जर्मनी में ही क्यों पढ़ें
१९ अप्रैल २०११सर्वे की रैकिंग में उच्च शिक्षा का सिस्टम, डिग्री की मान्यता, विदेशी छात्रों को मदद और अपने छात्रों को शोध के लिए विदेश भेजने को आधार बनाया गया. सर्वे में शिक्षा का गढ़ माने जाने वाले 12 देशों को लिया गया. हांगकांग में ग्लोबल एड्यूकेशन कांफ्रेस में सर्वे के नतीजे बताए गए. सर्वे के मुताबिक बीते कुछ सालों में जर्मनी विदेशी छात्रों की पहली पसंद बन गया है. अंग्रेजी में पढ़ाई के चलते जर्मनी ने अंग्रेजी बोलने वाले देशों ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के विश्वविद्यालयों को भी पीछे छोड़ दिया है. जर्मनी में अब कई ऐसे कोर्स हैं जो पूरी तरह अंग्रेजी में हैं.
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल दक्षिण एशिया के इन देशों के छात्रों में जर्मनी में पढ़ाई करने का रुझान बढ़ी तेजी से बढा है. बीते एक दशक में जर्मनी में डॉक्टरेट करने आने वाले भारतीय छात्रों की संख्या दस गुना बढ़ी है. डॉक्टरेट की पढ़ाई करने वाले भारतीयों की संख्या जर्मनी में दूसरे नंबर पर है. बेलफील्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे भारत के रामशंकर कहते हैं कि जर्मनी में पढ़ना बेहद प्रतिस्पर्द्धी और योग्य बनाने वाला है.
पढ़ाई सस्ती होना भी इसकी एक वजह है. जर्मनी में विदेशी को स्थानीय छात्रों के बराबर ही ट्यूशन फीस देनी होती है. कई जर्मन यूनिवर्सिटियां तो ट्यूशन फीस लेती ही नहीं हैं. इसका सीधा मतलब है कि ऐसे संस्थानों में विदेशी छात्रों से अतिरिक्त फीस नहीं ली जाती है. सर्वे के मुताबिक जर्मनी के कानून भी छात्रों को यहां काम करने का मौका देते हैं.
जर्मन यूनिवर्सिटियां भी चाह रही हैं कि भारत से उनके पास छात्र आएं. इसके लिए समय समय पर शैक्षणिक मेले कराए जाते हैं. हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट, एफयू बर्लिन, ग्योटिंगन यूनिवर्सिटी ने भारत में अपने दफ्तर भी बनाए हैं. इसके अलावा कई भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ जर्मन यूनिवर्सिटियों ने करार किए हैं. कई विश्वविद्यालयों ने भारत और भारतीय छात्रों के केंद्रित करते हुए अपने खास प्रोग्राम बनाए हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ ओ सिंह
संपादन: वी कुमार