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कानून का राज्य

दिल्ली दंगे: रिपोर्ट में पुलिस की भूमिका पर सवाल

चारु कार्तिकेय
१७ जुलाई २०२०

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की एक समिति ने कहा है कि दिल्ली दंगों के दौरान पुलिस ने कई मौकों पर कोई कार्रवाई नहीं की तो कहीं दंगाइयों की मदद की और कहीं कहीं पर तो सीधे तौर पर लोगों को मारा-पीटा और उनके साथ दुर्व्यवहार किया.

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Indien Neu Delhi | Unruhen durch Proteste für und gegen neues Gesetz zur Staatsbürgerschaft
तस्वीर: Reuters/P. De Chowdhuri

फरवरी में दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी इलाकों में हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस ने कई मौकों पर कोई कार्रवाई नहीं की तो कहीं सक्रिय रूप से दंगाइयों की मदद की और कहीं-कहीं पर तो सीधे तौर पर लोगों को मारा-पीटा और उनके साथ दुर्व्यवहार किया. यह कहना है दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग का जिसकी इस हिंसा की जांच करने के लिए बैठाई गई फैक्ट-फाइंडिंग समिति ने अपनी रिपोर्ट दिल्ली सरकार को सौंप दी है.

समिति का गठन नौ मार्च 2020 को किया गया था और सुप्रीम कोर्ट के ऐडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एम आर शम्शाद को इसका अध्यक्ष बनाया गया था. तालाबंदी की वजह से समिति के काम पर काफी असर पड़ा और समिति जून में जांच फिर से शुरू कर पाई. हिंसा-प्रभावित इलाकों में सर्वे और पीड़ितों से बातचीत के आधार पर बनाई 130 पन्नों की अपनी रिपोर्ट को समिति ने आयोग को 27 जून को प्रस्तुत किया और आयोग ने इसे 16 जुलाई को दिल्ली सरकार को सौंप दिया.

हिंसा में करीब 55 लोग मारे गए थे. रिपोर्ट में इन सभी के नाम, उम्र और वो किन हालात में मारे गए, इन सभी बातों का जिक्र है. समिति जिन निष्कर्षों पर पहुंची है उनमें से प्रमुख हैं दिसंबर 2019 से ही हिंसा के लिए लोगों को उकसाया जाना, हिंसा का योजनाबद्ध, संगठित और टार्गेटेड होना, धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाना और पुलिस की भूमिका पर संदेह होना.

Indien Wahlen in Delhi
रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 में हुए दिल्ली विधान सभा के चुनावों तक बीजेपी के नेताओं द्वारा कई भाषणों में लोगों को हिंसा के लिए उकसाया गया.तस्वीर: DW/A. Ansari

उकसाने वाले भाषण

समिति का कहना है कि दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 में हुए दिल्ली विधान सभा के चुनावों तक बीजेपी के नेताओं द्वारा कई भाषणों में लोगों को नए नागरिकता कानून का विरोध करने वालों के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाया गया. इस सिलसिले में समिति ने बीजेपी नेता कपिल मिश्रा का नाम मुख्य रूप से लिया है और कहा है कि मौजपुर इलाके में 23 फरवरी को उनके भाषण के तुरंत बाद हिंसा शुरू हो गई थी. समिति के अनुसार मिश्रा ने डिप्टी कमिश्नर वेद प्रकाश सूर्य की उपस्थिति में जाफराबाद में विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों को बल-पूर्वक हटाने की मांग की थी और धमकियां भी दी थीं.

मिश्रा के इस भाषण के वीडियो को खुद उन्होंने ट्वीट भी किया था. समिति इस निष्कर्ष पर भी पहुंची है कि हिंसा में इस हद तक मुस्लिमों को निशाना बनाया गया था कि जहां मकान हिंदुओं के थे और किराए पर मुस्लिमों को दिए गए थे, वहां दंगाइयों ने मकानों को छोड़ दिया और सामान को बाहर निकाल कर नष्ट कर दिया. रिपोर्ट में 11 ऐसी मस्जिदों, पांच मदरसों, एक मजार और एक कब्रिस्तान का जिक्र है जिन पर हमला कर उन्हें नुकसान पहुंचाया गया.

