दो घंटे में चलेगा पता, टीबी है या नहीं
४ सितम्बर २०१०अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्सियस डिसीज के वैज्ञानिकों ने मॉलीक्यूलर टेस्ट के जरिए किए जाने वाले इस परीक्षण में 98 प्रतिशत सफलता का दावा किया है. इस टेस्ट में उन मरीजों का भी सफल परीक्षण किया जा सकता है जिन पर टीबी की दवाओं का असर कम होने लगा है.
रिसर्च टीम के मुखिया एंटोनी फॉसी ने बताया कि शोध के दौरान 1,730 मरीजों का परीक्षण किया गया जिसके 98 प्रतिशत परिणाम सही पाए गए. दो घंटे से भी कम समय में किए गए इस टेस्ट में उन मरीजों की भी पहचान कर ली गई जिनमें टीबी की सबसे कारगर मानी जाने वाली दवा रिफेम्पसिन को बेअसर करने की क्षमता ट्यूबरक्लोसिस ने उत्पन्न कर ली थी.
फॉसी ने शोध के परिणामों को सटीक और असरदार बताया. उन्होंने बताया कि इससे न सिर्फ बीमारी को पकड़ा जा सकता है बल्कि यह पता भी लगाया जा सकता है कि इससे निपटने के लिए कितनी असरदार दवा दी जानी चाहिए. उन्होंने दावा किया यह तकनीक 125 साल पुराने इस वायरस की पहचान के लिए अब तक प्रचलित तरीकों में सबसे कारगर है.
फॉसी ने कहा कि मौजूदा पद्धति में माइक्रोस्कोप से टीबी की पहचान की जाती है, जिसमें कुछ सप्ताह का समय लगता है. वहीं उन मरीजों के परीक्षण में कई महीने लग जाते हैं जिन पर टीबी की दवा बेअसर हो जाती है. ऐसे में सिर्फ दो घंटे में वायरस की पहचान करने वाला यह टेस्ट काफी उपयोगी है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि आमतौर पर टीबी गरीब तबकों में होती है. टीबी के कहर से सबसे ज्यादा परेशान अफ्रीकी देश, चीन और भारत को इस खोज से काफी फायदा होगा. टीबी दुनिया भर में होने वाली मौतों का दसवां सबसे बड़ा कारण है. इससे 2008 में 18 लाख लोगों की मौत हुई.
रिपोर्टः एजेंसियां/निर्मल
संपादनः ए कुमार