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कानून और न्याय

एमनेस्टी: दिल्ली दंगों में पुलिस थी 'भागीदार'

चारु कार्तिकेय
२८ अगस्त २०२०

एमनेस्टी ने कहा है कि दिल्ली दंगों में पुलिसकर्मी हिंसा में सक्रिय रूप से भागीदार थे लेकिन इसके बावजूद पुलिस के द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में पिछले छह महीनों में एक भी जांच नहीं बिठाई गई है.

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Indien Neu Delhi | Unruhen durch Proteste für und gegen neues Gesetz zur Staatsbürgerschaft
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हुए दंगों में पुलिस की भूमिका को लेकर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी ने दंगों पर अपनी एक नई रिपोर्ट में कहा है कि दिल्ली पुलिस के कर्मी हिंसा में सक्रिय रूप से भागीदार थे लेकिन इसके बावजूद पुलिस के द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में पिछले छह महीनों में एक भी जांच नहीं बैठाई गई है.

दंगे 23 से 29 फरवरी तक चले थे और इनमें कम से कम 50 लोग मारे गए थे. इसके अलावा हजारों लोग बेघर भी हो गए थे. एमनेस्टी ने इस रिपोर्ट के लिए दंगाग्रस्त इलाकों की पड़ताल की और 50 लोगों से बात की, जिनमें दंगों में अपनी जान बचा लेने वाले, चश्मदीद गवाह, वकील, डॉक्टर, मानवाधिकार कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त पुलिस अफसर शामिल थे. इसके अलावा संस्था ने कई वीडियो भी देखे और उनकी समीक्षा की.

रिपोर्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों ने कई जगहों पर अपने सामने हो रही हिंसा को रोकने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया, जब हस्तक्षेप किया भी तो नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन वाले लोगों पर हमला करने के लिए या उन्हें गिरफ्तार करने के लिए. कई मामलों में पुलिस ने पीड़ितों की शिकायतें दर्ज करने से भी इनकार कर दिया.

हिरासत में यातनाएं

रिपोर्ट ने पुलिस द्वारा दंगों में बच जाने वालों और हिरासत में लिए जाने वालों को यातनाएं देने को भी रेखांकित किया है. 26 फरवरी के एक वीडियो में पुलिस को सड़क पर चलते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता खालिद सैफी को हिरासत में लेते हुए देखा जा सकता है. खालिद के परिवार का कहना है कि उन्हें हिरासत में यातनाएं दी गईं, अस्पताल ले जाया गया और उसी रात कड़कड़डूमा अदालत परिसर की पार्किंग में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जेल में डाल दिया गया.

11 मार्च को जब खालिद को फिर अदालत में पेश किया गया, तब वो व्हीलचेयर पर थे. बाद में उन पर आतंकवादियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला कानून यूएपीए लगा दिया गया. खालिद आज भी जेल में हैं. उनकी पत्नी का कहना है कि उन्हें हिरासत में बहुत ही क्रूरता से यातनाएं दी गईं. एमनेस्टी की रिपोर्ट इस तरह की गवाहियों से भरी हुई है. 

रिपोर्ट में पुलिस द्वारा वकीलों और पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार और उनपर हमले के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. इसके अलावा यह भी दावा किया गया है कि दंगों में अपनी जान बचा लेने वालों में से कइयों को पुलिस ने डराया, गैर-कानूनी तौर पर हिरासत में रखा और कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए भी मजबूर किया. इनमें से कई लोगों के वकीलों ने एमनेस्टी को बताया कि पुलिस ने कई गिरफ्तारियां बिना वारंट के कीं और लोगों को कानूनी मदद से जबरदस्ती दूर रखा.

Indien Neu Delhi | Unruhen durch Proteste für und gegen neues Gesetz zur Staatsbürgerschaft
दंगे 23 से 29 फरवरी तक चले थे और इनमें कम से कम 50 लोग मारे गए थे. इसके अलावा हजारों लोग बेघर भी हो गए थे.तस्वीर: Reuters/P. De Chowdhuri

सुधारों की मांग

रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में एमनेस्टी ने अनुशंसा की है कि पुलिस के खिलाफ इन आरोपों की "तुरंत, विस्तृत, स्वतंत्र और निष्पक्ष" जांच होनी चाहिए. संस्था ने यह भी मांग की है कि पीड़ितों द्वारा पहचाने गए पुलिसकर्मियों को जांच के नतीजे आने तक निलंबित कर देना चाहिए और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिसकर्मियों को नफरत संबंधी जुर्म, सामुदायिक हिंसा, पीड़ितों की जरूरतें और भेदभाव से लोगों को बचाने में पुलिस की भूमिका के बारे में प्रशिक्षण देना चाहिए.

संस्था की अन्य मांगों में शामिल हैं- केंद्र सरकार यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टॉर्चर को तुरंत मंजूर करें, संसद पुलिस को जांच करने, हिरासत में लेने और गिरफ्तार करने की शक्तियां देने वाले सभी कानूनों को और सख्त करे और राज्यों और शहरों के पुलिस मुख्यालयों में मानवाधिकार सेल स्थापित करने की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सिफारिश को लागू किया जाए.

दिल्ली पुलिस ने अभी तक एमनेस्टी की रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों पर टिप्पणी नहीं की है. इसी तरह के आरोप इससे पहले दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की भी एक जांच-रिपोर्ट ने लगाए थे. तब दिल्ली पुलिस के जन संपर्क अधिकारी अनिल मित्तल ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा था कि दिल्ली दंगों के सभी मामलों की जांच न्यायपूर्वक और पेशेवर ढंग से हुई है.

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