दिल्ली में संभल कर लें सांस
६ फ़रवरी २०१४अगर दिल्ली की सड़कों पर जाम लग जाए, तब तो सोने पर सुहागा. वायु प्रदूषण इतना ज्यादा हो सकता है कि धीमी ट्रैफिक में खांसते खांसते बुरा हाल हो जाए. वायु में धूल इतनी ज्यादा है कि सूर्य की किरणें धरती पर पहुंचने से पहले धूलकणों से टकरा कर लौट जाती हैं. वायु प्रदूषण पर नजर रखने वाले सेंसरों ने पिछले कुछ दिनों में कई बार प्रदूषण स्तर चिंताजनक बताया है.
हालांकि यह बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती कि किस शहर में सबसे ज्यादा प्रदूषण है लेकिन इतना तो कहा जा सकता है कि चीन की राजधानी बीजिंग प्रदूषण स्तर को सुधारने का काम कर रहा है, जबकि दिल्ली ने हाल के दिनों में ऐसा कुछ नहीं किया. शायद इसकी एक वजह यह भी है कि लोगों में इस बात को लेकर चिंता और जागरूकता बहुत कम है.
कई तरह की बीमारी
आंकड़ों का तो पता नहीं, लेकिन डॉक्टरों की राय है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण की वजह से लगातार लोग बीमार पड़ रहे हैं. इसकी वजह से फेफड़े खराब हो रहे हैं, जबकि तनाव, अवसाद और दूसरी बीमारियों का तो कहना ही क्या. भारत में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के प्रमुख श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, "अजीब बात है कि दिल्ली में रहने वाले नेता और जजों को अपने परिवारों और बच्चों की चिंता नहीं है, जो इतने खराब वायु प्रदूषण के हालात में रह रहे हैं."
दो महीने पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक नई समिति बनाई है, जिसमें रेड्डी भी शामिल हैं. इसका काम लोगों को खराब वायु स्तर से बचाव के रास्ते बताना है. रिपोर्ट आने में एक साल लग जाएगा.
दिल्ली और बीजिंग एशिया के दो महानगर हैं, जो अपने अपने देशों के विकास के इंजन रहे हैं. उन्होंने करोड़ों लोगों को रोजगार दिया है लेकिन बेतहाशा प्रदूषण भी फैलाया है. दशकों तक सरकारों ने प्रदूषण की बजाय विकास को ध्यान में रख कर नीतियां बनाईं, जिसका यह नतीजा हो रहा है. कारों की संख्या लगातार बढ़ रही है और धुएं छोड़ने वाले कारखानों की भी.
कितना है प्रदूषण
प्रदूषण मापने के कई तरीके हो सकते हैं, जिनमें फेफड़ों में कार्बन जमा होने का तरीका सबसे बेहतर समझा जाता है. दिल्ली में यह तयसीमा के चारगुना चला जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2011 में हवा में मौजूद कणों की सीमा 20 रखी थी. इन कणों की चौड़ाई 10 माइक्रोमीटर है और इसलिए इन्हें पार्टिकुलेट मैटर या पीएम 10 कहा जाता है. दिल्ली में पीएम 10 का स्तर 280 है हालांकि कानूनी तौर पर यह 100 होना चाहिए.
जागरूकता के पैमाने पर चीनी शहर निश्चित तौर पर आगे है. वह लोगों को प्रदूषण, धुंध और कोहरे के अनुमान वाले दिनों में पहले सचेत कर देता है. ऐसे दिनों में स्कूल बंद हो सकते हैं या उद्योगों पर रोक लग सकती है. सरकारी वाहनों को सड़कों पर से हटा दिया जाता है. नई दिल्ली में इस तरह के इंतजाम नहीं हैं. हाल ही में धुंध के बारे में जानकारी देने का सिलसिला शुरू हुआ है लेकिन लगातार बिजली की कमी की वजह से सही वक्त पर आंकड़ा आना भी संभव नहीं है.
दिल्ली में सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट सीएसई की अनुमिता रायचौधरी कहती हैं, "सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लोगों को प्रदूषण के खतरों के बारे में आगाह करे. लोगों को पता होना चाहिए कि वे कैसी सांस ले रहे हैं. तभी तो वे इसे बेहतर करने की मांग कर सकते हैं." चीन की राजधानी ने इसके अलावा कारों की संख्या नियंत्रित करने पर भी जोर दिया है.
तुलना हो न हो
एक दशक पहले दिल्ली ने भी कुछ कदम उठाए थे, जिनमें उद्योगों को शहर से बाहर ले जाने और सबवे बनाने जैसे उपाय थे. लेकिन जैसे ही बात बीजिंग और दिल्ली के तुलना की होती है, भारतीय अधिकारी कन्नी काटने लगते हैं. वायु प्रदूषण समिति के प्रमुख एमपी जॉर्ज का कहना है, "वैज्ञानिक तौर पर दोनों की तुलना गलत होगी. दोनों शहरों के मौसम और पर्यावरण के मापदंड अलग हैं."
तर्क के आधार पर यह तय करने में शायद सैकड़ों साल लग जाएं कि कौन सा शहर ज्यादा प्रदूषित है लेकिन तथ्य के आधार पर इतना तो कहा ही जा सकता है कि इसका खामियाजा शहर में रहने वाले भुगत रहे हैं. हर साल दुनिया भर में 32 लाख लोग वायु प्रदूषण की वजह से जान गंवा रहे हैं.
एजेए/एमजी (एपी)