चूहे करेंगे टीबी का मुकाबला
टीबी दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा खतरनाक बीमारियों में शामिल है. पूर्वी अफ्रीका और एशिया के लिए तो टीबी एक बहुत बड़ा अभिशाप बन गया है. 'अपोपो' नाम का एक एनजीओ तंजानिया में टीबी का पता लगाने के लिए चूहों की मदद ले रहा है.
मिलिए 'हीरो चूहे' से
बेल्जियम का 'अपोपो' नाम का एनजीओ अफ्रीका में इन हीरो माने जाने वाले चूहों को टीबी का सूंघ कर पता लगाने के लिए ट्रेन करता है. गिलबर्ट नामका अफ्रीका का यह बड़े पाउच वाला चूहा किसी इंसान की थूक को सूंघ कर बीमारी का पता लगा रहा है. तंजानिया के सेंटर पर गिलबर्ट के जैसे करीब 40 चूहे हैं.
ट्रेनिंग के तरीके
हर बार जब गिलबर्ट किसी सैंपल को टीबी के लिए पॉजिटिव पाता है तो वह अपने अगले पंजों से तेजी से उसे खुरचने लगता है. ट्रेनिंग के दौरान उसे सिर्फ पॉजिटिव सैंपलों के साथ ऐसा करना सिखाया जाता है. इसके लिए हर बार उसे केले और मूंगफलियां इनाम के तौर पर मिलती हैं और वो सूंघना जारी रहता है.
सिर्फ टीबी के लिए ही नहीं
अपोपो कई सालों से चूहों को मोजांबिक, अंगोला और कंबोडिया जैसे देशों में बारुदी सुरंगों का सूंघ कर पता लगाने में इस्तेमाल करता रहा है. केवल मोजांबिक में ही इन्होंने 13,000 से भी ज्यादा छोटे मोटे हथियारों और ढाई हजार से ज्यादा विस्फोटक सुरंगों का पता लगाया है, जिन्हें समय रहते नष्ट किया जा सका.
निवेश के लिए आदर्श
इन चूहों में सूंघने की विलक्षण क्षमता होती है और ये बहुत शांत प्रवृत्ति के भी होते हैं. ऐसे हर एक चूहे को ट्रेन करने में नौ महीने और करीब 6,000 यूरो का खर्च आता है. अच्छी बात यह है कि ये आठ साल तक जीते हैं और आगे चलकर अपने ट्रेनर पर निर्भर नहीं करते.
जन्म से ही ट्रेनिंग शुरू
अपोपो अपनी साइट पर ही इन चूहों की ब्रीडिंग करता है. इससे उन्हें शुरू से ही चूहों को सिखाने का मौका मिलता है. कभी कभी ब्रीडिंग की प्रक्रिया में यह संगठन बाहर के जंगली चूहों की भी मदद लेता है.
ऐसे होती है टीबी टेस्टिंग
जब मरीज अपनी थूक या बलगम का सैंपल जमा करता है तभी से जांच शुरू हो जाती है. तपेदिक या टीबी एक ऐसी संक्रामक बीमारी है जिससे फेफड़े प्रभावित होते हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार साल 2012 में 13 लाख से भी ज्यादा लोगों की इस बीमारी ने जान ले ली.
जानलेवा है टीबी
भारत जैसे विकासशील देश में हर तीन मिनट में दो मरीज टीबी के कारण अपनी जान गंवाते हैं. टीबी के मरीजों को खांसी की शिकायत होती है, हमेशा थका हुआ महसूस करते हैं और बहुत वजन कम हो जाता है.
प्रमाणित नहीं है तरीका
गिलबर्ट और उसके ट्रेंड साथी अब तक 1,700 से भी ज्यादा टीबी के मरीजों को पहचान चुके हैं. लेकिन टीबी का पता लगाने के लिए चूहों के इस्तेमाल के इस तरीके को अभी विश्व स्वास्थ्य संगठन की मान्यता नहीं मिली है.
'स्पीड मशीन' हैं ये चूहे
एक लैब तकनीशियन एक दिन में करीब 25 नमूनों की जांच कर सकता है. वहीं एक चूहा इतने नमूने महज सात मिनट में सूंघ कर बीमारी का पता लगा सकता है. पिछले पांच साल से लगातार इस ट्रेनिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है और रोगी की पहचान करने में चूहे इंसानों से तेज साबित हुए है.