लीला देवी दुनिया को सिखा रही हैं अंधेरे से लड़ना
१ मार्च २०१९राजस्थान का यह छोटा सा कस्बा सिर्फ केन्या ही नहीं दुनिया के उन सभी इलाकों में अपने लिए यश बटोर रहा है जहां बिजली नहीं है और जहां के गरीब लोगों पर इस कमी की मार ज्यादा पड़ती है. इंडोनेशिया के वेस्ट तिमोर की यूमिना तो कहती हैं, "मुझे भगवान यहां भेजना चाहते थे." तिलोनिया में इन महिलाओं को सोलर टेक्नीशियन बनने की ट्रेनिंग मिलती है.
इस ट्रेनिंग के लिए दुनिया के कोने कोने की गरीब और बेहद साधारण परिस्थितियों में गुजर बसर कर रही महिलाएं यहां आती हैं. इन्हें ट्रेनिंग देने वाले लोग भी इनके ही जैसे हैं. इनमें से एक हैं लीला देवी जो 2003 से प्रशिक्षण दे रही हैं और अब तक 90 से ज्यादा देशों के लोगों को सोलर लैंप बनाने से लेकर उसके रखरखाव और मरम्मत की तकनीक सिखा चुकी हैं.
लीला देवी खुद ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं लेकिन कपड़ों की सिलाई कढ़ाई और इसी तरह के दूसरे काम सीखते सीखते एक दिन सोलर लैंप बनाना सीख गईं और अब दुनिया को सिखा रही हैं. लीला देवी कहती हैं, "ग्रिड से मिलने वाली बिजली कभी भी कट सकती है जबकि सौर बिजली भरोसेमंद है. सूर्य देवता सबके लिए चमकते हैं और अमीर या गरीब की परवाह नहीं करते. अगर आप बिजली का बिल नहीं देंगे तो बिजली कट जाएगी लेकिन सोलर लैम्प एक बार खरीदने के बाद आप निश्चिंत हो सकते हैं."
गरीब इलाकों से आने वाले लोगों के लिए वाकई सौर ऊर्जा एक चमत्कार ही है. नाओमी एनडुंग के गांव में लोग उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. उनके गांव में बिजली नहीं है और सूरज ढलने के बाद कोई काम नहीं हो सकता. महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई जैसे काम तो दूर की बात हैं कपड़ा काटना भी जोखिमभरा हो सकता है. एनडुंग कहती हैं, "मैं अपने समुदाय को रोशन करूंगी. हम सब जानते हैं कि अंधेरा अच्छी चीज नहीं. ऐसे में अपने गांव तक रोशनी लाना मेरे लिए बड़ी सफलता है."
इन महिलाओं को तिलोनिया के बेयरफुट कॉलेज में बढ़िया ट्रेनिंग मिलती हैं. बार बार अभ्यास के जरिए उन्हें अच्छी तरह सिखाया जाता है. यह कवायद तब तक चलती है जब तक कि वो पूरी तरह पारंगत ना हो जाएं. ट्रेनिंग मिलने के बाद इन महिलाओं को सोलर ममा कहा जाता है. वेस्ट तिमोर की यूमिना बताती हैं, "बगैर रोशनी के बच्चे पढ़ाई नहीं कर सकते. अंधेरा घिरता है तो वो सो जाते हैं. जब मैं वहां वापस जाउंगी तो वहां सोलर लैंप होगा."
इस तरह का कार्यक्रम अफ्रीका में भी है. यूगांडा में सोलर ममा की जगह सोलर सिस्टर हैं. वे सोलर लाइट बेचती हैं और महिलाओं को बताती हैं कि सौर ऊर्जा से कैसे पैसे कमाये जाएं. वे गांवों में घूमती हैं और इन उपकरणों को बेच कर अपनी जीविका चलाती हैं. करीब 3,500 सोलर सिस्टरों ने लगभग ढाई लाख सोलर लैम्प बेचे हैं और इस तरह से करीब 15 लाख लोगों तक रोशनी पहुंचाई है.
ये महिलाएं यहां सीखने के बाद अपने देश जाकर अलग अलग तरीकों से इस ज्ञान का उपयोग करती हैं. ना सिर्फ अपना घर बल्कि गांव और इलाके तक रोशनी पहुंचाने के लिए इससे उन्हें कमाई का भी एक जरिया मिलता है. मेक्सिको से भारत आईं इसाबेल मोरा जिमेनेज कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि मैं कितना कमा सकूंगी. बड़ी बात यह है कि मैंने बहुत कुछ सीखा है. गांव के लोग देखेंगे कि मैं अच्छा काम कर सकती हूं. यहां आकर कुछ नया सीखने के लिए मैंने बड़ी कुर्बानी दी है."
बेयरफुट कॉलेज को इस कोर्स के लिए पैसा भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र से मिलता है. कोर्स के दौरान महिलाएं दूसरी गतिविधियों में भी हिस्सा लेती हैं पर मकसद सबका एक ही है, अंधेरे के खिलाफ जंग में जीत हासिल करना और हर दिन जब वो प्रशिक्षण पूरा कर अपने हॉस्टल वापस जाती हैं तो उनके होठों पर एक ही नारा होता है, "हम होंगे कामयाब."