नासा ने की चांद पर बमबारी शुरु
१० अक्टूबर २००९नासा ने एक बयान में कहा, "सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा है, दोनों यानों की यात्रा बिलकुल ठीक थी, हमारे उपकरणों ने कई बार उम्मीद से अच्छा काम किया और हमें कुछ बहुत ही दिलचस्प बातें पता चलीं हैं."
शुक्रवार को जीएमटी के हिसाब से सुबह के वक़्त 1131 पर एलक्रॉस मिशन का एक रॉकेट चांद के दक्षिणी हिस्से में सीबस क्रेटर से टकराया. इसकी गति 5,600 किलोमीटर प्रति घंटा थी. इसके तुरंत बाद रॉकेट का पीछा कर रहे कैमरा वाले शेफ़र्डिंग यान को भेजा गया जिससे विस्फोट को रिकॉर्ड किया गया. शेफ़र्डिंग यान किसी वजह से विस्फोट की लाइव वीडियो नहीं भेज पाया लेकिन नासा का कहना है कि इससे योजना में किसी भी परेशानी का संकेत नहीं मिलता है.
विस्फोट में जितना मलबे के ऊपर उछलने की उम्मीद थी, उतना नहीं हो पाया. प्रयोग की अगुवाई कर रहे एंथनी कोलाप्रेत का मानना है कि रॉकेट शायद क्रेटर के बीच के हिस्से के बजाय उसके बाहरी हिस्से से टकराया जिसकी वजह से मलबे की मात्रा कम थी. चांद पर बमबारी के दौरान नासा को अपने टेलीविज़न पर थर्मल छवियां देखने को मिलीं. थर्मल इमेजिंग के ज़रिए किसी भी चीज़ की सतह में अलग अलग तापमान को महसूस करके उसकी छवि बनाई जा सकती है. छवियों में चांद के ठंडे इलाके नीले लग रहे थे जब कि गर्म इलाकों का रंग लाल था. इन छवियों को पढ़कर इस विस्फोट से बाहर निकले रासायनिक पदार्थों की संरचना का पता लग सकेगा.
कोलाप्रेत ने चांद में पानी की मात्रा के बारे में कुछ नहीं कहा है. उनके मुताबिक इन छवियों की जांच में हाइड्रोजन वाले पदार्थों का पता लगाया जाएगा. हाइड्रोजन वाले मिश्रणों के पता लगने से चांद पर पानी के अस्तित्व के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि पानी हाइड़्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया से बनता है. कोलाप्रेत का कहना है कि पता लगाने में कई हफ़्ते लग सकते हैं.
लेकिन इसके बावजूद नासा के इस मिशन के उप-प्रबंधक डग कुक कहते हैं,"यह विज्ञान और खोज के लिए बहुत बड़ा दिन है." एलक्रॉस मिशन को इस साल जून में एटलस पांच रॉकेट के ज़रिए लॉंच किया गया था. भारतीय अंतिरक्ष एजेंसी इसरो ने हाल ही में चांद में पानी मिलने की पुष्टि की थी. इससे पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि चांद में गड्ढों के अलावा पानी का और कहीं भी मिलना मुश्किल है. अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे प्रोफ़ेसर पीटर शुल्ज़ का कहना है कि चांद में पानी की खोज से हम अनुमान लगा सकते हैं कि पिछले हज़ारों सदियों में पानी चांद और बाकी ग्रहों तक कैसे पहुंचा, शायद धूमकेतुओं के टकराने से. और अगर चांद में पानी के स्थानीय स्रोत का पता लग जाता है तो वहां ऊर्जा का भी उत्पादन किया जा सकता है. अगर ऐसा मुमकिन है तो शायद चांद में पानी का मिलना एक शुद्ध वैज्ञानिक जिज्ञासा से निकल कर धरती में बढ़ती ऊर्जा समस्या का भी हल बन सकता है.
रिपोर्ट- एजेंसियां/एम गोपालकृष्णन
संपादन- एस जोशी