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महामारी: तीसरी लहर से पहले बच्चों की फिक्र

हृदयेश जोशी
१४ मई २०२१

भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बढ़े मामलों के बीच मां-बाप को फिक्र है कि क्या तीसरी लहर में बच्चों की जान को अधिक खतरा होगा लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक इस डर का वैज्ञानिक आधार नहीं है.

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तस्वीर: Laci Perenyi/imago images

जयपुर में 35 साल की अनीता और उनके पति अभिषेक कोरोना से उबर रहे हैं. लेकिन दो हफ्ते की बीमारी के बाद पति-पत्नी को नया डर सता रहा है और वह है भारत में कोरोना की तीसरी लहर का संकट जो अधिक व्यापक हो सकता है. ऐसे में अपने बच्चों के लिये माता-पिता की फिक्र बढ़ गई है. अनीता के मुताबिक, "हम फिलहाल ठीक हो रहे हैं लेकिन कहा जा रहा है कि कोरोना की अगली लहर बच्चों को अधिक प्रभावित करेगी. मेरे दोनों बच्चे पहले ही प्रदूषण के कारण सांस की तकलीफ झेलते हैं. हमें डर है कि उनका क्या होगा?”

भारत में कोरोना का यह नया डर विशेष रूप से प्रदूषित महानगरों में अस्वस्थ बच्चों के मां-बाप के लिए सिरदर्द है. वैसे गांवों में पिछले एक दशक में प्रदूषण बढ़ा है और उसका असर फेफड़े से जुड़े रोगों के रूप में दिख रहा है. हालांकि कई विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना की अगली  लहर का स्वभाव और मारक क्षमता के बारे में मौजूदा अनुमान और डर अधपकी जानकारियों का नतीजा हैं, उनमें कोई ठोस तथ्य नहीं हैं.  

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बच्चों के लिए टीके की तैयारी

भारत में टीकाकरण कार्यक्रम आलोचना के घेरे में है क्योंकि पर्याप्त टीके उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन इस बीच ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने भारतीय कंपनी बायोटेक कंपनी को 2 से 18 साल के बच्चों पर कोवैक्सीन के ट्रायल की अनुमति दे दी है. बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ यह टीका विकसित किया जो 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को दिया जा रहा है. अब हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक 2 से 18 साल के कुल 525 वॉलंटियर्स पर चार हफ्ते के भीतर इसी टीके की दो खुराकों का ट्रायल होगा.

बच्चों का इम्यून रिस्पोंस वयस्कों के मुकाबले काफी अलग होता है और इसलिए जब वयस्कों पर एक टीका सुरक्षित साबित हो जाता है तो बच्चों के लिए उसकी मात्रा और खुराक तय करने के लिए यह ट्रायल जरूरी हैं. अभी यह स्पष्ट नहीं है भारत में ट्रायल के बाद कब वैक्सीन बच्चों को लगना शुरू होंगे लेकिन माना जा रहा है कि इसके बाद अन्य कंपनियां भी भारत में बच्चों पर वैक्सीन ट्रायल शुरू करेंगे.

वैसे दुनिया के कई देशों में बच्चों को कोरोना वैक्सीन देने की शुरुआत हो रही है. कनाडा ने 12 से 15 साल के बच्चों के लिये वैक्सीन को अनुमति दे दी है. ऐसा करने वाला वह पहला देश बना है. अमेरिका ने भी 12 साल से अधिक के बच्चों के लिये वैक्सीन को हरी झंडी दे दी है. फाइजर और बायोनटेक जैसी कंपनियों ने यूरोप में बच्चों पर टीके के ट्रायल की अनुमति मांगी है. 