पुलिस की संदिग्ध भूमिका

रिपोर्ट के अनुसार पुलिस की भूमिका को लेकर कई हिंसा पीड़ितों ने बताया कि कई जगह अपने सामने हिंसा को होता देखने के बावजूद पुलिस ने कुछ नहीं किया. कई मामलों में आपात फोन नंबर पर फोन आने के बावजूद पुलिस मौके पर नहीं गई. मौके पर हिंसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई ना करने के अलावा हिंसा के बाद एफआईआर दर्ज करने में पुलिस ने या तो देर की या उस पर कोई कार्रवाई नहीं की.

Indien Neu Delhi | Unruhen durch Proteste für und gegen neues Gesetz zur Staatsbürgerschaft
रिपोर्ट के अनुसार हिंसक भीड़ और पुलिस ने मुस्लिम महिलाओं पर उनके धर्म के आधार पर हमला किया, उनके हिजाब और बुर्के खींच कर उतार दिए और उन्हें मारा.तस्वीर: Reuters/A. Abidi

कई मामलों में पुलिस ने हिंसा को बढ़ावा दिया. समिति के सामने आए गवाहों के अनुसार कुछ मामलों में हिंसा खत्म हो जाने के बाद पुलिस को हिंसा करने वालों को सुरक्षित वहां से निकालते हुए भी देखा गया. कई मामलों में पुलिस ने पीड़ितों को ही गिरफ्तार कर लिया है. रिपोर्ट में लिखा है कि कई मामलों में जांच ठीक से किए बिना ही पुलिस ने चार्जशीट दायर कर दी.

महिलाओं के खिलाफ हिंसा

कई गवाहों ने समिति को बताया कि हिंसक भीड़ और पुलिस ने मुस्लिम महिलाओं पर उनके धर्म के आधार पर हमला किया, उनके हिजाब और बुर्के खींच कर उतार दिए और उन्हें मारा. कई जगहों पर भीड़ ने मुस्लिम महिलाओं पर तेजाब फेंका और उन्हें यौन हिंसा की धमकी दी. पुलिस ने "आजादी" के नारों का ताना देते हुए महिलाओं का यौन शोषण किया. एक मामले में तो एक पुलिसकर्मी द्वारा महिला प्रदर्शनकारियों के सामने अपने गुप्तांग दिखाने की भी शिकायत है.

मुआवजे में कोताही

हिंसा में मारे जाने वालों के परिजनों को दिए गए मुआवजे को लेकर समिति ने कहा है कि आम लोगों और सरकारी अधिकारियों की मृत्यु में फर्क किया जा रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आम लोगों के मुकाबले सरकारी अधिकारियों के मारे जाने पर मुआवजे में काफी बड़ी रकम दी गई है. लूट, आगजनी, संपत्ति को नुकसान आदि मामलों में तो अभी तक मुआवजा या तो दिया ही नहीं गया है या बहुत छोटी रकम दी गई है. कई मामलों में हिंसा के चार महीने बाद भी प्रमाणन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है.

Indien Neu Delhi | Unruhen durch Proteste für und gegen neues Gesetz zur Staatsbürgerschaft
रिपोर्ट में कहा गया है कि लूट, आगजनी, संपत्ति को नुकसान आदि मामलों में तो अभी तक मुआवजा या तो दिया ही नहीं गया है या बहुत छोटी रकम दी गई है.तस्वीर: Reuters/P. De Chowdhuri

इन निष्कर्षों के आधार पर समिति ने अनुशंसा की है जांच में हुई त्रुटियों के सुधार, मुआवजे, पीड़ितों की कानूनी मदद, निष्पक्ष सरकारी वकीलों की नियुक्ति जैसे उद्देश्यों के लिए सरकार को एक पांच-सदस्यीय स्वतंत्र समिति का गठन करना चाहिए.

दिल्ली पुलिस ने कहा है कि उसके पास रिपोर्ट अभी पहुंची नहीं है और वो रिपोर्ट देख कर उस पर अपनी प्रतिक्रिया देगी. दिल्ली पुलिस के जान संपर्क अधिकारी अनिल मित्तल ने मीडिया को दिए एक बयान में कहा कि सभी मामलों की जांच न्यायपूर्वक और पेशेवर ढंग से हुई है. दिल्ली में बीजेपी के प्रवक्ता ने मीडिया से कहा कि ये एक राजनीतिक रिपोर्ट है और जब पुलिस खुद कह चुकी है कि दंगों में बीजेपी के नेताओं की कोई भूमिका नहीं है, ऐसे में अल्पसंख्यक आयोग को कानून का आदर करना चाहिए.

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