न्यूजवीक ने दम तोड़ा
२६ दिसम्बर २०१२न्यूजवीक की शुरुआत यूं तो अमेरिका में हुई थी लेकिन इसे चाहने वाले पूरी दुनिया में थे. हर हफ्ते अलग अलग मुद्दों पर शानदार रिपोर्टें और विश्लेषण देने वाली पत्रिका को टाइम के साथ दुनिया की दो सबसे शानदार हफ्तेवार पत्रिकाओं में गिना जाता था. पत्रकारिता के मानक तय करने वाली इस मैगजीन को दुनिया भर के पत्रकार भी किसी कीमती दस्तावेज की तरह देखते थे. पर कई पीढ़ियों को पत्रिका पढ़ने का तरीका समझाने वाली न्यूजवीक के पाठक हाल के सालों में इस कदर घट गए कि प्रकाशन और बिक्री का बोझ इसके सहन से बाहर हो गया. सोमवार को इसका आखिरी अंक प्रकाशित होने के साथ ही छापाखाना बंद हो गया. यह अंक 31 दिसंबर, 2012 का है.
प्रमुख संपादक टीना ब्राउन और सीईओ बाबा शेट्टी ने अक्तूबर में ही इस बात का एलान कर दिया था. न्यूजवीक के कई अंतरराष्ट्रीय एडिशन भी हैं. उन पर भी ताला लग गया. अब सिर्फ एक ऑनलाइन अंक न्यूजवीक ग्लोबल बचेगा, जो ईबुक और टैबलेट पीसी पर भी पढ़ा जा सकता है. ब्राउन और शेट्टी ने इस बात की सफाई देते हुए लिखा था, "हम सिर्फ बदलाव कर रहे हैं. अलविदा नहीं कह रहे हैं. हम अब भी पत्रकारिता के उसूलों के साथ प्रतिबद्ध हैं. यह पत्रकारिता के स्तर को लेकर किया गया फैसला नहीं है. यह हमेशा की तरह शक्तिशाली रहेगा. यह प्रिंट की चुनौतियों की वजह से किया गया फैसला है."
नहीं बचेगी विरासत
हालांकि जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में मीडिया और पब्लिक रिलेशन के प्रोफेसर क्रिस्टोफ स्टर्लिंग मानते हैं कि 24/7 खबरों की आपाधापी में न्यूजवीक नहीं बच पाएगा, "मैं नहीं समझ पाता हूं कि ऑनलाइन में जिस तरह का कंप्टीशन है, उसमें न्यूजवीक ब्रांड के तौर पर क्या कर पाएगा." उनका कहना है कि सिर्फ न्यूजवीक ही नहीं, बल्कि कई दूसरे प्रिंट मैगजीन को भी बोरिया बिस्तर बांधना पड़ सकता है, "पत्रिका पतली से पतली होती जा रही है. ऐसा लगता है कि आप किसी दोस्त को मरते हुए देख रहे हैं. मुझे लगता है कि हमें ऐसा और भी देखना पड़ सकता है."
टाइम और न्यूजवीक
न्यूजवीक प्रसार के स्तर पर कभी भी टाइम को पछाड़ नहीं पाया. लेकिन इसी वजह से न्यूजवीक को अलग तरह की रिपोर्टिंग का मौका मिला. उसने खोजी पत्रकारिता में झंडे गाड़े. इराक युद्ध की योजना से लेकर मोनिका लेविंस्की जैसे मामले न्यूजवीक के दस्तावेजों में मौजूद हैं.
वाशिंगटन की ही प्रोफेसर पैट्रीशिया फालेन का कहना है, "न्यूजवीक एक बेहद अहम और आदर्श पत्रिका थी. लोग या तो टाइम के फैन हुआ करते थे, या न्यूजवीक के. हर अमेरिकी घर में इनमें से एक पत्रिका जरूर होती थी. कुछ किया जाना चाहिए था कि इसे बचाया जा सके."
पहला अंक
जिस वक्त दुनिया में दूसरे विश्व युद्ध की भूमिका बन रही थी, 17 फरवरी 1933 को न्यूजवीक ने पहला अंक प्रकाशित किया. पहले पन्ने पर नाजी चरमपंथ से जुड़ी सात तस्वीरें थीं. पहले संपादक थॉमस जे मार्टिन टाइम में काम कर चुके थे. पत्रिका की कीमत 10 सेंट थी और सालाना सब्सक्रिप्शन चार डॉलर का. पहले अंक से ही इसने तहलका मचा दिया और अमेरिका में इसकी खूब बिक्री होने लगी.
1961 में वाशिंगटन पोस्ट ने न्यूजवीक को खरीद लिया. तब तक यह अमेरिका में दूसरी सबसे ज्यादा बिकने वाली पत्रिका बन चुकी थी. 1991 में इसके 33 लाख अंक बिकने लगे और कुछ आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में 40 लाख से भी ज्यादा. लेकिन 2012 आते आते सर्कुलेशन 15 लाख पर सिमट गया. इनमें से भी ज्यादातर सब्सक्रिप्शन वाली कॉपियां थीं.
2009 में न्यूजवीक की कीमत 45 सेंट से बढ़ा कर 90 सेंट की गई तो उस वक्त के प्रमुख संपादक जॉन मेकम ने निराश होकर कहा, "अगर हम 15 लाख लोगों को यह भी नहीं समझा सकते कि एक डॉलर से भी सस्ते हैं तो इसका मतलब बाजार ने फैसला कर लिया है."
फिर बिका न्यूजवीक
पत्रिका को बचाने की कोशिशें नाकाम हुई, तो ऑडियो कंपनी सिडनी हारमन ने अगस्त 2012 में पूरी कंपनी को सिर्फ एक डॉलर में खरीद लिया. इसके साथ उन्होंने करोड़ों के कर्ज का भी जिम्मा लिया था. इंटरनेट पर न्यूजवीक डेली बीस्ट के साथ मिल कर खबरें देने लगा.
प्रोफेसर स्टर्लिंग समझते हैं कि सिर्फ इंटरनेट से न्यूजवीक को बचाना संभव नहीं होगा और आने वाले समय में यह पूरी तरह दम तोड़ देगा. हालांकि प्रोफेसर फालेन कहती हैं कि यह अपनी जगह बना लेगा.
शायद न्यूजवीक का वजूद बना रहे लेकिन हल्के क्रीम रंग के पन्नों की कागजी महक अब कभी नहीं महसूस होगी. और न ही उन पर उकेरी गईं शानदार कहानियां लौट पाएंगी.
एजेए/एमजे (डीपीए)