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जर्मनी में खतने पर अदालती रोक के बाद बहस

१३ जुलाई २०१२

जर्मनी की एक अदालत ने एक फैसले में खतने को आपराधिक बताया है और कहा है कि इससे बच्चों के शरीर को नुकसान पहुंचता है. इस फैसले से देश में मुस्लिम और यहूदी समुदाय में काफी गुस्सा है.

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तस्वीर: AP

गुरूवार से यूरोप के करीब चालीस रब्बी जर्मन राजधानी बर्लिन में तीन दिनों की बैठक में हिस्सा ले रहे हैं. बैठक में एक जर्मन अदालत के फैसले पर चर्चा हो रही है जिसके बाद मुस्लिम और यहूदी बच्चों पर खतना करने पर रोक लग गई है. चिकित्सक संगठन अपने सदस्यों को आपराधिक मुकदमों से बचने के लिए खतना न करने की सलाह दे रहे हैं. अदालत के फैसले ने जर्मनी में राजनैतिक बहस छेड़ दी है. विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने ट्वीट किया है, "हमें यह बात साफ करनी होगी कि धार्मिक परंपराएं जर्मनी में सुरक्षित हैं."

यह फैसला कोलोन की अदालत ने पिछले महीने लिया. बहस तब छिड़ी जब एक चार साल के बच्चे का खतना करने के बाद रक्तस्त्राव होने लगे. इस मामले में डॉक्टर पर मुकदमा चलाया गया. डॉक्टर की दलील थी कि खतना बच्चे के माता पिता की मर्जी से किया गया और इसमें चोट पहुंचने का खतरा रहता है. इसके बाद अदालत ने अपने फैसले में खतने को शरीर को नुक्सान पहुंचाने वाला और आपराधिक करार दिया. यह फैसला पूरे जर्मनी पर भले ही बाध्यकारी न हो लेकिन इस फैसले के बाद कोलोन अदालत के अधिकार क्षेत्र में डॉक्टरों को खतना करने पर मनाही है.

Beschneidung in der Türkei
तुर्की में खतना संस्कारतस्वीर: AP

मुस्लिम और यहूदी एकजुट

जर्मनी में मुसलमानों और यहूदियों को इस फैसले से यह चिंता सता रही है कि जल्द ही इसे पूरे देश में भी लागू किया जा सकता है और उसके बाद यूरोप के अन्य देश भी ऐसा करने पर विचार कर सकते हैं. इसी सिलसिले यह बैठक बुलाई गई है. अगले हफ्ते रब्बी श्टुटगार्ट में मुस्लिम और ईसाई धर्म नेताओं के साथ बातचीत करेंगे. इसी हफ्ते रब्बियों ने ब्रसेल्स में यूरोपियन संसद के अधिकारियों से भी मुलाकात की. उनका कहना है कि यह फैसला धार्मिक और मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

जर्मनी में करीब चालीस लाख मुसलमान रहते हैं जिनमें से अधिकतर तुर्क मूल के हैं. तुर्की ने भी पिछले महीने इस फैसले की निंदा की है. यहूदियों की संख्या जर्मनी में डेढ़ से दो लाख के बीच है. 1945 में हॉलोकॉस्ट के बाद जर्मनी में केवल तीन हजार यहूदी ही बचे थे. रब्बियों का कहना है कि जर्मनी को खास तौर से यहूदियों पर कोई भी फैसला लेते हुए सोच विचार करना चाहिए, क्योंकि उसका यहूदी विरोधी नीतियां बनाने का इतिहास रहा है. कुछ जानकारों ने यह भी कहा है कि यहूदी जर्मनी को सुरक्षित समझ कर यहां लौटने लगे थे, लेकिन अगर इस तरह के फैसले लिए जाते हैं तो देश में यहूदियों की संख्या एक बार फिर कम होने लगेगी.

Chirurgische Instrumente für jüdische Beschneidungszeremonie
यहूदी खतने की तैयारीतस्वीर: picture-alliance/dpa

अस्तित्व की लड़ाई

यहूदियों में जन्म के आठवें दिन ही खतना किया जाता है, जबकि मुसलमानों में अलग अलग जगह पर अलग अलग नियम हैं. माता पिता की कोशिश होती है कि चौदह साल की उम्र से पहले बच्चे का खतना करा दिया जाए, क्योंकि उसके बाद बच्चे के पास अपने धार्मिक फैसले खुद लेने का हक आ जाता है. अब अदालत के आदेश के अनुसार माता पिता को बच्चे के चौदह साल का होने का इंतजार करना होगा.

इस फैसले के बाद यहूदी और मुस्लिम माता पिता उलझन में हैं कि वे क्या करें. धार्मिक नेताओं की सलाह है कि वे इसका खुद पर कोई असर ना होने दें. मॉस्को के प्रधान रब्बी और बर्लिन में चल रही बैठक का नेतृत्व करने वाले पिनचास गोल्डश्मिट का कहना है, "हम जर्मनी में यहूदियों से और खतना करने वालों से अपील करते हैं कि वे इसे पहले की ही तरह करते रहें और इस कानून के बदलने का इंतजार ना करें." गोल्डश्मिट ने कहा कि यह यहूदियों के अस्तित्व पर सवाल है, "खतना यहूदी समुदाय से जुड़े होने का आधार है. इसे चार हजार साल से किया जा रहा है और इसे बदला नहीं जा सकता."

उन्होंने कहा कि यह यूरोप में गैर ईसाई लोगों के खिलाफ लिए जा रहे फैसलों का एक और उदाहरण है. दो साल पहले स्विट्जरलैंड में मस्जिदों पर मीनार बनाने पर पाबंदी लगी गई. पिछले साल फ्रांस में बुर्के पर प्रतिबन्ध लगा. बेल्जियम में भी ऐसा कानून बनाया गया है. हॉलैंड में हलाल मीट पर रोक लगाने की भी कोशिश की गई है. वहीं दूसरी ओर डॉक्टरों ने फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि बच्चों की सेहत के लिहाज से यह ठीक है और इसका धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने से कोई लेना देना नहीं है.

आईबी/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)

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