सुस्त टीकाकरण से फिक्र

इस बीच भारत में सुस्त टीकाकरण चिंता का विषय बना हुआ है. भारत में अभी सीरम इंस्टिट्यूट द्वारा बनी कोविशील्ड और भारत बायोटैक की कोवैक्सीन दी जा रही है. दोनों ही टीकों की दो खुराक दी जाती हैं. अब तक देश में टीके के केवल 17.8 करोड़ डोज दिए गए हैं जिनमें 4 करोड़ से कम लोगों को ही दो डोज दी जा सकी हैं. ऐसे में वायरस को फैलने से रोकना चुनौती बना हुआ है. गुरुवार को कोविड -19 टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. वीके पॉल ने दिल्ली में कहा कि साल के अंत तक भारत में कोरोना की 200 करोड़ से अधिक डोज उपलब्ध होंगी.

केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यों से ये भी कहा कि कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच समय सीमा 12 से 16 हफ्ते रखी जाए. स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि यह फैसला कोरोना पर बने सात सदस्यीय वर्किंग ग्रुप की सिफारिश पर हुआ है. महत्वपूर्ण है कि देश में दी गई कुल खुराकों में 90% कोविशील्ड ही है. सरकार ने कुछ हफ्ते पहले ही कोविशील्ड की दो खुराकों के बीच 6-8 हफ्ते का अंतर सुझाया था लेकिन अब वह यूके के एक "रियल लाइफ एविडेंस” के आधार पर यह नया सुझाव लाई है.

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क्या वाकई बच्चों पर पड़ेगी मार?

भारत में कोरोना की दूसरी लहर के बीच बच्चों को हो रहे संक्रमण से चिंता बढ़ी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल 1 मार्च से 4 अप्रैल के बीच करीब 80 हजार बच्चों को कोरोना पाया गया. चूंकि कम टेस्टिंग के कारण कोरोना के असल मामले आधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक हैं, तो यह माना जा रहा है कि बच्चों में कोविड का ग्राफ अब कहीं अधिक खतरनाक होगा.

लेकिन जिस तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है वह क्या बच्चों को अधिक प्रभावित करेगी? जानकार कहते हैं कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. जन स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ और कोरोना महामारी पर काम कर रहे डॉ. चन्द्रकांत लहारिया ने डीडब्ल्यू को बताया, "तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की जो बात कही जा रही है उसका कोई वैज्ञानिक आधार हमारे पास नहीं है, लेकिन यह हो सकता है कि कुल संक्रमणों के अनुपात में बच्चों की हिस्सेदारी अधिक हो.”

लहारिया के मुताबिक, "वर्तमान टीकाकरण की वजह से यह जरूर संभव है कि अगली वेव में बड़ी आयुवर्ग के लोग अधिक सुरक्षित रहें और वायरस का संक्रमण कम आयुवर्ग में दिखे पर वह संख्या के मुकाबले आनुपातिक रुप में ही अधिक दिखाई देगा.”

जन स्वास्थ्य पर जोर जरूरी

पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कोरोना की दूसरी लहर ने जन स्वास्थ्य की कमियों को उजागर किया है और उससे सीख लेकर शीघ्र कदम उठाना जरूरी है. बीमारी तेजी से गांवों की ओर फैल चुकी है जहां अस्पतालों, डॉक्टरों और नर्सों की कमी है. आज देश के साढ़े पांच सौ से अधिक जिलों में बीमारी की पॉजीटिविटी दर 10 प्रतिशत से अधिक है जो चिंता का विषय है. लहारिया कहते हैं कि वर्तमान संकट में संसाधनों के मितव्ययी इस्तेमाल से मूलभूत ढांचे को दुरस्त करना होगा.

उनके मुताबिक देश में ऑक्सीजन बेड की कमी के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी सेंटर) का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए. वह कहते हैं, "पूरे देश में आज 30,000 प्राथमिक पीएचसी सेंटर हैं और हर केंद्र में 6 बेड होते हैं. अगर सरकार इन्हें दुरस्त कर ले तो देश में 1.8 लाख ऑक्सीजन बेड उपलब्ध होंगे और इसमें अधिक खर्च नहीं होगा. लेकिन ऐसे कदम उठाने के लिए कमान पूरी तरह से पेशेवर और संकल्पवान स्वास्थ्य विशेषज्ञों को देनी होगी तभी नतीजे हासिल हो पाएंगे. देर करने से बेहतर है तुरंत कदम उठाये जाएं.”

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