1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

जूट के धागों से महिलाएं सिल रहीं हैं अपनी गरीबी

२९ अगस्त २०१९

लोहरदगा जिले के ग्रामीण इलाकों में जहां कभी नक्सलियों के बूटों की आवाज सुनाई देती थी वहां अब महिलाओं की कारीगरी दिखाई दे रही है.

https://p.dw.com/p/3OgDB
Indien Lohardaga | Frauen flechten Produkte aus Jute
तस्वीर: IANS

झारखंड में नक्सल प्रभावित क्षेत्र लोहरदगा की महिलाएं जूट के धागों को कमाई का जरिया बनाकर अपनी गरीबी सिल रही हैं. ये महिलाएं जूट के धागे से सजावट का सामान बनाकर अपनी जिंदगी का तानाबाना बुन रही हैं और लोगों को इनके उत्पाद पसंद भी आ रहे हैं. शहरी लोगों को जूट से बने इको फ्रेंडली सामान खूब भा रहे हैं, जो इनके रोजगार का जरिया बन गया है. जूट के बुने आकर्षक हैंडबैग शहरों की महिलाओं और छात्राओं की पसंद बनते जा रहे हैं.

जूट के बने हैंडबैग दिखाते हुए इस्लामनगर की 34 वर्षीया तासीमा खातून ने कहा, "इस बैग को बनाने में दो दिन लग जाते हैं. मेला में इसे साइज के हिसाब से 150-300 रुपये में बेचते हैं. अब अपने ही हाथों पर कई बार यकीन नहीं होता कि इसे हमने ही बनाया है." लोहरदगा के इस्लामनगर की 130 महिलाएं  2018 से मिलजुलकर यह काम कर रहीं हैं.

इस्लामनगर गांव में एक बड़े कमरे में बैठ कर हर दिन महिलाएं यहां जूट से कई तरह का सामान बनाती हैं. इस सामान को वह आसपास के बाजार या सरस मेले में बेचती हैं. जो उनकी आमदनी का एक जरिया है. जूट ये बाजार से खरीदती हैं और उन धागों से सजावट के अलावा दूसरे उपयोगी सामान बनाती हैं. जूट उत्पाद के निर्माण के काम में जुटी महिलाओं को कच्चे माल और बाजार में बिक्री की भी चिंता करने की जरूरत नहीं होती. नाबार्ड की ओर से इन्हें वित्तीय सहायता और खरीदार उपलब्ध कराया जाता है. महिलाओं का काम बस जूट से बैग, थैला, लावर पट, मैट व दूसरे सजावटी सामान तैयार करना होता है. समय-समय पर लगने वाले मेलों में भी इन उत्पादों की खूब मांग रहती है. छोटानागपुर क्राफ्ट डेवलपमेंट सोसाइटी भी इन महिलाओं की मदद करती है.

Indien Lohardaga | Frauen flechten Produkte aus Jute
तस्वीर: IANS

इन हुनरमंद महिलाओं में अधिकांश अल्पसंख्यक समुदाय से आती हैं. इन्होंने अपनी एक कंपनी भी बना ली है, जिसका नाम 'लावापानी क्राफ्ट प्राइवेट लिमिटेड' दिया है. यह एक निबंधित कंपनी है. इस काम से जुड़ी रूखसाना खातून और अख्तरी खातून का कहना है कि उन्हें काम करने में कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि काफी आनंद आ रहा है. घर के आसपास रह कर ही कमाई हो जाती है. अख्तरी ने बताया, "शुरुआत में सामान बनाने में बहुत समय लगता था, इतनी सफाई से बनती भी नहीं थी लेकिन अब बनाते-बनाते हाथ साफ हो गया है." इस प्रोजेक्ट की पहल करने वाले अमर कुमार देवघरिया कहते हैं कि नाबार्ड तो बस सहयोग कर रहा है, असली काम तो महिलाएं कर रही हैं. उन्होंने कहा कि लोहरदगा में पिछले दिनों 'रूरल मार्ट' भी शुरू किया गया है, जहां महिलाएं अपने हस्तशिल्प के उत्पाद बेच रही हैं.

आईएएनएस

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी