जर्मनी की याद दिलाते हैं ये...
दुनिया भर में मशहूर बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जिनकी शुरुआत जर्मनी में हुई थी. ऐसे ही जर्मन पहनावे, खानपान और रहन सहन की एक झलक यहां ...
पुड़िया में बर्लिन दीवार
155 किलोमीटर लंबी बर्लिन की दीवार के टुकड़े अब लोग अपने साथ लिफाफों में ऐतिहासिक समृति के तौर पर ले जाते हैं. इन्हें खूबसूरत रंगों में रंग कर बेचा जाता है. बर्लिन वॉल मेमोरियल के प्रवक्ता कहते है कि ये नकली भी हो सकते हैं. बर्लिन का एक होटल तो अपने यहां टिकने वालों को एक हथौड़ी और खुर्पी भी देता है ताकि लोग अपनी मर्जी से दीवार का टुकड़ा निकाल सकें.
याद आया कुछ?
पुरुषों की इस तरह की लेदर पैंट दुनिया भर में जर्मनी की पहचान है. हालांकि इन्हें पहनने का चलन दक्षिणी जर्मन इलाकों में ही रहा है. अब ये पैंटें उत्सवों की पहचान बन गई हैं जब लोग इन्हें चढ़ा कर नाचने गाने पहुंचते हैं.
जर्मनी का गमी बियर
च्युइंगम और टॉफी के बीच कुछ जेली जैसा मीठे स्वाद वाला गमी बियर. असल में इसकी शुरुआत 1922 में हुई थी. हालांकि स्वाद के पारखी कहते हैं कि इसका स्वाद हर देश में अलग है. अमेरिका के मुकाबले जर्मनी में ये ज्यादा रसीला और फलों के स्वाद जैसा है, जर्मनी में इनकी ज्यादा वरायटी भी मौजूद है.
एक बार की बात है...
...जर्मनी से शुरू हुई बहुत सारी बच्चों की कहानियां दुनिया भर में मशहूर हैं. इनका अनेक भषाओं में अनुवाद हुआ है.
कुकू घड़ियां
इन कुकू घड़ियों की शुरूआत भी जर्मनी से ही हुई. हालांकि अब इनकी कीमत बहुत ज्यादा है. हाथ से बनी हुई ऐसी घड़ी 16,000 रुपये के अंदर मिल जाती हैं. अगर कोई खास घड़ी चाहिए तो आपको ढाई-तीन लाख रुपये भी चुकाने पड़ सकते हैं.
लजीज वुर्स्ट
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बर्लिन में अपने घर में काम काज करने वाली एक आम महिला ने इसकी शुरुआत की. उन्होंने सॉसेज को कैचअप और मसाले के साथ बेचा. अब करी वुर्स्ट यहां की खासियतों में गिना जाता है. बर्लिन में तरह तरह के सॉसेजों से संबंधित एक भी म्यूजियम है.
...और क्रिसमस ट्री के चमकते सितारे!
क्रिसमस के समय इस तरह की सजावट दिखाई दे जाना आम बात है लेकिन क्या आप जानते हैं इस चलन का जन्म भी जर्मनी में हुआ था. 1830 में लाउशा नाम के एक गांव में एक कांच की दुकान में पहली बार इनकी रचना हुई. क्रिसमस ट्री को सजाने वाले हाथ से बने इन आभूषणों का एक विशेष म्यूजियम साल 2000 में खोला गया.
हुमेल आकृतियां
हुमेल के नाम से जानी जाने वाली इन आकृतियों की ड्रॉइंग एक नन सिस्टर मारिया इनोसेंशिया हुमेल ने बनाई थीं. पहली बार ये 1935 में सामने आईं, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी सैनिकों ने तोहफे के रूप में उन्हें अपने घर भेजा.
प्रोस्ट यानी चीयर्स!
जर्मनी में बियर पीने का मजा और भी बढ़ जाता है जब आप उसे पारंपरिक लेकिन थोड़े भारी मग में पी रहे हों. यह दुनिया भर में जर्मन परंपरा की एक पहचान है. ये मग कई बार पत्थर, पोर्सिलीन, कांच या कांसे के भी बने होते हैं. कुछ पर ऊपर नक्काशीदार ढक्कन भी होता है.
इन्हें पहचाना?
ऐसा निशान आपने सड़क पार करते समय जरूर देखा होगा. इसे जर्मन मनोवैज्ञानिक कार्ल पेग्लॉ ने तैयार किया था.