दस फीसदी पाकिस्तानी मनोरोगी
५ मई २०१४पाकिस्तान में करीब 300 मनोचिकित्सक हैं, यानि करीब 80,000 लोगों पर एक मनोचिकित्सक. अहमद के डॉक्टर मियां इफ्तिखार हुसैन बताते हैं, "जब वह उठते हैं तो रोने लगते हैं. फिर उन्हें एहसास होता है कि उनके बेटे तो मर चुके हैं और वह एक बार फिर इसी बारे में बुरा ख्बाव देख रहे थे."
पाकिस्तान में बारा खैबर एजेंसी के आसपास के आतंकवाद से प्रभावित कबायली इलाके संघीय प्रशासन (एफएटीए) के अधीन हैं. 51 वर्षीय अहमद इनमें से एक कबायली इलाके में स्कूल में काम करते थे. एक साल पहले इलाके में हिंसा के दौरान उनके बेटे मारे गए. आज भी उनकी तकलीफ में कोई कमी नहीं आई है.
हेल्थ प्रमोशन वेल्फेयर सोसाइटी (एचपीडब्ल्यूएस) के उपनिदेशक हुसैन कहते हैं, "वह पिछले साल दिसंबर में यहां लाए गए थे. उनके ठीक होने की संभावना बहुत कम है. अगर वह पहले आए होते तो बेहतर होता." हुसैन पेशावर के बाहरी इलाके में बनाए गए एचपीडब्ल्यूएस में मानसिक रोगियों की मदद करते हैं, उनके यहां 40 मरीजों के लिए बिस्तर हैं.
सैन्य कार्रवाई के कारण खैबर पख्तूनख्वाह के पड़ोसी कबायली इलाके से अब तक करीब दो लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. अपनों को खोना, विस्थापन और जिंदगी के तंग हालात में मानसिक रोग यहां आम हो रहे हैं. लेकिन चिकित्सा के अभाव में इनमें से ज्यादातर मामलों के बारे में पता भी नहीं चल पाता है. हुसैन बताते हैं, "मरीज अक्सर अपने रिश्तेदारों की बुलेट या रॉकेट से भुनी हुई लाशें सपनों में देखते हैं." उन्होंने बताया कि मरीज के ठीक हो जाने के बाद वे उन्हें कुछ कामकाज से जुड़ा प्रशिक्षण भी देते हैं.
महिलाएं बच्चे ज्यादा प्रभावित
कबायली इलाके बाजोड़ के किसान जियारत गुल की पत्नी भी मनोरोग से जूझ रही हैं. गुल ने बताया, "उसका बेटा घर के बाहर खेलता हुआ मारा गया था. जब उसने उसकी खून से सनी हुई लाश देखी तो सदमे में आ गई." इलाज के कारण उनकी तबीयत अब पहले से बेहतर हैं.
इलाके में जारी हिंसा और सैन्य कार्रवाई ने यहां के परिवारों को बुरी तरह प्रभावित किया है. गुल कहते हैं, "हमारे बच्चे हिंसा के बीच बड़े हुए हैं. वे सेना, तालिबान बम धमाकों और ड्रोन हमलों की बात करते हैं." यहां से विस्थापित ज्यादातर लोग खैबर पख्तूनख्वाह में रह रहे हैं.
कबायली इलाके मोहमंद के डॉक्टर मुर्तजा अली ने बताया, "प्रभावित इलाकों में महिलाओं और पुरुषों के बीच अनुपात 2:1 है. हादसों के बाद के सदमे से ग्रसित महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है. पुरुष तो दिल बहलाने घर से बाहर निकल भी जाते हैं लेकिन महिलाएं अक्सर सामाजिक दबाव के चलते घर से बाहर भी नहीं निकल पाती है जिससे और भी बुरा असर पड़ता है." इन परिवारों की बड़ी समस्या गरीबी भी है.
खैबर टीचिंग हॉस्पिटल में मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर सैयद मुहम्मद सुलतान मानते हैं कि मरीजों को इलाज के अलावा काउंसलिंग की सख्त जरूरत है.
एसएफ/एएम (आईपीएस)