नन्हें हाथों से कठोर परंपरा का शानदार समापन
२६ मई २०१०प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा रीति-रिवाजों और पूजा-अनुष्ठानों को लेकर भी केरल की अपनी विशिष्ट पहचान है. इसी केरल के त्रिचूर में सदियों पुरानी परिपाटी को 12 साल की नन्ही ज्योत्सना ने गौरवशाली ढंग से तोड़ दिया. ज्योत्सना ने त्रिचूर के बरसों पुराने पेनकिन्नीकव्वु भद्रकाली मंदिर में देवी प्रतिमा की पूरे विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा की. यूं तो किसी बच्ची का इस तरह मूर्ति स्थापना का कार्य कोई चमत्कार नहीं लेकिन ज्योत्सना के मामले में यह किसी चमत्कार से कम भी नहीं.
दरअसल, त्रिचूर के इस पुराने पेनकिन्नीकव्वु भद्रकाली मंदिर में प्राचीन नियमानुसार कुछ नंबुदिरी (एक विशेष जाति) के पुरुष ही देव प्रतिमाओं की स्थापना कर सकते हैं. यहां तक कि इसी परंपरा के चलते मंदिर में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा तो दूर महिलाओं के प्रवेश तक की अनुमति नहीं है. इस कठोर परंपरा के पीछे महिलाओं से संबंधित कई प्रकार की नकारात्मक अवधारणाएं हैं. लेकिन तमाम प्रश्नों और रिवाजों के बीच जब नन्ही-सी ज्योत्सना ने धाराप्रवाह मंत्रोच्चार के साथ पुराने रिवाजों को मंदिर के बाहर कर दिया.
इस नन्ही-सी कन्या ने कीर्तिमान को रचने से पहले लगातार दो वर्ष तक सारे पारंपरिक अनुष्ठान और संस्कारों को विधिपूर्वक अपने पिता से सीखा. त्रिचूर के नंबूदिरी ब्राह्मण थैक्किन्यदात पद्मनाभन और अर्चना अंतरजनम की इस लाड़ली का बचपन से ही पूजा पाठ की ओर गहरा रूझान दिखाई देने लगा था.
ज्योत्सना का सफर
ज्योत्सना, केरल के मान्यता प्राप्त पांडित्य परंपरा थारानाल्लुर से ताल्लुक रखती है. केरल में थारानाल्लुर और थाजामोन दो ऐसी ब्राह्मण धाराएं हैं जो पूजन, विधि-विधान, अनुष्ठान और संस्कारों के विशेषज्ञ माने जाते हैं.
बहरहाल, भद्रकाली पेनकिन्नीकव्वु की ज्योत्सना द्वारा स्थापित प्रतिमा मंदिर की दूसरी दैवीय प्रतिमा है. रविवार को ज्योत्सना ने एक भी शब्द, मात्रा और ध्वनि की त्रुटि किए बिना पूजा की तो लोगों के साथ उसकी सहेलियों के चेहरे भी चमक उठें.
ज्योत्सना के पिता टी पद्मनाभन ने सहज भाव से बताया कि जब ज्योत्सना ने इस तरह मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का निर्णय लिया तो हमें किसी भी प्रकार का विरोध का सवाल ही खड़ा नहीं हुआ, क्योंकि ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा है कि मात्र पुरुष ही प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा कर सकते हैं महिलाएँ नहीं.
पढ़ाई में भी अव्वल
पवित्र कुल की यह विदुषी कारंचिरा के सेंट जेवियर स्कूल की छात्रा है. ज्योत्सना के शिक्षक कहते हैं, वह पढ़ाई में भी अव्वल है. जबकि खुद ज्योत्सना कहती है, यह सच है कि मेरा अपनी प्राचीन धार्मिक परंपराओं को आगे बढ़ाने का सपना है लेकिन इसके लिए मैंने पढ़ाई से समझौता नहीं किया है ना ही करुंगी. अपनी पढ़ाई के साथ-साथ शास्त्रों को पढ़ने, मंत्रों और विधानों को सीखने में व्यक्तिगत रूचि है.
इस अनूठे क्रांतिकारी कदम से केरल के कट्टरपंथियों में यह बहस शुरू हो गई है कि कहीं इस घटनाक्रम के साथ ही शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा ना सिर उठा लें, या फिर पिछड़े वर्ग से पुजारियों की नियुक्ति का ही सवाल ना उठ खड़ा हो. इस तरह की सोच को सदियों से नहीं रोका जा सका है लेकिन ज्योत्सना जैसे उदाहरण इस सोच के समक्ष छोटा किन्तु ठोस जवाब बनकर उभरते हैं.
रिपोर्ट: स्मृति जोशी (वेबदुनिया )
संपादन: प्रिया एसेलबॉर्न