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कला

धरोहरों को ऐसे संभाला जाता है

महेश झा
१० मई २०१८

भारत में प्राचीन स्मारकों और धरोहरों की रक्षा का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई करता है. ताजमहल की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई की योग्यता पर सवाल उठाए हैं. जर्मनी के अनुभव भारत के काम आ सकते हैं.

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Touristen bei dem Tajmahal
तस्वीर: DW

स्मारक इंसानों की बनाई गई वे रचनाएं हैं जो बीते समय की याद दिलाती है. ये इमारतें भी हो सकती हैं, बाग या कुछ और भी. जो पुरानी धरोहरों को संजो कर नहीं रखता, वह न सिर्फ उस प्राचीन ज्ञान को खो देता है बल्कि इंसानी कोशिशों का अनादर भी करता है. जर्मनी में करीब 13 लाख स्मारक हैं. उनमें महलों, किलों और गिरजाघरों के अलावा बाग, बगीचे और औद्योगिक इमारतें भी शामिल हैं. जर्मनी ने 2013 के आंकड़ों के हिसाब से करीब 50 करोड़ यूरो स्मारक संरक्षण पर खर्च किए. इसमें 48 प्रतिशत प्रांतीय स्तर पर, 35 प्रतिशत नगरपालिकाओं के स्तर पर और 17 प्रतिशत केंद्र सरकार के बजट से खर्च किए गए.

जर्मनी में स्मारकों के संरक्षण की लंबी परंपरा है. कम से कम 19वीं सदी से स्मारक संरक्षण शब्द का जिक्र सरकारी और अकादमिक लेखों में मिलता है. पहली बार इसका उल्लेख ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्रालय के एक दस्तावेज में मिलता है जिसमें स्मारक संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं के सम्मेलन की चर्चा है. वैसे स्थानीय निकायों के स्तर पर प्राचीन काल से इमारतों के संरक्षण के लिए नियम कायदे बनाए जाते रहे हैं. चौथी सदी के दस्तावेजों में खासकर शहरों से संगमरमर, खंभे और दूसरी कलात्मक चीजों को ले जाने पर रोक का जिक्र मिलता है. उस वक्त रोम में अंधविश्वास के खिलाफ चल रहे अभियान के बावजूद रोम के बाहर के मंदिरों को सुरक्षित रखने के आदेश दिए गए थे. पांचवी सदी में रोमन साम्राज्य में सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए बनी इमारतों को नुकसान पहुंचाने पर रोक थी.

Deutschland Stuttgart Wilhelmspalais
श्टुटगार्ट में वुर्टेमबर्ग के अंतिम राजा का महल, सांस्कृतिक घरोहर तस्वीर: imago/A. Hettrich

आधुनिक काल में स्मारकों की सुरक्षा के लिए बौद्धिक आधार तैयार करने का श्रेय जर्मन महाकवि गोएथे को दिया जा सकता है. गोएथे ने एक लेख में लिखा था, "जब मैं तुम्हारी कब्र के आसापास घूम रहा था कुलीन एरविन, तो कोई निशानी ना पाकर मुझे आत्मा की असीम गहराई तक दुःख हुआ, और मेरे दिल ने तुम्हारा स्मारक बनाने की शपथ ली.”

मशहूर जर्मन दार्शनिक फ्रीडरिष नीत्शे ने जीवन के लिए इतिहास के फायदों और नुकसान पर 1874 में लिखा था, "इतिहास उन संरक्षकों और आदर करने वालों का होता है जो वफादारी और प्यार के साथ वहां देखता है जहां से वह आया है, जहां वह पला बढ़ा है, इस श्रद्धा के साथ वह अपने अस्तित्व के लिए आभार व्यक्त करता है. पहले से मिली चीजों को सावधानी से संरक्षित कर वह उनके बनने की परिस्थितियों की सुरक्षा बाद में बनने वाली चीजों के लिए संरक्षित करता है, और इस तरह वह जीवन की सेवा करता है."

स्वाभाविक है कि ऐसी बहसों के बीच जर्मन समाज बेहतरीन वास्तुकार पैदा किए हैं. इन वास्तुकारों ने ना सिर्फ विश्व प्रसिद्ध इमारतें बनाईं और वास्तुकला के विकास में गहन योगदान दिया बल्कि ऐसे संरक्षण की कला को भी परवान चढ़ाया. प्रसिद्ध जर्मन आर्किटेक्ट शिंकेल ने शिकायत की थी, "अकसर ऐसा होता है कि इन दफ्तरों में कोई आवाज नहीं सुनाई देती थी जो इन चीजों के महत्व के लिए भावनाओं से प्रेरित हो या उसके बचाव की जिम्मेदारी लेने के लिए पर्याप्त रूप से सशक्त महसूस करती हो. इसकी वजह से हमारी पितृभूमि ने अपने बहुत से खूबसूरत गहनों को खो दिया है, जिस पर हमें अफसोस होना चाहिए." उनकी पहल पर ही पहली बार सरकारी स्मारक संरक्षण की संरचना बनी.

Deutschland - Berliner Schauspielhaus
शिंकेल का 1821 में बनाया बर्लिन का शाउस्पील हाउस, 1984 में इसका जीर्णोद्धार हुआ तस्वीर: picture-alliance/zb

दूसरे विश्वयुद्ध में बहुत बर्बादी हुई थी. शहर के शहर नष्ट हो गए थे और सारी इमारतों को फिर से पुराने प्लान के हिसाब से बनाना संभव नहीं था. ऐसे में बहुत से वास्तुकार नष्ट इमारतों से विदा लेने की हिम्मत दिखाने की वकालत कर रहे थे. लेकिन बहुत से वास्तुकार पुरानी धरोहरों की रक्षा को जरूरी मानते थे. 1964 में इटली के वेनिस शहर में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने और उनके जीर्णोद्धार पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि हुई. इसमें सिर्फ एकल इमारतों को ही धरोहर नहीं माना गया बल्कि सांस्कृतिक विकास दिखाने वाले इलाकों को भी संरक्षण योग्य धरोहर माना गया. जर्मनी में 1975 में स्मारक संरक्षण साल मनाने के साथ धरोहरों को बचाने के आंदोलन में तेजी आई. लेकिन आर्थिक विकास के साथ स्मारक संरक्षण और पुरानी इमारतों को तोड़कर आधुनिक इमारतें बनाने की दुविधा भी सामने आया है.

जर्मनी में स्मारक संरक्षण कानून देश भर में स्मारकों के संरक्षण और रखरखाव का कानूनी आधार देता है. इस पर अमल करने की जिम्मेदारी नगरपालिका और जिला स्तर के स्मारक संरक्षण अधिकारियों की है जबकि निगरानी की जिम्मेदारी राज्य स्तरीय संरक्षण दफ्तर और संस्कृति मंत्रालय पर होती है. स्मारक संरक्षण के लिए सरकार बजटीय संसाधनों का प्रावधान कर रही है और साथ ही इसे प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट भी देती है. 1985 से जर्मनी में स्मारक संरक्षण न्यास है जो पिछले तीन दशकों में जर्मनी में स्मारक संरक्षण की सबसे बड़ी गैरसरकारी पहल है. स्मारक संरक्षण के लिए उचित माहौल बनाने और उसके लिए ट्रेनिंग मुहैया कराने के अलावा यह अबतक हजारों स्मारकों के जीर्णोद्धार में मदद भी कर चुका है.