरलेबेन, मोर्सलेबन और शाख़्ट कॉनराड में. अगर आस्से के बदले अगर नई जगह ली जाती है तो इस पर कम से कम एक अरब यूरो यानी 65 अरब रुपये ख़र्च होंगे. यूरोप का दूसरा देश फ्रांस अपने परमाणु कचरे को इंग्लिश चैनल के पास समुद्री तट पर जमा कर रहा है.
परमाणु कचरा की सबसे बड़ी समस्या है कि वह हज़ारों साल तक रेडियोधर्मी बना रहता है और अब तक उनके सुरक्षित निपटारे का फ़ॉर्मूला नहीं निकल पाया है.