बराबरी के वादे, नौकरी के लाले
४ जनवरी २०१४दुनिया भर में मैनेजमेंट में महिलाओं की कम संख्या चिंता का विषय बनी हुई है. उच्च पदों पर सबसे ज्यादा महिलाएं 20 फीसदी के साथ ब्रिटेन में हैं. अमेरिका में 17, भारत में 14 और जर्मनी में 13 फीसदी महिलाएं उच्च पदों पर नियुक्त हैं. लेकिन अगर जापान की बात की जाए तो यह संख्या केवल पांच प्रतिशत ही है. अक्सर देखा जाता है कि मां बनने के बाद महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं.
जापान में प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने महिलाओं के विकास के लिए बहुत सी नीतियां बनाई हैं. नए साल के मौके पर उन्होंने कहा कि वह चाहेंगे कि तमाम औरतें अपने काम पर वापस लौट सकें. 35 साल की तोमो तमाई भी ऐसा ही चाहती हैं. अपने बच्चे को जन्म दिए उन्हें दो साल हो चुके हैं. पहले सरकारी नौकरी में लगी तमाई को कई दिनों की कोशिश के बाद भी सिर्फ एक इंटर्नशिप ही हाथ लगी है.
तमाई के संघर्ष को देख कर यह सवाल उठता है कि क्या ये कदम कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ चल रहे भेदभाव को दूर करने के लिए काफी हैं. तमाई कहती हैं, "इनसे कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है." निनोह यूनिवर्सिटी से साहित्य में डॉक्टरेट कर चुकी तमाई कहती हैं, "मुझे तो नहीं समझ आता कि वे किस तरह हमारी मदद करने का सपना देख रहे हैं. हम जैसे लोग बच्चे पालने, नौकरी करने और घर के कामकाज के बीच संघर्ष कर रहे हैं."
महिलाओं के लिए योजनाएं
जापान में सरकार बच्चों की देखभाल के लिए कई कदम उठा रही है. सरकार कंपनियों को प्रेरित कर रही है कि वे मां बनने वाली महिला कर्मचारियों को तीन साल का मातृत्व अवकाश दें या फिर इतने ही समय तक नौकरी के लिए उनकी सुविधा के हिसाब से समय चुनने दें. सरकार सार्वजनिक कंपनियों से महिलाओं को आगे बढ़ाने की अपील कर रही है. लक्ष्य है 2020 तक मैनेजमेंट वाले उच्च पदों में करीब 30 प्रतिशत महिलाओं को लाना.
वैसे तो जापान के कुल कर्मचारियों में करीब 40 प्रतिशत हिस्सा महिलाओं का है लेकिन उन्हें काम मिलने, तरक्की और तनख्वाह के मामले में भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार महिलाओं को पुरूषों के मुकाबले औसतन 70 फीसदी ही मेहनताना मिलता है, जबकि वे एक बराबर काम करते हैं.
हर मोर्चे पर असंतुलन बरकरार
ऐसा नहीं है कि सिर्फ निजी क्षेत्र में ही महिलाओं की तादात कम है. जापान में संसद के सबसे महत्वपूर्ण निचले सदन में सिर्फ 11 प्रतिशत महिलाएं हैं और प्रशासनिक सेवा में भी प्रबंधन के स्तर पर सिर्फ 2.5 फीसदी औरतें ही हैं.
जापान कई पश्चिमी देशों से इस मायने में भी अलग है कि यहां लोग आमतौर पर एक ही नौकरी में बने रहते हैं. जल्दी जल्दी नौकरियां बदलने का चलन नहीं होने की वजह से वे महिलाएं अपनी नौकरियों में वापस नहीं लौट पातीं जिन्होंने बच्चे पैदा करने के लिए छुट्टी ली थी. वापस आने के बाद भी औरतों को अपने पहले वाली नौकरी से नीचे स्तर का काम करने के लिए राजी होना पड़ता है.
आंकड़े बताते हैं कि करीब 60 फीसदी महिलाएं अपने पहले बच्चे के जन्म के बाद नौकरी छोड़ देती हैं. जेनेवा के वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने वैश्विक जेंडर गैप रिपोर्ट में जापान को 105वें स्थान पर रखा है. इस रिपोर्ट में महिलाओं की देश में आर्थिक मामलों में बराबरी और राजनीतिक भागीदारी को देखते हुए क्रम में रखा गया. इस सूची में आइसलैंड पहले नंबर पर है, जर्मनी 14वें, जबकि अमेरिका 23वें स्थान पर है.
"वीमेनोमिक्स"
हालांकि एक चीज है जो महिलाओं के पक्ष में जा सकती है और वो है जनसंख्या वितरण. जापान में जनसंख्या वृद्धि दर इतनी कम है कि विश्व की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के पास काम करने के लिए लोग ही कम पड़ रहे हैं.
जापान में गोल्डमेन सैक्स की विश्लेषक कैथी मात्सुई बताती हैं कि किस तरह कामकाजी औरतें जापान में कुल जनबल को बढ़ा कर अर्थव्यवस्था को ऊपर उठा सकती हैं. मात्सुई ने "वीमेनोमिक्स" नाम का एक नया शब्द भी परिभाषित किया है. उनका मानना है कि देश के कुल कामकाजी समुदाय में अगर औरतों को भी शामिल किया जा सके तो 82 लाख लोगों को और जोड़ा जा सकेगा. इससे सकल घरेलू उत्पाद में भी करीब 15 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो सकती है.
जापान में महिलाओं को वोट देने का अधिकार भी 1945 में मिला, जबकि अमेरिकी महिलाएं उसके करीब दो दशक से भी पहले यह हक पा चुकी थीं. वेस्टर्न केंटकी यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर कुमिको नेमोतो बहुत सी जापानी कंपनियों में कामकाजी औरतों के प्रति रूझानों का अध्ययन कर रही हैं. उनका मानना है कि महिलाओं और पुरूषों के बीच समानता तभी लायी जा सकती है जब कंपनियों को ऐसा करने के लिए आर्थिक रूप से बढ़ावा दिया जाए और भेदभाव बरतने पर हर्जाना भी भरवाया जाए.
आरआर/आईबी (एपी)